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शिक्षा ऋषि स्वामी कल्याणदेव महाराज की दिनचर्या का खास हिस्‍सा था पैदल चलना, जीवनभर नहीं बैठे रिक्शा में

Swami Kalyan dev birth anniversary शुकतीर्थ के जीर्णोद्धरक स्वामी कल्याण देव महाराज का जन्म 21 जून 1876 को उत्‍तर प्रदेश के बागपत जिले के कोताना गांव उनकी ननिहाल में हुआ था। उनका पालन-पोषण मुजफ्फरनगर के पैतृक गांव मुंडभर में हुआ। उन्‍हें माता-पिता से धार्मिक शिक्षा मिली।

By Parveen VashishtaEdited By: Updated: Tue, 21 Jun 2022 05:58 PM (IST)
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शुकतीर्थ के जीर्णोद्धारक स्वामी कल्याणदेव जी महाराज

मुजफ्फरनगर, जागरण संवाददाता। महान संत वीतराग स्वामी कल्याणदेव महाराज का दीर्घायु जीवन जितना दुर्लभ है, उतना ही प्रेरक भी। पैदल चलना, शाकाहारी भोजन करना और निष्काम भाव से जन कल्याणार्थ कार्यों में व्यस्त रहना ही उनकी दिनचर्या थी। स्वामी जी जीवनभर रिक्शा में नहीं बैठे। उन्‍होंने भिक्षा के दान से वेस्ट यूपी के ग्रामीण अंचल में अनेक शिक्षण संस्थान खुलवाए। 

बाल्यावस्था में पैदल ही गए थे अयोध्या

शुकतीर्थ के जीर्णोद्धरक स्वामी कल्याण देव महाराज का जन्म 21 जून, 1876 को बागपत जिले के कोताना गांव ननिहाल में हुआ था। उनका पालन-पोषण मुजफ्फरनगर के पैतृक गांव मुंडभर में हुआ। पिता फेरुदत्त जांगिड तथा मां भोई देवी से धार्मिक शिक्षा मिली। दस-बारह वर्ष की आयु में उन्होंने घर त्याग दिया। जिले के कस्बा बुढ़ाना के उकावली गांव में उनकी बुआ ब्याही थीं, उनके फूफा बुल्ला भगत के यहां सत्संग होते थे। रामायण में भरत मिलाप के प्रसंग को सुनकर उन्हें अयोध्या दर्शन की जिज्ञासा हुई और साधु-महात्माओं की मंडली के साथ बाल्यावस्था में पैदल ही अयोध्या निकल गए। वे भगवा जीवन की अनुभूति में ऐसे रम गए कि घर-परिवार का मोह नहीं रहा।

ताउम्र कभी अपने घर नहीं लौटे

मुंडभर गांव त्यागने के बाद स्वामी जी ताउम्र कभी अपने घर नहीं लौटे। काशी, मथुरा और हरिद्वार में साधु-संतों के साथ भ्रमण के उपरांत वे लंबे समय ऋषिकेश रहे। वर्ष 1900 में स्वामी पूर्णानंद से सन्यास की दीक्षा ली। उन्हें पैदल लंबी यात्राएं आनंद देती थी। स्वामी जी शिक्षा की अखंड ज्योति जगाने के लिए पैदल गांव-गांव पहुंचते थे।

शुकतीर्थ से पैदल हरिद्वार जाते थे गुरुदेव: स्वामी ओमानंद

श्री शुकदेव आश्रम के पीठाधीश्वर स्वामी ओमानंद महाराज बताते है पूज्य गुरुदेव लंबे अरसे तक शुकतीर्थ से पैदल हरिद्वार जाते थे। गंगा क्षेत्र के गांवों में नंगे पैर घूमते-घूमते सुबह चार बजे गीता आश्रम, हरिद्वार पहुंचते थे। धार्मिक नगरी के जीर्णोद्धार के समय स्वामी जी का मुजफ्फरनगर से शुकतीर्थ तक बहुत पैदल आना-जाना रहा। पूर्व प्राचार्य राम पाल सिंह बताते हैं कि शिक्षा ऋषि, अपनी संस्था गांधी पालिटेक्निक में वृद्धावस्था में भी नियमित पैदल घूमते रहते थे। श्री शुकदेव आश्रम स्वामी कल्याणदेव सेवा ट्रस्ट अध्यक्ष एवं पूर्व विधायक सोमांश प्रकाश कहते हैं कि स्वामी जी कभी रिक्शा में नहीं बैठते थे। पैदल चलना भी उनके दीर्घायु जीवन की ऊर्जा बना था। वह जन सेवा कार्यों हेतु लखनऊ और दिल्ली जैसे महानगरों में पैदल घूमते थे।

भिक्षा के दान से ग्रामीण अंचल में खुलवाए शिक्षण संस्थान

भिक्षा के दान से स्वामी कल्याणदेव महाराज ने वेस्ट यूपी के ग्रामीण अंचल में शिक्षण संस्थान खुलवाए। इस कारण वीतराग संत को देश में 'शिक्षा ऋषि' के तौर पर ख्याति मिली। उन्‍होंने सरलता, सादगी, त्याग, तप और पुरुषार्थ से निष्काम सेवा की गाथा लिखी। 

भिक्षा का भोजन ग्रहण करते थे स्वामी

शुकतीर्थ में 14 जुलाई, 2004 को ब्रह्मलीन हुए 129 वर्षीय वीतराग स्वामी कल्याणदेव ऐसे संत थे, जो भिक्षा का भोजन ग्रहण करते थे। कल्याणकारी इंटर कालेज बघरा के पूर्व प्रवक्ता गजेंद्र पाल सिंह, रमेश मलिक काजीखेड़ा बताते हैं कि स्वामी जी कहते थे कि साधु को संग्रह नहीं करना चाहिए। वह किसानों और गरीबों के घरों से भिक्षा मंगाकर भोजन करते थे। उनकी दिनचर्या ही योग आधारित थी।

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