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Famous Temples In Meerut: औघड़नाथ मंदिर, क्रांति के उद्गम केंद्र में उमड़ता है आस्था का सैलाब, पूरी होती हैं मनोकामनाएं

Famous Temples In Meerut मेरठ में बाबा औघड़नाथ मंदिर वेस्‍ट यूपी में आस्‍था का बड़ा केंद्र है। 10 मई 1857 को यहीं से क्रांति का बिगुल बजा था। यह मंदिर काली पल्टन के नाम से भी प्रसिद्ध् है। सावन के महीने में यहां पर बड़ी संख्‍या में कांवड़िए आते हैं।

By Prem Dutt BhattEdited By: Updated: Mon, 20 Jun 2022 11:49 AM (IST)
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Aughadnath Temple मेरठ में औघड़नाथ मंदिर कैंट क्षेत्र में स्‍थित है और इसकी काफी मान्‍यता है।
मेरठ, जागरण संवाददाता। देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र औघड़नाथ मंदिर आस्था का प्रमुख केंद्र है। छावनी में यह मंदिर स्थित है। यहां पर वर्तमान में राधा कृष्ण मंदिर और दुर्गा मंदिर भी हैं। अंग्रेजों के समय से यह मंदिर काली पल्टन के नाम से भी प्रसिद्ध् है। ऐतिहासिक मंदिर तक पहुंचना बेहद आसान है।

यह है मंदिर का इतिहास

मेरठ छावनी में रेस कोर्स रोड पर मौजूद मराठाकालीन औघडऩाथ मंदिर प्रथम स्वाधीनता संग्राम की क्रांति का प्रतीक है। मराठों के समय में कई पेशवा विजय यात्रा से पूर्व मंदिर में उपस्थित होकर भगवान शिव की आराधना करते थे। जनश्रुतियां हैं कि इस मंदिर में माथा टेकने के बाद जब मराठा लड़ाके रणभूमि के लिए निकलते थे तो जीत सुनिश्चित होती थी। मंदिर के ठोस पौराणिक तथ्य तो ज्यादा नहीं मिलते, लेकिन इसका ऐतिहासिक महत्व इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों से दर्ज हैं।

मराठाओं से छीन लिया था

1803 के बाद अंग्रेजों ने गंगा-जमुना के दोआब के हिस्से को मराठाओं से छीन लिया था और मेरठ के इसी हिस्से में अपनी छावनी बनाई थी। बसावट के समय औघडऩाथ मंदिर का यह इलाका भारतीय पलटनों के हिस्से में आया। यहां ब्रितानी फौज ने प्रशिक्षण केंद्र बना रखा था। यहां मंदिर के साथ एक कुआं भी था, जहां भारतीय सैनिक खाली समय में एकत्रित होते थे। यह निशानियां 1944 तक मिलती है।

जवान पीते थे कुएं पर पानी

भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का उद्गम यहीं से हुआ। अंग्रेजी शासनकाल में यहां स्वतंत्रता सेनानी आते, ठहरते व भारतीय पल्टनों के अधिकारियों से गुप्त मंत्रणा करते थे। अंग्रेजों की यातना झेलने के बाद एक फकीर (साधु) उन दिनों यहीं आकर रहने लगा था। यहीं पर उसकी लगातार मुलाकातें भारतीय सैनिकों से होने लगीं। प्रवचन और आपसी बातचीत के जरिये उस फकीर ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का बीज बोने का काम किया। यहां कुएं पर सेना के जवान पानी पीते थे।

1857 को क्रांति का बिगुल

1856 में गाय की चर्बी लगे कारतूस आने पर तत्कालीन पुजारी ने सेना को पानी पिलाने से मना कर दिया। ऐसे में निर्धारित 31 मई से पहले ही 10 मई 1857 को क्रांति का बिगुल बजा। बताते हैं 1944 तक प्रशिक्षण केंद्र से लगा हुआ वृक्षों के जंगल में छोटा-सा शिव मंदिर व उसके पास कुआं विद्यमान था।

