युद्ध के इतिहास में सबसे बड़ी जीत दर्ज करने वाली भारतीय सेना ने युद्ध की योजना भी जल्दबाजी में नहीं बनाई थी। 48 साल पहले महज 12 दिन के एलानिया युद्ध में पाकिस्तानी सेना को घुटने टेकने पर विवश कर देने वाली भारतीय सेना ने युद्ध के नौ महीने पहले से ही योजना बनानी शुरू कर दी थी। मार्च-अप्रैल में शुरू हुए पाकिस्तानी बर्बरता वाले ऑपरेशन सर्चलाइट का जवाब देते हुए भारतीय सेना ने मानवता की रक्षा करने के साथ ही देश के माथे पर विजय तिलक लगाया। उसी जीत को पूरा देश विजय दिवस के तौर पर मनाता है।
By JagranEdited By: Updated: Tue, 17 Dec 2019 05:00 AM (IST)
मेरठ, जेएनएन। युद्ध के इतिहास में सबसे बड़ी जीत दर्ज करने वाली भारतीय सेना ने युद्ध की योजना भी जल्दबाजी में नहीं बनाई थी। 48 साल पहले महज 12 दिन के एलानिया युद्ध में पाकिस्तानी सेना को घुटने टेकने पर विवश कर देने वाली भारतीय सेना ने युद्ध के नौ महीने पहले से ही योजना बनानी शुरू कर दी थी। मार्च-अप्रैल में शुरू हुए पाकिस्तानी बर्बरता वाले 'ऑपरेशन सर्चलाइट' का जवाब देते हुए भारतीय सेना ने मानवता की रक्षा करने के साथ ही देश के माथे पर विजय तिलक लगाया। उसी जीत को पूरा देश विजय दिवस के तौर पर मनाता है।
अप्रैल नहीं, दिसंबर में मारेंगे
सेना के तीसरी राजपुताना राइफल्स की कमाल संभाल चुके कर्नल नरेंद्र सिंह के अनुसार पाकिस्तानी सेना के ऑपरेशन सर्चलाइट में पूर्वी पाकिस्तान में आम लोगों से दुर्व्यवहार की खबरें बाहर आने लगीं तो भारत पर सेना के जरिए हस्तक्षेप का दबाव बढ़ने लगा। तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अप्रैल में ही हमले की इच्छा जताई, लेकिन तात्कालीन सेना प्रमुख जनरल (बाद में फील्ड मार्शल) मानेकशॉ ने अप्रैल के बजाय दिसंबर में हमले की योजना बनाई। अप्रैल से दिसंबर के बीच सेना ने पूर्वी पाकिस्तान के आंदोलनकारी लड़ाकों (मुक्ति वाहिनी) को लड़ने का प्रशिक्षण दिया। तीन दिसंबर को पश्चिमी क्षेत्र में पाकिस्तानी हवाई हमले के बाद भारतीय सेना युद्ध में उतरी और 16 दिसंबर को पाकिस्तान ने घुटने टेक दिए। इस प्रकार भारतीय सेना ने उन्हें कूटनीतिक, आर्थिक और सैन्य सहयोग दिया। वर्ष 1950 में ही उठने लगा था धुआं
वर्ष 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के साथ ही पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली अस्मिता, उसकी पहचान और इस नाते इस क्षेत्र की स्वायत्तता को लेकर जातीय संघर्ष शुरू हो चुके थे। इसके बीच वर्ष 1950 में बांग्ला भाषण को लेकर बंगाली मुस्लिम समुदाय के आंदोलन से ही पड़ गए थे। समय-समय पर अवामी लीग की मांगों के साथ यह आंदोलन परवान चढ़ता गया। दिसंबर 1970 के चुनाव में शेख मुजीबुर्रहमान की पार्टी जीतने के बाद भी उन्हें प्रधानमंत्री नहीं बनाने के बजाय पाकिस्तान के सैनिक तानाशाह जनरल यहिया खान ने 25 मार्च 1971 को पूर्वी पाकिस्तान की जन भावनाओं को कुचलने का आदेश दिया। शेख मुजीब को गिरफ्तार कर पाकिस्तानी सेना ने ऑपरेशन सर्चलाइट के जरिए सभी आंदोलनकारी लोगों को खोज कर मौत के घाट उतारना शुरू कर दिया। तब लोग बचने और आंदोलन को जिंदा रखने के लिए भारतीय सीमा में प्रवेश करने लगे। अमेरिकी मदद से पहले ही दुश्मन ने टेके घुटने
कर्नल नरेंद्र सिंह के अनुसार पाकिस्तान को अमेरिका का समर्थन था और वह सीईएनटीओ और सीईएटीओ का सदस्य भी था। अप्रैल 1971 के बाद भारत ने पाकिस्तानी सेना के सैन्य विमानों को भारतीय क्षेत्र के ऊपर से जाने पर रोक लगा दी। यहीं से पूर्वी पाकिस्तान पहुंचने वाले पाकिस्तानी सैन्य मदद को रोकने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी। पाकिस्तानी सेना की मदद के लिए अमेरिका की सातवीं फ्लीट रवाना हुई, लेकिन उसके पहुंचने के पहले ही भारतीय सेना ने युद्ध समाप्त कर पाकिस्तान को आत्मसमर्पण करने पर विवश कर दिया। भारत ने सबसे बड़ा युद्ध जीता और यूएसएसआर के रूप में सबसे बड़ा सहयोगी पाया। भारतीय जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष पाकिस्तानी जनरल नियाजी ने आत्मसमर्पण प्रपत्र पर हस्ताक्षर किया।
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