मेरठ का वह दंगा जिसमें 72 लोगों की हुई थी मौत, 34 साल बाद भी इंसाफ का इंतजार कर रहे पीड़ित
हाशिमपुरा कांड के अगले दिन मलियाना में हुए नरसंहार के मामले में पीड़ितों को 34 साल बाद भी न्याय नहीं मिला है। इस कांड में 72 लोगों की मौत हुई थी। दर्जनों घायल हुए थे। मेरठ के दो पीड़ितों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
By Himanshu DwivediEdited By: Updated: Mon, 24 May 2021 12:19 PM (IST)
[ओम बाजपेयी] मेरठ। हाशिमपुरा दंगे के मामले में 31 अक्टूबर 2018 को दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुना दिया था। इसमें दोषी पाए गए 19 पुलिसकर्मियों में चार की मृत्यु हो चुकी है। शेष 15 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, लेकिन हाशिमपुरा कांड के अगले दिन मलियाना में हुए नरसंहार के मामले में पीड़ितों को 34 साल बाद भी न्याय नहीं मिला है। इस कांड में 72 लोगों की मौत हुई थी। दर्जनों घायल हुए थे। सेशन कोर्ट से मामला आगे न बढ़ पाने पर 19 अप्रैल 2021 को मलियाना मामले में पूर्व आइपीएस अधिकारी विभूति नारायण राय, कुरबान अली और मेरठ के दो पीड़ितों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में कोर्ट की निगरानी में विशेष जांच दल (एसआइटी) से मामले की नए सिरे से जांच कराने की मांग की है। मामले में कोर्ट ने सुनवाई के लिए 24 मई को तिथि दी है।
22 मई 1987 को हाशिमपुरा कांड के अगले दिन मलियाना में खूनखराबा हुआ था। मलियाना के पीड़ित परिवारों में आज भी वह दर्द देखा जा सकता है। इतने साल बाद अपनों को खो चुके लोगों में न्याय की आस भी खत्म हो गई है। मलियाना मामले में मोहल्ला शेखान निवासी याकूब ने 93 लोगों के खिलाफ थाना टीपीनगर में एफआइआर दर्ज कराई थी। सेशन कोर्ट में मामले की सुनवाई हो रही है। वरिष्ठ अधिवक्ता अलाउद्दीन ने इस मामले में पीड़ितों की ओर से पैरवी की है। उन्होंने बताया कि 600 से अधिक तारीखें लग चुकी हैं। दंगे में 35 लोग घायल हुए थे। उनमें केवल सात के बयान हुए हैं। पिछली सुनवाई चार साल पहले हुई थी। उसके पीछे मुख्य वजह याकूब द्वारा की गई एफआइआर गायब हो जाना है। हाशिमपुरा कांड में पीड़ितों को न्याय दिलाने में भूमिका निभाने वाले अधिवक्ता जुनैद ने बताया कि यह एक ऐसा पेच है, जिसके कारण कोर्ट की कार्रवाई आगे नहीं बढ़ पा रही है।
हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को दिए थे यह आदेश
याचिकाकर्ता कुरबान अली ने बताया कि उनके साथ कोर्ट में याचिका दायर करने वाले इस्माईल हैं जिन के परिवार के 11 लोगों की जान गई थी। चौथे एडवोकेट राशिद हैं। 19 अप्रैल को उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने प्रदेश सरकार को मुकदमे से संबंधित सारे तथ्य और दस्तावेज अदालत के सामने रखने और जनहित याचिका में उठाए गए सवालों के जवाब पैरा वाइज देने के आदेश दिए थे।
कोरोना ने रोक दी कार्रवाई
अधिवक्ता अलाउद्दीन ने बताया कि उनके पास मलियाना कांड के शिकार हुए 35 लोगों की पोस्टमार्टम की रिपोर्ट है। उनके स्वजन की गवाही को आधार बनाकर आगे सुनवाई की अर्जी दी थी। पर एक साल से कोरोना के चलते कोई कार्रवाई आगे नहीं बढ़ सकी है।कोर्ट से सुनवाई आगे बढ़ाने की गुजारिश की सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी विभूति नारायाण राय ने बताया कि याचिकाकर्ताओं में मलियाना के दो निवासी भी हैं, जिनके परिवार के सदस्य दंगे का शिकार हुए थे। कोर्ट से मामले की सुनवाई आगे बढ़ाने और न्याय दिलाने की गुजारिश की गई है।
हमारी तो न्याय पाने की उम्मीदें ही टूट गईं मलियाना के मोहल्ला शेखान निवासी याकूब की उम्र अब 64 साल है। याकूब ने बताया कि दंगे के अगले दिन 24 मई 1987 को टीपीनगर थाने में 25-30 लोगों को कैंटर में बैठा कर लाया गया था। उस समय उन्होंने लहूलुहान अवस्था में रिपोर्ट लिखाई थी। 93 आरोपितों में 32 का तो इंतकाल हो गया है। यही हाल गवाही देने वालों का है। 74 गवाहों में केवल 25-30 बचे हैं। वहीं, मलियाना निवासी यामीन दंगों के पहले कानपुर चले गए थे। पत्थरों का काम करने वाले यामीन वहां पर पेमेंट के सिलसिले में गए थे। उनकी पत्नी अनवरी की उम्र वर्तमान में 80 साल है। वह बताती हैं कि पति नहीं लौटे तो हमने कानपुर में व्यापारी से संपर्क किया। पता चला कि वह तो 23 मई के पहले ही कानपुर से चल दिए थे। आज तक उनका कोई पता नहीं है। अनवरी ने बताया कि तीन-चार साल तक रात में दरवाजे पर आहट होती तो यही लगता कि वे आ गए। बड़ी मुश्किल से गृहस्थी संभाली। अब तो इंसाफ की सारी उम्मीदें टूट गई हैं। उनके बेटे रईस अहमद भी दंगों की चपेट में आ गए थे। रईस ने बताया कि एक गोली उनके गालों को छू कर निकल गई थी।
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