Move to Jagran APP

शास्त्रीय रागों को फिल्म संगीत ने बनाया हम सबका राग

-गायिका सुप्रिया जोशी ने किया है शास्त्रीय रागों और यूपी के लोक संगीत पर शोध -लता के गीतों में बसत

By JagranEdited By: Updated: Wed, 27 Sep 2017 01:51 AM (IST)
शास्त्रीय रागों को फिल्म संगीत ने बनाया हम सबका राग

-गायिका सुप्रिया जोशी ने किया है शास्त्रीय रागों और यूपी के लोक संगीत पर शोध

-लता के गीतों में बसते हैं सुप्रिया के प्राण, नई फिल्म में सुनिधि के साथ गाया युगल

सुर-ताल की आकाशगंगा में फनकार अपनी दुनिया बसा लेता है। सुप्रिया संगीत की इसी गहराई में बसती हैं। सुरों की साधना और संगीत का सतत अध्ययन डा. सुप्रिया जोशी की जुदा पहचान है। खांटी शास्त्रीय गायन में पारंगत सुप्रिया के प्राण स्वर कोकिला लता के गीतों में बसते हैं। सुप्रिया मूल रूप से अलीगढ़ की हैं, किंतु सुरों का आकर्षण और रियाज की चाहत उन्हें मुंबई ले गई। उन्होंने उत्तर भारतीय शास्त्रीय रागों के फिल्मों में प्रयोग पर शोध किया है। पूर्वी उत्तर प्रदेश की लोकसंगीत में महकते रागों का गुलदस्ता भी सजाया है। नौटंकी तक में बसे रागों का ताल्लुक फिल्मी गानों में खोज निकाला। पेश है संवाददाता संतोष शुक्ल से उनसे खास बातचीत-

1. यू-ट्यूब पर लाइव आर्केस्ट्रा पर आपने पुरानों गानों की पूरी सीरीज डाला है। आपके तमाम प्रशंसकों ने आप को दूसरी लता कहा है। कैसा महसूस करती हैं?

- लताजी अपने आप में संगीत का विश्वविद्यालय हैं, जिनके गानों में समग्र भारत के विरासत की खुशबू है। उन्हें सुनना और गाना ऐसा एहसास है, जिसको बयां नहीं किया जा सकता। पहले वंदना बाजपेयी, बेला सुलाखे व साधना सरगम आदि गायिकाएं कवर वर्जन गाती थीं, किंतु अब यू-ट्यूब का जमाना आ गया।

2. आपने इंदौर और किराना घराना से बाकायदा संगीत सीखा है, फिर शुद्ध शास्त्रीय गायन के बजाय सुगम और फिल्म संगीत क्यों चुना?

- मैं आज भी क्लासिकल बंदिशों को गाती हूं। नियमित रियाज करती हूं। शास्त्रीय रागों का फिल्म संगीत में बेहद खूबसूरती से इस्तेमाल किया गया है, जिस पर मैंने शोध किया। सारेगमप में पहुंचने के बाद मैंने आर्केस्ट्रा पर सुगम और फिल्म संगीत को अपना लिया। आखिर पैसे भी कमाने बहुत जरूरी हैं।

3. आप स्टूडियो की रिकार्डिग और लाइव शो में किसे ज्यादा तवज्जो देती हैं?

- मैं लाइव शो में ज्यादा यकीन रखती हूं। इसमें गायक अपने प्रशंसकों के सीधे रूबरू होता है, जहां सुर, लय और ताल का संतुलन बिगड़ा तो संभलता नहीं। जबकि स्टूडियो में कट-पेस्ट रिकार्डिग होती है, जिसका अपना मजा और इंपैक्ट है।

4. आपने संगीत में शोध किया है। इसमें नौटंकी से लेकर लोकसंगीत में बसने वाले रागों पर भी बारीकी से लिखा? यह सब कैसे हुआ?

- मैंने 12 साल तक संगीत सीखा है। उत्तर भारतीय शास्त्रीय रागों के फिल्मी गानों पर शोध करते हुए मैंने पाया कि हर संगीतकार की अपनी खास पसंद थी। नौशाद साहब अवध लोक संगीत को बड़ी मधुरता के साथ रागों की चाशनी में भिगो लेते थे। सलिल चौधरी और एसडी बर्मन उड़िया व असमिया संगीत की खुशबू के साथ आए। शोध के लिए मैंने कानपुर की नौटंकी को देखा। लखनऊ के आसपास गांवों में गई। अप्रैल में नई दिल्ली में जश्न-ए-बहारा कार्यक्रम किया, जिसमें लोकसंगीत पर फोकस रहा।

5. नई पीढ़ी नए कलेवर वाले वेस्टर्न ट्यून के गाने सुनती है। आप लाइव परफार्मर हैं। पुराने गानों पर रिसर्च कर चुकी हैं, फिर स्टेज पर नए गानों की डिमांड को कैसे पूरा कर लेती हैं?

- बेशक नई पीढ़ी नए डिमांड के साथ आती है। हम वेस्टर्न म्यूजिक सुनने लगे और वो हमारा योगा करने लगे। मैं पेशेवर कलाकार हूं, और प्रशंसकों को अपने साथ बहा लेना हमारी काबिलियत होनी चाहिए। इसीलिए मैं हर प्रकार के गाने तैयार रखती हूं, किंतु सुकून को अपनी विरासत में मिली संगीत धारा में डूबने से ही मिलता है।

6. आने वाले दिनों में क्या प्रोजेक्ट हैं। क्या फिल्मों में भी गा रही हैं?

- हाल में मैंने फिल्म आतिशबाजी इश्क में सुनिधि चौहान के साथ गाया है। फिल्म और सीरियल की बात करें तो सत्या, सलीम, विवाह, बाल गणेश, देवों का देव महादेव, बालिका वधू, नव्या, महाराणा प्रताप और बुद्ध में आवाज दी है। हाउस आफ कामंस यूके में वायस आफ इंडिया समेत तमाम अवार्ड भी जीता। तमाम नए प्रोजेक्ट हैं।

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।