2 अक्टूबर 1968 को नए मंदिर का शिलान्यास ब्रह्मलीन ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य कृष्णबोधाश्रम ने किया। 13 फरवरी 1972 को नई देव मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा हुई। 14 फरवरी 1982 को स्वर्ण कलश प्रतिष्ठा की गई। श्रावण मास में यहां श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है। लाखों शिवभक्त शिवरात्रि पर अभिषेक करते हैं। श्रावण मास के सोमवारों को भगवान शंकर की दिव्य झांकियों के दर्शन, भंडारे होते हैं।

मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं बाबा

पुजारी श्री धर त्रिपाठी ने बताया कि यह मंदिर एक प्राचीन सिद्धपीठ है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग स्वयंभू है, जो शीघ्र फलप्रदाता है। अनन्तकाल से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करने वाले औघड़दानी शिवस्वरूप हैं। इसी लिए मंदिर को औघडऩाथ मंदिर कहते हैं।

जब नाम पड़ गया काली पलटन मंदिर

काली पलटन मंदिर का यह नाम यहां पर तैनात भारतीय सैनिकों की पलटन की वजह से पड़ा। अंग्रेज भारतीयों की पलटन को काली (ब्लैक) प्लाटून कहते थे, जो अपभ्रंश होकर काली पलटन कहलाने लगा। चूंकि इसी मंदिर के आसपास भारतीय सैनिकों की दो पैदल प्लाटूनें रहती थीं और भारतीय सिपाही यहां रोजाना पूजा-पाठ के मकसद से आते थे, इसलिए इस मंदिर की पहचान काली पलटन मंदिर के रूप में हो गई।

शहीद स्मारक

जिस कुएं का प्रयोग प्याऊ के रूप में होता उसे ढ़क कर शहीद स्मारक बनाया गया है। शहीद बेदी की नींव रखने के लिए 1971 में पाकिस्तानी जनरल नियाजी से आत्मसमर्पण कराने वाले ले. जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा यहां 1972 में पहुंचे थे। हर साल 10 मई को यहां शहीदों को पुष्पांजलि अर्पित की जाती है।

भोले का भव्य दरबार

54 वर्ष बाद औघड़नाथ मंदिर को भव्य रूप दिया गया जा रहा है। वृंदावन के प्रेममंदिर की तर्ज पर प्रदक्षिणा पथ को नक्काशीदार मेहराबों से सजाया गया है। नंदी द्वार पर नया द्वार बनाया गया है। प्रथम तल तक पुराने पत्थरों की जगह नए पत्थरों को लगाया गया है। वर्तमान में गर्भ गृह में पत्थरों की घिसाई का काम चल रहा है।

औघडऩाथ मंदिर का वास्तु

शिखर: 110 फुट

स्वर्ण कलश: 20 फुट

गर्भगृह: 144 वर्ग फुट

परिक्रमा मंडप: 35 फुट लंबा, 35 फुट चौड़ा

राधा गोविंद मंदिर और दुर्गा मंदिर

मंदिर परिसर को नया रूप देने के क्रम में 1987 में षट कोणीय सत्संग भवन का शिलान्यास किया गया। यहां पर सत्संग प्रवचन के कार्यक्रम होते हैं। 13 फरवरी 1995 को भगवान राधा गोविंद के विगृहों की प्राण प्रतिष्ठा हुई। होली पर ठाकुर जी चांदी की पालकी में विराजमान होकर आसपास के क्षेत्र में होली खेलने जाते हैं। जन्माष्टमी पर्व पर विशेष फूल बंगला सजाया जाता है।मंदिर समिति के महामंत्री सतीश सिंघल ने बताया कि चार मई 2001 को राधा गोविंद मंडप के शिखरों पर स्वर्ण मंडित कलशों को आरोहित किया गया। भक्तों की आस्था को देखते हुए 23 फरवरी 2015 को दुर्गा शक्ति पीठ की प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान् संपन्न हुआ। मंदिर के गुबद पर की गई नक्काशी का कार्य देखते ही बनता है। अभय मुद्रा में सिंह पर सवार देवी भक्तों के हर दुख और कष्ट को हर लेती है।नवरात्र में यहां पर विशेष पूजन और सज्जा होती है। 

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