विश्वविद्यालय में आया काला कड़कनाथ, बहुत झगड़ालू है और स्वादिष्ट भी
मेरठ के कृषि विश्वविद्यालय में काला कड़कनाथ आया है। इसकी हड्डियों से लेकर रक्त तक काला है। यह बेहद झगड़ालू किस्म का है और ताकतवर भी है।
By Ashu SinghEdited By: Updated: Tue, 15 Jan 2019 11:17 AM (IST)
मेरठ, [संदीप शर्मा]। काला रंग, काला मांस, काला खून, काली हड्डियां, ताकतवर अंडे और जायकेदार गोश्त। कड़कनाथ नस्ल के मुर्गे का मांस इन्हीं खूबियों के कारण देशभर में डिमांड में है। सेंट्रल पोल्ट्री डेवलपमेंट आर्गेनाइजेशन चंडीगढ़ से इस नस्ल के 50 मुर्गे-मुर्गियों को मेरठ के सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि के पोल्ट्री रिसर्च एंड ट्रेनिंग सेंटर में भी लाया गया है।
ढाबों से लेकर फाइव स्टार होटल तक मांग
कड़कनाथ नस्ल मुख्यत: मध्य प्रदेश के झाबुआ और झारखंड की है। मेलेनिन पिगमेंट की अधिकता इसके रंग को स्याह बना देती है। अपने विशिष्ट आकार और स्याह रंग के कारण पिछले कुछ दिनों से यह सोशल मीडिया पर भी छाया रहा। दिल्ली-एनसीआर, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ के ढाबों से लेकर फाइव स्टार होटलों तक इस नस्ल के चिकन की डिश स्पेशल मेन्यू में शामिल है। कीमत रहती है एक हजार से ढाई हजार रुपये तक।
कम खुराक में रहता है सेहतमंद
पोल्ट्री रिसर्च एंड ट्रेनिंग सेंटर के प्रभारी डॉ. डीके सिंह का कहना है कि कड़कनाथ नस्ल के मुर्गा-मुर्गियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता अन्य नस्लों के मुकाबले कई गुना होती है, इसलिए इनका पालन किसानों के लिए अपेक्षाकृत मुफीद भी है। डॉ. सिंह का कहना है कि इनमें आम रोग तो दूर, बर्ड फ्लू जैसी बीमारी का खतरा भी काफी कम है। इन मुर्गो की खुराक भी अन्य नस्लों से 30 प्रतिशत तक कम है। झगड़ालू स्वभाव के कारण यह अपेक्षाकृत ताकतवर भी होता है।
सौ रुपये तक का अंडा
इसका अंडा 40 से 100 रुपये तक और मांस एक हजार से तीन हजार रुपये प्रतिकिलो तक बिक जाता है। बाहर के तमाम किसानों ने छोटे स्तर से इसका पालन शुरू किया और टर्नओवर लाखों तक पहुंचाया।
किसानों के लिए फायदेमंद
डॉ. डीके सिंह का कहना है कि पोल्ट्री सेंटर में कड़कनाथ नस्ल को केवल छात्रों के शिक्षण और किसानों के प्रशिक्षण के लिए लाया गया है। भूमिहीन किसान कम पूंजी में इसका व्यवसाय शुरू कर सकते हैं। इसके चूजे सेंट्रल पोल्ट्री डेवलपमेंट आर्गेनाइजेशन चंडीगढ़, पक्षी विज्ञान संस्थान बरेली और झारखंड, मध्य प्रदेश में इसके उत्पत्ति स्थल से प्राप्त किए जा सकते हैं।
ढाबों से लेकर फाइव स्टार होटल तक मांग
कड़कनाथ नस्ल मुख्यत: मध्य प्रदेश के झाबुआ और झारखंड की है। मेलेनिन पिगमेंट की अधिकता इसके रंग को स्याह बना देती है। अपने विशिष्ट आकार और स्याह रंग के कारण पिछले कुछ दिनों से यह सोशल मीडिया पर भी छाया रहा। दिल्ली-एनसीआर, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ के ढाबों से लेकर फाइव स्टार होटलों तक इस नस्ल के चिकन की डिश स्पेशल मेन्यू में शामिल है। कीमत रहती है एक हजार से ढाई हजार रुपये तक।
कम खुराक में रहता है सेहतमंद
पोल्ट्री रिसर्च एंड ट्रेनिंग सेंटर के प्रभारी डॉ. डीके सिंह का कहना है कि कड़कनाथ नस्ल के मुर्गा-मुर्गियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता अन्य नस्लों के मुकाबले कई गुना होती है, इसलिए इनका पालन किसानों के लिए अपेक्षाकृत मुफीद भी है। डॉ. सिंह का कहना है कि इनमें आम रोग तो दूर, बर्ड फ्लू जैसी बीमारी का खतरा भी काफी कम है। इन मुर्गो की खुराक भी अन्य नस्लों से 30 प्रतिशत तक कम है। झगड़ालू स्वभाव के कारण यह अपेक्षाकृत ताकतवर भी होता है।
सौ रुपये तक का अंडा
इसका अंडा 40 से 100 रुपये तक और मांस एक हजार से तीन हजार रुपये प्रतिकिलो तक बिक जाता है। बाहर के तमाम किसानों ने छोटे स्तर से इसका पालन शुरू किया और टर्नओवर लाखों तक पहुंचाया।
किसानों के लिए फायदेमंद
डॉ. डीके सिंह का कहना है कि पोल्ट्री सेंटर में कड़कनाथ नस्ल को केवल छात्रों के शिक्षण और किसानों के प्रशिक्षण के लिए लाया गया है। भूमिहीन किसान कम पूंजी में इसका व्यवसाय शुरू कर सकते हैं। इसके चूजे सेंट्रल पोल्ट्री डेवलपमेंट आर्गेनाइजेशन चंडीगढ़, पक्षी विज्ञान संस्थान बरेली और झारखंड, मध्य प्रदेश में इसके उत्पत्ति स्थल से प्राप्त किए जा सकते हैं।
मुर्गे की खासियत
- इसका मांस स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है।
- मांस खुशबूदार और जायके में कुछ अलग होता है।
- अन्य नस्लों के मुकाबले ज्यादा देर में पकता है।
- अन्य नस्ल के मुकाबले मांस ज्यादा देर तक फ्रेश रहता है।
- अन्य मुर्गो के मुकाबले प्रोटीन लगभग चार गुना ज्यादा।
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