सपने अपने : एमडीए सचिव का बढ़ा ओहदा, कैसे भी अन्न देवता को मनाओ Meerut News
MDA में अब तक यही परंपरा रही है कि सचिव के पास करने के लिए बहुत ज्यादा बचता नहीं था। उपाध्यक्ष के पद पर बैठाए जाते रहे हैं आइएएस। ऐसे में शक्ति का विकेंद्रीकरण कम ही हो पाता था।
मेरठ, [प्रदीप द्विवेदी]। एमडीए में अब तक यही परंपरा रही है कि सचिव के पास करने के लिए बहुत ज्यादा बचता नहीं था। उपाध्यक्ष के पद पर बैठाए जाते रहे हैं आइएएस। ऐसे में शक्ति का विकेंद्रीकरण कम ही हो पाता था। अब जब डीएम के पास ही उपाध्यक्ष का अतिरिक्त प्रभार है तो उनके पास समय है नहीं कि वह एमडीए जाकर वहां की तीन-पांच की गणित में उलझें। मौजूदा डीएम हाल ही में आए हैं, और आधे घंटे से ज्यादा एमडीए भवन में अब तक बैठे भी नहीं हैं। ऐसे में सचिव को ही ज्यादातर काम मिल गया है। अब मिनट दर मिनट उपाध्यक्ष से किसी अधिकारी की बात तो हो नहीं सकती, जैसा पहले था। महत्वपूर्ण फाइलें कलक्ट्रेट से सैनिटाइज होकर लौटती हैं। जब से ऐसा हुआ है, सचिव की पूछताछ ज्यादा बढ़ गई है। दफ्तर में मिलने वालों की पर्चियां अब ज्यादा इंतजार कर रही हैं।
कैसे भी अन्न देवता को मनाओ
दिल्ली मेरठ एक्सप्रेस-वे से कभी इंद्र देवता नाराज हो जाते हैं तो कभी अन्न देवता। जिस प्रोजेक्ट को 15 महीने में पूरा किया जाना था, उसे 30 महीने बाद भी पूरा नहीं किया जा सका है। इससे मेरठ से दिल्ली नजदीक नहीं आ पा रही। कभी बारिश तो कभी प्रदूषण और लॉकडाउन ने काम रुकवाया। जिन किसानों का खेत मेरठ से डासना तक के ग्रीनफील्ड एक्सप्रेस-वे के लिए खरीदा गया था, वे संतुष्ट नहीं हैं। एक समान मुआवजे की मांग लेकर कई बार काम रुकवा चुके हैं। मतलब जो मुआवजा डासना के शहरी क्षेत्र में दिया गया है, वही जंगल क्षेत्र के खेत के लिए भी दिया जाए। एनएचएआइ तैयार नहीं है, मगर किसान कहते हैं कि ऐसा ईस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेस-वे के अधिग्रहण के समय हुआ था, ...तो अब दिल्लीगामी ग्रीनफील्ड एक्सप्रेस-वे के लिए क्यों नहीं किया जा सकता है।
मेरठ में भी अटल स्मृति
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन के बाद मेरठ में भी मांग उठी थी कि कुछ प्रतीक चिह्न यहां पर भी अटल के नाम हों। किसी ने पार्क का सुझाव दिया था तो किसी ने अटल उपवन का। हालांकि समय बीत गया, पार्टी के लोग भी भूल गए। हालांकि अब जिला पंचायत ने स्मृति देने का फैसला किया है। संयोग है कि जिला पंचायत अध्यक्ष भी भाजपा के हैं। एक द्वार का नाम अटल के नाम पर रखा जाएगा। वहां पर प्रतिमा भी स्थापित की जाएगी। बड़ी बात यह है कि यह द्वार बनेगा ऐतिहासिक नौचंदी मेला स्थल के प्रवेश द्वार के पास। ऐसे में जब भी मेले का आयोजन होगा, तो दूर-दूर से आए लोग इस स्मृति को संजोकर वापस जाएंगे। अटल जी का मेरठ से सीधा नाता भले ही न रहा हो, लेकिन वह नेता ही ऐसे थे जिसे पूरे देश ने सम्मान दिया।
124 गांवों में विकास की बदनसीबी
वर्षों पहले प्राधिकरण क्षेत्र का विस्तार करने की योजना बनी। शहर के आसपास के 124 गांवों को प्राधिकरण के विस्तारित क्षेत्र में शामिल कर लिया गया। प्राधिकरण क्षेत्र में शामिल होते ही यह बोल दिया गया कि अब जो काम इन क्षेत्रों में होंगे, उनमें एमडीए के नियम का पालन करना होगा। मतलब सीधा यह कि मानचित्र स्वीकृत कराना होगा। यह बोल दिया गया, मगर एमडीए मानचित्र नहीं दे सका, क्योंकि शासन से कई साल बाद भी अनुमति नहीं मिली है। वहां न एमडीए मानचित्र पास कर रहा है, न ही जिला पंचायत। सुनियोजित विकास का सपना पूरा नहीं हुआ है। जिला पंचायत फिर अड़ गया है कि जब तक शासन से कोई निर्णय नहीं होता, तब तक जिला पंचायत ही वहां का मानचित्र स्वीकृत करेगा, और उससे संबंधित शुल्क लेता रहेगा। उधर, एमडीए स्वीकृति के लिए बार-बार शासन को अनुरोध भेज रहा है।