Famous Temples In Baghpat: श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है परशुरामेश्वर महादेव मंदिर, भक्तों की मनोकामनाएं होती हैं पूर्ण
Famous Temples in Baghpat परशुरामेश्वर महादेव मंदिर की वजह से उत्तर प्रदेश के बागपत जिले का पुरामहादेव गांव बसा है। मान्यता है कि आज जहां परशुरामेश्वर पुरामहादेव मंदिर है वहां पहले कजरी वन हुआ करता था। इसी वन में जमदग्नि ऋषि अपनी पत्नी रेणुका सहित आश्रम में रहते थे।
By Parveen VashishtaEdited By: Updated: Tue, 21 Jun 2022 07:45 AM (IST)
बागपत, जागरण संवाददाता। बागपत के पुरामहादेव गांव स्थित परशुरामेश्वर महादेव मंदिर लाखों श्रद्धालुओं की आस्था केंद्र है। महादेव का यह प्राचीन मंदिर है। लाखों शिवभक्त श्रावण और फाल्गुन के माह में हरिद्वार से कांवड़ में गंगा का पवित्र जल से भगवान आशुतोष का अभिषेक करते हैं। भक्तों की यहां भगवान सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। सामान्य दिनों में भी भक्तों का तांता लगा रहा है। परशुरामेश्वर महादेव मंदिर में श्रावण माह में शिवभक्तों की अपार भीड़ उमड़ती है।
यह है प्राचीन मान्यता
मान्यता है कि जहां पर परशुरामेश्वर पुरामहादेव मंदिर है, यहां काफी पहले कजरी वन हुआ करता था। इसी वन में जमदग्नि ऋषि अपनी पत्नी रेणुका सहित अपने आश्रम में रहते थे। रेणुका प्रतिदिन कच्चा घड़ा बनाकर हिंडन नदी नदी से जल भर कर लाती थी और शिव को अर्पण करती थी। हिंडन नदी, जिसे पुराणों में पंचतीर्थी कहा गया है और हरनन्दी नदी के नाम से भी विख्यात है जो मंदिर के पास से ही गुजर रही है।
परशुरामेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास
प्राचीन समय में एक बार राजा सहस्त्र बाहु शिकार करते हुए ऋषि जमदग्नि के आश्रम में पहुंचे जहां ऋषि अनुपस्थिति में उनकी पत्नी रेणुका ने कामधेनु गाय की कृपा से राजा का पूर्ण आदर सत्कार किया। राजा उस अद्भुत गाय को बलपूर्वक वहां से ले जाना चाहते थे, लेकिन वह ऐसा करने में सफल नहीं हो सके। अन्त में राजा गुस्से में रेणुका को ही बलपूर्वक अपने साथ हस्तिनापुर अपने महल में लेजाकर बंधक बना लिया। राजा की रानी ने अवसर पाते ही अपनी छोटी बहन द्वारा रेणुका को मुक्त करा दिया। रेणुका ने वापस आकर सारा वृतान्त ऋषि को कह सुनाया, परन्तु ऋषि ने एक रात्रि दूसरे पुरूष के महल में रहने के कारण रेणुका को ही आश्रम छोड़ने का आदेश दे दिया। रेणुका ने अपने पति से बार-बार प्रार्थना की कि वह पूर्णता पवित्र हैं तथा वह आश्रम छोड़कर नहीं जाएंगीं। अगर उन्हें विश्वास नहीं तो वे अपने हाथों से उसे मार दें, जिससे पति के हाथों मरकर वह मोक्ष को प्राप्त हो जाए। परन्तु ऋषि अपने आदेश पर अडिग रहे।
ऋषि ने अपने तीन पुत्रों को उनकी माता का सिर धड़ से अलग करने को कहा, लेकिन उनके पुत्रों ने मना कर दिया। चौथे पुत्र परशुराम ने पितृ आज्ञा को अपना धर्म मानते हुए अपनी माता का सिर धड़ से अलग कर दिया। बाद में भगवान परशुराम को इसका घोर पश्चाताप हुआ। उन्होंने थोड़ी दूर पर ही घोर तपस्या करनी आरम्भ कर दी तथा वहां पर शिवलिंग स्थापित कर पूजा करने लगे। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर आशुतोश भगवान शिव ने उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन दिए तथा वरदान मांगने को कहा। भगवान परशुराम ने अपनी माता को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की। भगवान शिव ने उनकी माता को जीवित कर दिया तथा एक परशु (फरसा) भी वरदान स्वरूप दिया तथा कहा जब भी युद्ध के समय इसका प्रयोग करोगे तो विजय होगे। प्राचीन मान्यता है कि भगवान परशुराम वहीं पास के वन में एक कुटिया बनाकर रहने लगे थे। थोड़े दिन बाद ही परशुराम ने अपने फरसे से सम्पूर्ण सेना सहित राजा सहस्त्रबाहु को मार दिया। जिस स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की थी वहां एक मंदिर भी बनवा दिया।
लंडौरा ने कराई खुदाई तो प्रकट हुथा शिवलिंगकालान्तर मंदिर खंडहरों में बदल गया। काफी समय बाद एक दिन लंडौरा की रानी इधर घूमने निकली तो उसका हाथी वहां आकर रूक गया। महावत की बड़ी कोशिश के बाद भी हाथी वहां से नहीं हिला। तब रानी ने सैनिकों को वह स्थान खोदने का आदेश दिए। खुदाई में वहां एक शिवलिंग प्रकट हुआ, जिस पर रानी ने एक मंदिर बनवा दिया। यही शिवलिंग तथा इस पर बना मंदिर आज परशुरामेश्वर मंदिर के नाम से विख्यात है। इसी पवित्र स्थल पर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी कृष्ण बोध आश्रम जी महाराज ने भी तपस्या की, तथा उन्हीं की अनुकम्पा से पुरामहादेव महादेव समिति भी गठित की गई जो इस मंदिर का संचालन करती है।
महादेव का होता है अलौकिक श्रृंगारमंदिर के मुख्य पुजारी पंडित जयभगवान शर्मा ने बताया कि हर रोज मंदिर में सैकड़ों की संख्या में भक्त आकर जलाभिषेक करते है। मंदिर में सुबह चार बजे और शाम को सूर्यास्त होने के बाद पूजन किया जाता है। मंदिर का अलौकिक श्रृंगार होता है, जिसकी छठा ही निराली होती है। अब मंदिर में श्रावण माह की शिवरात्रि की तैयारियां शुरू हो गई है। सावन के लगते ही भक्तों का संख्या बढ़ जाएगी।
यह मंदिर तक जाने के मार्गपरशुरामेश्वर महादेव मंदिर की वजह से पुरामहादेव गांव बसा है। महादेव के दर्शन के लिए यहां चारों ओर से रास्ते है। मेरठ जनपद के मोहम्मदपुर-नंदपुर मार्ग से होते हुए गांव पहुंच सकते है। इसके अलावा जिले में कैड़वा-मवीकलां, कल्याण-थरोट, किनौनी-ओकसिया, अमीनगर सराय-बुढ़सैनी, बालैनी-हरिया खेड़ा मार्ग से होते हुए मंदिर में भगवान आशुतोष के दर्शन किए जा सकते है। मंदिर में बागपत जनपद से ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के कई जिले, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और दिल्ली से यहां यहां भक्त आकर मन्नते मांगते है। कई भक्त तो विदेशों से भी मंदिर में समय-समय पर आकर जलाभिषेक करते है। यह मंदिर मेरठ से 36 किमी और बागपत से 30 किमी दूर स्थित है।
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