नौ गोलियां लगने के बाद 45 दिनों तक कोमा में रहे… सीआरपीएफ कमांडेंट ने सुनाई सात दिन के ऑपरेशन की दास्तां!
सीआरपीएफ के कमांडेंट चेतन चीता ने कहा है कि दो से तीन वर्ष में देश के नक्सली खत्म कर दिए जाएंगे। उन्होंने बताया कि नक्सलियों के खिलाफ जंगलों में ऑपरेशन के दौरान सैकड़ों किलोमीटर तक पैदल जाना पड़ता है और जीपीएस ट्रैकिंग सिस्टम के साथ आधुनिक उपकरणों का प्रयोग किया जा रहा है। चेतन चीता कोबरा कमांडर के तौर पर भी सेवाएं दे चुके हैं।
जागरण संवाददाता, मेरठ। जम्मू कश्मीर के बांदीपोरा में आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन में अदम्य साहस और बहादुरी के लिए कीर्ति चक्र से सम्मानित सीआरपीएफ के कमांडेंट चेतन चीता ने कहा की दो से तीन वर्ष में देश के नक्सली खत्म कर दिए जाएंगे।
कहा कि अब जंगल वारफेयर में नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन में सशस्त्र बल जीपीएस ट्रैकिंग सिस्टम के साथ आधुनिक उपकरणों का प्रयोग करते हैं, जिससे बिना किसी की नजर में आए ऑपरेशनों को अंजाम दिया जा रहा है।
परमवीर वंदनम कार्यक्रम में पहुंचे चेतन चीता
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के नेताजी सुभाष चंद्र बोस प्रेक्षागृह में आयोजित परमवीर वंदनम कार्यक्रम में पहुंचे चेतन चीता ने बताया कि नक्सलियों के खिलाफ जंगलों में ऑपरेशन के दौरान सैकड़ों किलोमीटर तक पैदल जाना पड़ता है। इस दौरान पगडंडियों या रास्तों का इस्तेमाल कतई नहीं करते। न ही किसी गांव के आसपास से होकर गुजरते हैं।इससे लोगों की नजर में आने का खतरा रहता है और जंगल में नक्सली और सशस्त्र बल की टीमें एक दूसरे की घेराबंदी करने की ही ताक में रहती हैं। जो पहले नजर आ जाता है दूसरा पक्ष उसकी घेराबंदी कर लेता है। इसलिए अब जीपीएस तकनीक की मदद से जवान जंगलों में पहुंचते हैं और नक्सलियों को खोज कर मार गिराने के सफल ऑपरेशन कर रहे हैं।
कोबरा कमांडर में भी दे चुके हैं सेवाएं
दिल्ली में तैनात सीआरपीएफ के कमांडेंट चेतन चीता नक्सली क्षेत्र में कोबरा कमांडर के तौर पर भी सेवाएं दे चुके हैं। उन्होंने महाराष्ट्र के ऑपरेशनों के अनुभव युवाओं संग साझा करते हुए कहा की फिल्मों में जिस तरह से सेना या सशस्त्र बलों के जीवन को दिखाया जाता है, असल में ऑपरेशन व जीवन उससे कहीं ज्यादा कठिन होते हैं।बताया कि महाराष्ट्र के अबूझमाड़ के निकट नक्सली क्षेत्र में ऑपरेशन के लिए वह 100 कमांडो की अगुवाई करते हुए सात दिन के ऑपरेशन पर निकले थे। ऑपरेशन के दौरान उन्हें सीमित खाद्य सामग्री सात दिन तक चलानी थी।
एक ही यूनिफॉर्म में दिनभर चलते और पसीने से भीगी यूनिफॉर्म में ही रात में सोना पड़ता और फिर दूसरे दिन सुबह उसी यूनिफॉर्म में आगे बढ़ते। इस तरह से नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन को अंजाम दिया गया।
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