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UP Lok Sabha Election: यूपी के आठ लोकसभा सीटों पर इन चेहरों से बड़ी चुनौती, यहां पर्दे के 'श्रीराम' की भी चल रही अग्निपरीक्षा

दूसरे चरण में मथुरा अलीगढ़ गाजियाबाद गौतमबुद्ध नगर बागपत अमरोहा बुलंदशहर और मेरठ में चुनावी महायज्ञ है जिसमें हेमा मालिनी पूर्व केंद्रीय मंत्री डा. महेश शर्मा डा. भोला सिंह और सतीश गौतम के सामने जीत की हैट्रिक का लक्ष्य है। पर्दे के श्रीराम अरुण गोविल चुनावी रथ पर सवार हैं। 2019 में इसमें सिर्फ अमरोहा सीट भाजपा हारी थी अन्य सभी पर कमल खिला था।

By Jagran News Edited By: Vivek Shukla Updated: Thu, 25 Apr 2024 01:28 PM (IST)
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ऊपर बाएं से अरुण गोविल, हेमा मालिनी, महेश शर्मा, भोला सिंह, अतुल गर्ग, सतीश गौतम, जयंत चौधरी, कुंवर दानिश अली।

 कड़ी धूप, बयानों की ऊष्मा और चुनावी बादलों की उमड़-घुमड़ के बीच मतदान का सूखापन...। यह दूसरे चरण के योद्धाओं की रणनीति पर ‘ओलावृष्टि’ का खतरा बनकर मंडरा रहा है। मतदाताओं का मनोविज्ञान समझने का प्रयास किया जा रहा है।

26 अप्रैल को दूसरे चरण में मथुरा, अलीगढ़, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बागपत, अमरोहा, बुलंदशहर और मेरठ में चुनावी महायज्ञ है, जिसमें हेमा मालिनी, पूर्व केंद्रीय मंत्री डा. महेश शर्मा, डा. भोला सिंह और सतीश गौतम के सामने जीत की हैट्रिक का लक्ष्य है।

पर्दे के श्रीराम अरुण गोविल चुनावी पथ पर अग्निपरीक्षा से गुजर रहे हैं। दिग्गज चुनावी चक्रव्यूह भेदने का मंत्र साधने में जुटे हैं। 2019 में इसमें सिर्फ अमरोहा सीट भाजपा हारी थी, अन्य सभी पर कमल खिला था। दूसरे चरण की सीटों पर वरिष्ठ मुख्य संवाददाता संतोष शुक्ल की समग्र दृष्टि...

मेरठ

चुनाव पथ पर ‘राम’ की अग्नि परीक्षा

मेरठ-हापुड़ संसदीय सीट पर 20.05 लाख वोटर हैं। अयोध्या में रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा के बाद भाजपा ने पूरब से पश्चिम को धार्मिक तार से जोड़ते हुए पर्दे के श्रीराम अरुण गोविल को तीन बार के सांसद राजेंद्र अग्रवाल का टिकट काटकर मेरठ-हापुड़ सीट पर उतारा है।

1994 से 2019 तक भाजपा छह बार मेरठ जीत चुकी है, लेकिन इस बार अरुण गोविल के सामने सपा प्रत्याशी पूर्व महापौर व अनुसूचित वर्ग की सुनीता वर्मा हैं, जिनके पास मुस्लिम और दलित वोटों की बड़ी ताकत है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 31 मार्च को मेरठ में जनसभा की तो सीएम योगी कई बार पहुंचे। राम का किरदार निभाने वाले गोविल के प्रति लोगों में भारी आकर्षण के बावजूद उन्हें चुनावी रण में कड़ी चुनौती मिल रही है।

गौतमबुद्ध नगर

डाक्टर साहब की साख का सवाल

भाजपा के टिकट पर गौतमबुद्ध नगर से 2014 और 2019 में लगातार जीत दर्ज करने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री डा. महेश शर्मा का टिकट काटने के लिए भाजपा का एक धड़ पूरी ताकत लगा रहा था, लेकिन वह केंद्रीय इकाई का भरोसा जीतने में सफल रहे। पेशे से चिकित्सक सांसद डा. महेश शर्मा का मुकाबला एक और चिकित्सक सपा के डा. महेन्द्र नागर से है।

