मायावती ने पूर्वांचल में चला सटीक दांव! इस चुनाव में उठाया अलग राज्य गठन का मुद्दा; 28 जिलों के नागरिकों की रग पर रखा हाथ
झारखंड छत्तीसगढ़ एवं उत्तरांचल के मुद्दे गूंजने के चंद दिनों बाद ही पूर्वांचल राज्य की मांग उठी। एक के बाद यह राज्य तो वजूद में आ गए पर आज भी पूर्वांचल राज्य की बात मुद्दे से आगे न बढ़ सकी है। वर्ष 2009 में बसपा सुप्रीमो ने उत्तर प्रदेश को पूर्वांचल सहित चार भागों में विभाजित करने का मुद्दा उठाया पर परिणाम शून्य रहा।
संवाद सूत्र, घोसी (मऊ)। बीते कई लोकसभा चुनावों से ठप पड़े अलग पूर्वांचल राज्य के गठन का मुद्दा नेपथ्य में चला गया था। वर्ष 1999 तक कमोबेश हरेक चुनाव में पृथक पूर्वांचल राज्य का मुद्दा उठता रहा है। इस बार लोकसभा चुनाव में जिले के मोहम्मदाबाद गोहना में सोमवार को बसपा अध्यक्ष मायावती ने अलग पूर्वांचल राज्य का राग छेड़ पूर्वांचल के 28 जिलों के नागरिकों की रग पर हाथ रखा है।
प्रथम बार1962 में गाजीपुर के सांसद विश्वनाथ गहमरी ने पूर्वांचल की गरीबी की तस्वीर संसद में तात्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू के समक्ष प्रस्तुत किया। पं. नेहरू ने वीपी पटेल की अध्यक्षता में पटेल आयोग का गठन किया पर विडंबना यह कि इस आयोग की रिपोर्ट अब तक लागू ही न हो सकी।
मंत्रियों ने उठाए गंभीर मुद्दे
बीती सदी के अंतिम दशक में अलग पूर्वांचल राज्य के गठन की मांग मंत्री रहे कल्पनाथ राय, श्यामधर मिश्र, प्रभुनाथ सिंह, पूर्व सांसद हरिकेवल, रामधारी शास्त्री, पूर्व मंत्री शतरुद्र प्रकाश एवं उनकी पत्नी अंजना प्रकाश सहित पूर्व राज्यपाल मधुकर दीघे ने बेहद गंभीरता से इसे उठाया। विडंबना यह कि इन नेताओं में से कुछ गाेलोकवासी हो गए तो बचे-खुचे दिग्गजों में अब वह जोश नहीं रहा या गठबंधन की राजनीति ने होंठ सिल दिया।
झारखंड, छत्तीसगढ़ एवं उत्तरांचल के मुद्दे गूंजने के चंद दिनों बाद ही पूर्वांचल राज्य की मांग उठी। एक के बाद यह राज्य तो वजूद में आ गए पर आज भी पूर्वांचल राज्य की बात मुद्दे से आगे न बढ़ सकी है। वर्ष 2009 में बसपा सुप्रीमो ने उत्तर प्रदेश को पूर्वांचल सहित चार भागों में विभाजित करने का मुद्दा उठाया पर परिणाम शून्य रहा। बीते चुनावों में यह मुद्दा सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी उठाती रही है तो 2014 में लोकसभा चुनाव में उलेमा कौंसिल ने भी इसे उठाया।
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी कभी सपा तो कभी भाजपा के साथ गठबंधन के चलते इस मुद्दे को विस्मृत कर दिया है। बहरहाल एक बार फिर बसपा ने यह मुद्दा उठाया है। अब देखना है कि यह मुद्दा अन्य दलों को रास आता है व अभीष्ट तक पहुंचता है नहीं।