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देश की पहली रोबोट लैब से दवा उत्पादन में आएगी नई क्रांति

हैदराबाद में देश की पहली और दुनिया की दूसरी रोबोट ड्रग डिस्कवरी लैब खुलने जा रही है। इस लैब में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की मदद से दवाओं के मॉलिक्यूल पर होने वाले खर्च को एक चौथाई और क्लीनिकल ट्रायल के समय को 10 साल से घटाकर सिर्फ एक साल किया जा सकेगा। इससे दवा उत्पादन के क्षेत्र में बड़ी क्रांति आएगी।

By pradeep diwedi Edited By: Nitesh Srivastava Updated: Thu, 07 Nov 2024 06:07 PM (IST)
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इस तरह से लैब में आटोमैटिक कार्य करेगा रोबोट। प्रतीकात्मक फोटो
प्रदीप द्विवेदी, मेरठ। गंभीर बीमारियों की दवाओं की खोज में जुटे भारतीय विज्ञानी दुनिया के सामने बड़ी लकीर खींचने को तैयार हैं। हैदराबाद में देश की पहली और चीन के बाद दुनिया की दूसरी आटोमैटिक रोबोट ड्रग डिस्कवरी लैब खुलेगी, जिसमें ड्रग के मालीक्यूल पर एक चौथाई खर्च में क्लीनिकल ट्रायल 10 वर्ष की जगह सिर्फ एक वर्ष में पूरा किया जा जाएगा।

इससे दवा उत्पादन के क्षेत्र में नई क्रांति आएगी। इसमें इंसान सिर्फ कमांड देगा, बाकी काम रोबोट करेंगे। IIT मुंबई और ड्रग रिसर्च में एआइ का प्रयोग करने वाली विश्व की अग्रणी अमेरिकी कंपनी बोल्टमैन ने हाथ मिलाया है। केंद्र सरकार का जैव प्रौद्योगिकी विभाग इसे अनुदान देगा।

लैब करेगी डाटा सार्वजनिक, दवा कंपनियों को मिलेगी दिशा

आइआइटी कानपुर से बायोलाजिकल इंजीनियरिंग में पीएचडी और आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से आर्टिफिसियल इंटलीजेंस (एआइ) में पढ़ाई करने वाले मेरठ निवासी परितोष शर्मा बोल्टमैन कंपनी के को-फाउंडर हैं। उन्होंने बताया कि उनकी कंपनी बीमारी को दूर करने वाली प्रोटीन के मालीक्यूल तैयार करेगी।

परितोष शर्मा 

शोध के बाद केंद्र सरकार संबंधित डाटा सार्वजनिक करेगी, जिसका उपयोग देशभर की दवा निर्माता कंपनियां कर सकेंगी। इससे देश में दवा की गुण्वत्ता एवं उत्पादन में बड़ा परिवर्तन आएगा। विशेषज्ञों का कहना है कि सबसे ज्यादा समय व खर्च मालीक्यूल बनाने व शोध में लगता है। अभी यह कंपनी एआइ की मदद से कार्डियोवैस्कुलर, सोरायसिस, फेफड़ों का कैंसर और आटो इम्यून जैसी गंभीर बीमारियों की दवाओं की खोज पर काम कर रही है।

मोदी की बायो ई-3 नीति से खुली लैब की राह

केंद्र सरकार ने जुलाई 2024 में बायो ई-3 नीति लागू की, जिसमें जैव-आधारित रसायन, एंजाइम, खाद्य पदार्थ, स्मार्ट प्रोटीन, जैव चिकित्सा, जलवायु अनुकूल कृषि, कार्बन कैप्चर और उसका उपयोग एवं समुद्री व अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं को पीपीपी (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) माडल पर आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया गया है।

एआइ की मदद से ड्रग रिसर्च करने वाली कंपनी बोल्टमैन ने अमेरिका की एक दवा निर्माता कंपनी के लिए मालीक्यूल का क्लीनिकल ट्रायल तेजी से संपन्न किया। इसका डाटा भारत सरकार से साझा किया गया, जिसके आधार पर हैदराबाद में आटोमैटिक ड्रग डिस्कवरी लैब को हरी झंडी मिली। परितोष ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बायो ई-3 नीति से प्रेरित होकर कंपनी ने रोबोट लैब खोलने का संकल्प लिया है।

नोबेल पुरस्कार विजेता ने भी साबित की एआइ की उपयोगिता

परितोष ने इस वर्ष ड्रग डिस्कवरी में एआइ के प्रयोग पर नोबेल पुरस्कार जीत चुके 48 वर्षीय डेमिस हसाबिस की कंपनी डीप माइंड के लिए भी काम किया है। यहां एआइ की मदद से विभिन्न प्रोटीन का स्ट्रक्चर तैयार कर जनहित में सार्वजनिक किया गया। डेमिस ने दिखाया कि अब लैब में मैनुअल प्रक्रिया के बजाय एआइ की सहायता से दवा अनुसंधान में बड़ी क्रांति लाई जा सकती है।

दुनिया की इकलौती लैब चीन में इनसिलिसको मेडिसिन कंपनी की है। यह ऐसी लैब होती है, जिसमें समस्त कार्य रोबोट करते हैं। इसमें इंसान सिर्फ कमांड और प्रोग्रामिंग का नेतृत्व करता है। इसमें गलती की आशंका सूक्ष्मतम होती है। अगर रोबोट से कोई त्रुटि हो भी गई तो उसे पकड़कर सुधारा जा सकता है।

-परितोष, को-फाउंडर, बोल्टमैन कंपनी

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