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26.75 लाख वोटरों वाली गौतमबुद्ध नगर सीट पर नागर गोत्र को भाजपा में लाने की बड़ी चुनौती है। यहां राज्यसभा सदस्य सुरेन्द्र नागर की परख होगी। भाजपा के एमएलसी तेजपाल भाटी का गुर्जरों के भाटी गोत्र में बड़ा असर है। उन्होंने डा. महेश शर्मा के पक्ष में दनकौर में बड़ी सभा भी की।

उधर, क्षत्रिय वोटों के लिए जेवर विधायक धीरेंद्र सिंह एवं भाजपा के क्षेत्रीय अध्यक्ष सतेंद्र सिसौदिया का इम्तिहान होगा। हालांकि यह सीट भाजपा के लिए काफी हद तक सुरक्षित मानी जाती है, लेकिन बसपा ने क्षत्रिय चेहरा व पूर्व विधायक राजेन्द्र सिंह सोलंकी को उतारकर मैदान को दिलचस्प बनाने का प्रयास किया है।

मथुरा

धर्म नगरी से निकलेगा बड़ा संदेश

जमुना तीरे बसी मथुरा नगरी में राजनीति की नई धारा बह रही है। धार्मिक वातावरण के बीच भाजपा ने सांसद हेमा मालिनी को तीसरी बार टिकट देकर चुनावी पंडितों को चौंका दिया। 2019 में हेमा मालिनी ने 2.93 लाख के बड़े अंतर से जीत दर्ज की। यहां भाजपा और रालोद में भारी अंतर्विरोध के बावजूद हेमा के लिए बड़ी चुनौती नहीं दिख रही।

हेमा मालिनी और जयन्त चौधरी के मंच पर राष्ट्रीय लोकदल के प्रदेश उपाध्यक्ष व क्षत्रिय चेहरा नरेन्द्र सिंह को मंच पर स्थान नहीं मिला, जिसकी बड़ी चर्चा रही। नरेन्द्र 2019 में साढ़े तीन लाख से ज्यादा वोट पाए थे। मथुरा से कांग्रेस ने मुकेश धनगर और बसपा ने जाट चेहरा व पूर्व आइआरएस अधिकारी सुरेश सिंह को उतारा है, लेकिन सीएम योगी ने मथुरा में संबोधन के दौरान ‘भगवान कृष्ण भी प्रतीक्षा कर रहे हैं’ कहकर बड़ा संदेश दिया है।

बुलंदशहर

संभावनाएं कितनी ‘बुलंद’

पूर्व मुख्यमंत्री और हिन्दुत्व के नायक रहे कल्याण सिंह के प्रभाव वाली बुलंदशहर सीट पर भाजपा 1991 से बेहद मजबूत है। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर वर्तमान प्रत्याशी डा. भोला सिंह लगातार दो बार जीतकर अब हैट्रिक के मुहाने पर खड़े हैं।

बसपा ने नगीना के सांसद गिरीश चंद्र को बुलंदशहर में प्रत्याशी बनाकर जीत का पहाड़ चढ़ने की नई रणनीति रची। वहीं, सपा-कांग्रेस गठबंधन में कांग्रेस के हिस्से आई बुलंदशहर में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व सचिव शिवराम वाल्मीकि को खड़ाकर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने का प्रयास किया, लेकिन दिग्गज नेताओं की प्रचार से दूरी और संगठन की उदासीनता ने भाजपा को नई ताकत दे दी है।

गाजियाबाद

केंद्र की नाक का सवाल

केंद्रीय इकाई की सीधी नजर में रहने वाली और भाजपा की मजबूत सीटों में शामिल 29.38 लाख मतदाताओं वाली सीट गाजियाबाद में केंद्रीय मंत्री व दो बार के सांसद जनरल वीके सिंह का टिकट कटने के बाद जातीय हलचल तेज हुई।

