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फिर याकूब पर भारी पड़े आजम

By Edited By: Updated: Thu, 17 Jan 2013 01:33 AM (IST)
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मेरठ : कमेले के मैदान में नगर विकास मंत्री आजम खान पूर्व एमएलए हाजी याकूब कुरैशी पर भारी पड़े हैं। घोसीपुर कमेला बंदी के आदेश उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने जारी किया, पर उसके पीछे भू्मिका आजम खां की मानी जा रही है।

कमेले को लेकर आजम व याकूब में छत्तीस का आंकड़ा करीब 8 साल से चल रहा है। 2004 में नगर विधायक डा. लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने कमेले के मामले को विस में उठाया। तत्कालीन नगर विकास मंत्री आजम ने फौरन इस पर जांच के आदेश दिए। आजम और याकूब के रिश्ते में दरार तब पड़ी जब याकूब ने मेरठ में एक कार्यक्रम में उन्हें हीरे की अंगूठी व सोने का ताज देने की कोशिश की पर बाद में उनसे वापस ले लिया। आजम खां ने 2012 में नगर विकास मंत्री बनते ही मेरठ कमेले की पत्रावली निकलवा ली। कार्रवाई शुरू हो गई। याकूब को पहले नोटिस मिला। नगर निगम कुछ ऐसा सख्त हुआ कि हापुड़ रोड कमेले पर ताला पड़ गया। 28 अप्रैल को कमेला घोसीपुर चला गया। एक मई को हापुड़ रोड कमेले पर बुलडोजर चलवा दिया गया।

इसके बाद घोसीपुर कमेले में एग्रीमेंट की शर्त व प्रदूषण नियंत्रण के मसलों पर याकूब की घेराबंदी शुरू की गई। लगातार दबाव के बाद माना जाने लगा कि नगर विकास मंत्री कमेले के मामलों पर निजी तौर पर निगरानी रख रहे हैं। एग्रीमेंट की चलेगी तो कमेले में प्रतिदिन 350 पशुओं से अधिक कटान नहीं हो सकता। वह भी पुलिस और पशु चिकित्साधिकारी की मौजूदगी में। कटान का रिकार्ड भी रखना होगा। सच संस्था के अध्यक्ष संदीप पहल का दावा है कि इनमें से अधिकांश मानक कमेले में ताक पर रखे हैं। कमेले में 8 सीसीटीवी कैमरे भी लगवाए गए, पर ज्यादातर खराब पड़े हैं। खैर कमेले की सियासत में फिलहाल आजम याकूब पर भारी पड़ते दिख रहे हैं।

32 साल से चुनावी मुद्दा है कमेला

वर्ष 1980 के लोस चुनाव में मेरठ संसदीय सीट से लड़ रहे कुछ प्रत्याशियों ने कमेला का मुद्दा उठाया। कांग्रेस की मोहसिना किदवई ने उस बार चुनाव जीता। 1993 में विधायक रहे हाजी अखलाक कुरैशी के बेटे शाहिद अखलाक बसपा से मेयर बने। मेयर रहते हुए अखलाक ने 2004 में बसपा से सांसद का चुनाव जीत गए। इसके बाद से भाजपा ने कमेले को चुनावी मुद्दा बना लिया। भाजपा से मधु गुर्जर इसी मुद्दे का सहारा लेकर महापौर बनीं। 2007 के चुनाव में यूडीएफ से याकूब कुरैशी एमएलए बने। राजेन्द्र अग्रवाल के चुनाव प्रचार में भी कमेले का मसला छाया रहा। विस चुनाव व स्थानीय निकाय चुनाव में यह मुद्दा गौण रहा, क्योंकि अप्रैल-मई में कमेले पर कार्रवाई हुई। हालात ऐसे बन रहे हैं कि आगामी लोस चुनाव में कमेला फिर मुद्दा बनता दिख रहा है।

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