पश्चिमी यूपी होगा लोकसभा चुनाव का सबसे अहम किला…, 10 वर्षां में घूमी सियासी सुई; RLD की अंगड़ाई ने बढ़ाई विपक्ष की धड़कन
पश्चिम उत्तर प्रदेश... चुनावी जंग का सबसे अहम किला। पहले इस क्षेत्र में नेता किसानों के मुद्दों को ‘खाद-पानी’ देकर वोटों की फसल काटते थे लेकिन पिछले एक दशक में यहां बहुत कुछ बदला है। किसानों की जमीन पर वर्तमान में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की तरंगें उठ रही हैं। जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव के एलान की घड़ी नजदीक आ रही है वैसे-वैसे चुनावी रंग भी और चटख हो चला है।
संतोष शुक्ल, मेरठ। सूरज से तेज राजनीतिक पारा चढ़ रहा है। सिर्फ एक माह का राजनीतिक परिदृश्य देखें तो 25 जनवरी को बुलंदशहर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनसभा से लेकर 25 फरवरी को मेरठ में युवा चौपाल के बीच भाजपा का चुनावी इंजन पूरी शक्ति से आगे बढ़ रहा है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा की चुनावी यात्रा मुरादाबाद से लेकर बुलंदशहर मथते हुए अलीगढ़ पहुंची और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव इस रथ को लेकर आगरा निकल गए।
रालोद ने भाजपा का साथ पकड़ लिया, जबकि बसपा की खामोशी चुनावी रणनीतिकारों की समझ से परे है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की तरंगों के सामने किसानी मुद्दे गौण हो गए हैं। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष डा. प्रशांत कहते हैं कि 10 वर्ष में राजनीति में भारी उथल-पुथल हुई। किसानों के इर्द गिर्द सिमटी राजनीति अब सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की धुरी पर घूमने लगी।
पश्चिम यूपी की राजनीति में आया ये बदलाव
राजनीति विभाग में विभागाध्यक्ष डा. संजीव शर्मा के निर्देशन में एक टीम पश्चिम यूपी के राजनीतिक बदलाव पर शोध कर रही है। डा. संजीव शर्मा कहते हैं कि ‘2014 में कांग्रेस सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी थी और नरेंद्र मोदी के रूप में जनता ने सकारात्मक बदलाव किया। उसके बाद से भाजपा सांगठनिक ताकत और वैचारिकी से लगातार मजबूत बनी हुई है। इससे राजनीति का चरित्र बदल गया’। अयोध्या की तर्ज पर मथुरा की धार्मिक अंगड़ाई बड़े संकेत दे रही है। भाजपा को घेरने वाले दलों को नए मुद्दों की तलाश है।पश्चिम उत्तर प्रदेश... चुनावी जंग का सबसे अहम किला। पहले इस क्षेत्र में नेता किसानों के मुद्दों को ‘खाद-पानी’ देकर वोटों की फसल काटते थे, लेकिन पिछले एक दशक में यहां बहुत कुछ बदला है। किसानों की जमीन पर वर्तमान में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की तरंगें उठ रही हैं। जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव के एलान की घड़ी नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे चुनावी रंग भी और चटख हो चला है। अभी कैसे अंगड़ाई ले रहा है पश्चिम उत्तर प्रदेश, मेरठ से बता रहे हैं संतोष शुक्ल...
2014 से सभी समीकरण ध्वस्त, कमल ही कमल खिला
मेरठ में क्षेत्रीय महामंत्री हरीश ठाकुर लोकसभा चुनावों का आंकड़ा बनाने में जुटे हैं। बताते हैं कि वर्ष 2009 में उत्तर प्रदेश में सपा के 23, कांग्रेस के 21 और बसपा के 20 सांसद जीते, जबकि भाजपा सिर्फ 11 सीटों पर सिमटी। इसमें पश्चिम और ब्रज क्षेत्र की पांच सीटों पर कमल खिला, लेकिन 2014 में मोदी लहर और हिन्दुत्व की तरंग ने सभी समीकरणों को ध्वस्त कर दिया। पश्चिम क्षेत्र में पहली बार भाजपा ने सभी 14 सीटें जीत लीं।ब्रज क्षेत्र की 13 सीटों में मुलायम परिवार के अक्षय यादव ने फिरोजाबाद, तेज प्रताप यादव ने मैनपुरी और धर्मेंद्र यादव ने बदायूं जीतकर बमुश्किल साख बचाई, जबकि कांग्रेस, बसपा और रालोद का सूपड़ा साफ हो गया। मुजफ्फरनगर की खतौली बाजार में चुनावी चर्चा में व्यापारी अखिल रस्तोगी कहते हैं कि 2019 में सपा, बसपा और रालोद ने हाथ मिलाकर राजनीति का बड़ा प्रयोग किया, फिर तो भाजपा को घेर नहीं पाए। पश्चिम और ब्रज की 27 में से 19 पर भाजपा जीती। बसपा ने सहारनपुर, बिजनौर, नगीना, अमरोहा, जबकि सपा ने मैनपुरी, रामपुर, मुरादाबाद व संभल में जीत दर्ज की।
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