भाजपा ने योगी सरकार के पूर्व मंत्री अतुल गर्ग को उतारा, जिससे क्षत्रिय समीकरण में उबाल रहा। यहां क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य और गुर्जर वोटों की बड़ी संख्या भाजपा का मनोबल बढ़ाने के लिए पर्याप्त है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वीके सिंह को रथ पर साथ लेकर रोड शो करते हुए क्षत्रिय वोटरों की नाराजगी दूर करने का प्रयास किया।

कांग्रेस ने 2019 के बाद फिर डाली शर्मा को टिकट दिया, जबकि बसपा ने अंशय कालरा का टिकट काटते हुए नंद किशोर पुंडीर को मैदान में उतारकर क्षत्रिय वोटों में सेंधमारी की रणनीति बनाई है।

अलीगढ़

जीत की चाबी की तलाश

2014 में केंद्र में भाजपा सरकार बनने के बाद अलीगढ़ लगातार राजनीति के सुर्खियों में रहा है। भाजपा ने तीसरी बार ब्राह्मण चेहरा सतीश गौतम को उतारा है, जिनका एक खेमा विरोधी भी है।

19.84 लाख मतदाताओं वाली सीट अलीगढ़ में सपा ने 2004 में कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुने गए जाट चेहरा चौधरी बिजेंद्र सिंह को टिकट दिया है जो भाजपा को घेर सकते हैं। वहीं, बसपा ने पाला बदलकर भाजपा से हाथी पर सवार हुए हितेंद्र कुमार उर्फ बंटी उपाध्याय को टिकट देकर भाजपा के ब्राहृमण वोटों में सेंधमारी का व्यूह रचा है।

हालांकि अलीगढ़ की सभी पांचों विधानसभाओं पर भाजपा के विधायक हैं, लेकिन सतीश की लड़ाई आसान नहीं होगी। साढ़े तीन लाख से ज्यादा मुस्लिम मतदाता होने के बावजूद इस समाज से कोई चेहरा मैदान में नहीं है, जिसका लाभ सपा उठाना चाहेगी।

बागपत

चौधरी साहब के गढ़ में कर्मयोगी

समाजवादी चिंतकों और इस विचारधारा से प्रभावित नेताओं के लिए बागपत राजनीति की काशी कही जाती है। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की विरासत संभाल रहे जयन्त चौधरी ने 16.46 लाख मतदाताओं वाली बागपत सीट पर अपने संगठन के कर्मयोगी और श्रमजीवी चेहरे डा. राजकुमार सांगवान को प्रत्याशी बनाकर बड़ा संदेश दिया।

यह चौधरी साहब की विरासत की सीट है, जिस पर 2014 एवं 2019 में भाजपा के डाक्टर सत्यपाल सिंह विजयी रहे। इस बार भाजपा से गठबंधन के बाद सीट रालोद के खाते में चली गई। यहां सपा ने पहले मनोज चौधरी और बाद में साहिबाबाद के पूर्व विधायक अमरपाल शर्मा को टिकट दे दिया।

बसपा ने दिल्ली हाई कोर्ट के अधिवक्ता प्रवीण बंसल पर दांव लगाया है। यह सीट भाजपा और रालोद के गठबंधन में रालोद के खाते में है, जिससे जयन्त चौधरी की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है।

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अमरोहा

सांसद बदलने वाला ‘विद्रोही’

क्षेत्र प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ के तेवर भरे संबोधनों से गरमाई अमरोहा की धरती पर राजनीतिक पारा चरम पर है। 17.13 लाख मतदाताओं वाली इस सीट पर वर्ष 1984 के बाद से किसी प्रत्याशी को लगातार दो बार जीत नहीं मिली।

2019 में सपा और बसपा के गठबंधन की ताकत से बसपा के कुंवर दानिश अली सांसद चुने गए, लेकिन अब वह कांग्रेस में शामिल होकर सपा के सहारे लड़ रहे हैं। दानिश से नाराज पूर्व सीएम मायावती उन्हें बिना नाम लिए ‘विश्वासघाती’ बता चुकी हैं।

बसपा ने यहां पर मुस्लिम चेहरा मुजाहिद को खड़ा कर सपा-कांग्रेस को घेरा है। ऐसे में 6.5 लाख से ज्यादा मुस्लिम वोटों में बंटवारे के बीच भाजपा 2014 की तरह कमल खिलाने का ख्वाब देख रही है।

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