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पश्चिम यूपी में हाथी ने बदली चाल, चुनावी लैब में सोशल इंजीनियरिंग का नया फॉर्मूला तैयार करने में जुटी BSP

Uttar Pradesh civic elections निकाय चुनाव से पहले बसपा चुनावी लैब में सोशल इंजीनियरिंग का नया सूत्र तैयार करने में जुटी है। पश्चिम उप्र की माटी में राजनीतिक व्यायाम करते हुए बसपा सत्ता तक पहुंची लेकिन 2014 लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी राजनीतिक ढलान पर फिसलती चली गई।

By Yashodhan SharmaEdited By: Yashodhan SharmaUpdated: Tue, 10 Jan 2023 08:39 AM (IST)
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मायावती अपने मूल वोटरों को संजोकर रखने के लिए आक्रामक रणनीति के साथ उतरेंगी।
संतोष शुक्ल, मेरठ: पश्चिम उत्तर प्रदेश में दोबारा पांव जमाने के लिए हाथी ने चाल बदल दी है। निकाय चुनाव से पहले बसपा चुनावी लैब में सोशल इंजीनियरिंग का नया सूत्र तैयार करने में जुटी है। वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा ब्राह्मण-दलित समीकरण के बूते प्रदेश में सत्तासीन हुई, वहीं इस बार पार्टी की नजर ओबीसी और मुस्लिम वोटबैंक पर टिकी है। पार्टी प्रमुख मायावती ने सटीक रणनीति के तहत अति पिछड़ा चेहरा विश्वनाथ पाल को प्रदेश की कमान थमाकर पश्चिम यूपी मथने का जिम्मा दिया है।

पाल ने मेरठ की रैली में नए जातीय समीकरण की तस्वीर साफ कर दी। लोकसभा से पहले निकाय चुनाव में ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर मुस्लिमों को चुनावी मैदान में उतारने की तैयारी कर ली है। सहारनपुर नगर निकाय चुनाव में इमरान मसूद की पत्नी को प्रत्याशी बनाने का संकेत भी दे दिया है। पश्चिम उप्र की माटी में राजनीतिक व्यायाम करते हुए बसपा सत्ता तक पहुंची, लेकिन 2014 लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी राजनीतिक ढलान पर फिसलती चली गई।

2007 की तर्ज पर BSP ने किए बदलाव

2022 विस में सिर्फ एक विधायक जीतने के बाद बसपा के राजनीतिक अस्तित्व पर संकट के बादल छा गए। ऐसे में बसपा ने 2007 की तर्ज पर सोशल इंजीनियरिंग का सूत्र नए सिर से गढ़ने का प्रयास किया है। पश्चिम यूपी की राजनीतिक लैब में पार्टी ने सहारनपुर के दिग्गज नेता इमरान मसूद को मेरठ, सहारनपुर, मुरादाबाद व पूर्व सांसद व मेरठ निवासी मुनकाद अली को बरेली, अलीगढ़ एवं लखनऊ समेत छह मंडलों का प्रभारी बनाकर जहां मुस्लिम वोटरों को साधने का प्रयास किया, वहीं ओबीसी वोटबैंक में सेंधमारी के लिए प्रदेश अध्यक्ष एवं अति पिछड़ा वर्ग का चेहरा विश्वनाथ पाल को पश्चिम यूपी में उतार दिया है।

प्रदेश अध्यक्ष पाल मेरठ में रैली के दौरान सैनी, पाल, प्रजापति, कश्यप, धीमर, बिंद, जोगी समेत अन्य पिछड़ी जातियों को रिझाते नजर आए। उन्होंने निकाय चुनाव से पहले ओबीसी आरक्षण को लेकर भाजपा की घेरेबंदी करते हुए सपा और अन्य दलों को भी निशाने पर लिया है। पश्चिम उप्र में अनुसूचित युवा चेहरा एवं भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने बसपा के सामने बड़ी चुनौती पेश की है, ऐसे में मायावती अपने मूल वोटरों को संजोकर रखने के लिए आक्रामक रणनीति के साथ उतरेंगी।

मजबूत गढ़ में हांफ गया हाथी

गौतमबुद्धनगर जिले में बादलपुर गांव की मायावती ने बिजनौर से लोकसभा चुनाव लड़कर राजनीतिक पारी शुरू की, और 1995 में भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बन गईं। 2007 में पूर्ण बहुमत के साथ चौथी बार मुख्यमंत्री बनीं। 2012 में सूबे की सत्ता गंवाने के बाद पश्चिम यूपी में बसपा का प्रदर्शन मजबूत रहा। लेकिन वर्ष 2014 में बसपा का तंबू उखड़ गया। वर्ष 2017 विस चुनाव में पार्टी 17 और 2022 विस चुनावों में पार्टी सिर्फ एक विधायक पर सिमट गई। राजनीतिक अस्तित्व पर संकट के बादल छाने के बाद पार्टी नई सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले के साथ एक बार फिर चुनावी जमीन बनाने में जुटी है।

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