Lok Sabha Election 2024: मुजफ्फरनगर में दिलचस्प हुई 'चौधराहट' की जंग, जानिए क्या हैं मुद्दे और क्या कहते हैं समीकरण?
पौने दो लाख हेक्टेयर भूमि पर फैला गन्ना आठ चीनी मिलें और एशिया की सबसे बड़ी गुड़ मंडी... यही मुजफ्फरनगर को शुगर बाउल यानी चीनी का कटोरा कहे जाने का कारण बने। कागज और स्टील उद्योग ने यहां की आर्थिकी संभाली। इस बार भी मुजफ्फरनगर चर्चा में है। मुजफ्फरनगर के मुद्दे और राजनीतिक समीकरण समझा रहे हैं मेरठ के समाचार संपादक रवि प्रकाश तिवारी...
रवि प्रकाश, मेरठ। आगे बढ़ने से पहले अतीत के पन्ने भी पलट लेते हैं। मिठास के शहर मुजफ्फरनगर को 2013 में किसी की नजर लगी और परिणाम हिंदू-मुस्लिम के बीच दंगा। इस दंगे को देश के राजनीतिक परिवर्तन का कारण भी कहा जाता है। यहां की सिसौली यानी भारतीय किसान यूनियन का हेडक्वार्टर लंबे समय से किसान आंदोलन के केंद्र में है।
विधानसभा चुनाव सपा-रालोद ने मिलकर लड़ा था, अब रालोद भाजपा के साथ है। इस बार मुख्य मुकाबला दो बार से भाजपा के सांसद डॉ. संजीव बालियान और सपा-कांग्रेस गठबंधन के उम्मीदवार हरेंद्र मलिक के बीच दिखता है।
बसपा प्रत्याशी भी बराबर की ताल ठोंकने का कर रहे दावा
बसपा के दारा सिंह प्रजापति भी बराबर की ताल ठोंकने का दावा कर रहे हैं। इस लोकसभा क्षेत्र में सबसे अधिक लगभग साढ़े पांच लाख मुस्लिम मतदाता हैं, लेकिन तीनों बड़े दल में से किसी ने मुस्लिम प्रत्याशी नहीं उतारा। यहां ढाई लाख के करीब वंचित समाज, पौने दो लाख जाट, लगभग 80 हजार वैश्य और करीब इतने ही ठाकुर हैं। ओबीसी के कश्यप, प्रजापति, सैनी बिरादरी भी निर्णायक भूमिका निभाती है। ब्राह्मण, त्यागी समाज को साधने में पक्ष-विपक्ष बराबर का जोर लगाते हैं। पिछले चुनाव में सपा-बसपा और रालोद गठबंधन के अजित चौधरी की भाजपा के संजीव बालियान से कांटे की टक्कर हुई थी। अजित चौधरी लगभग साढ़े छह हजार मतों से हारे थे।
संजीव बालियान भाजपा से ही तीसरी बार मैदान में
दो बार के सांसद और दोनों ही बार केंद्र में मंत्री रह चुके संजीव भाजपा से तीसरी बार मैदान में हैं। इस बार सपा-बसपा के अलग-अलग चुनाव लड़ने और रालोद के साथ आ जाने को भाजपा अनुकूल मान रही है, लेकिन ठाकुर बिरादरी का विरोध व कृषि आंदोलन के बाद से टिकैत परिवार का विपक्षी पाले में खड़ा होना चिंता का विषय बना है। वैसे भाजपा को जाट और ओबीसी पर पूरा भरोसा है। रूठों को मना लेने का दावा और दलित समाज का साथ मिलने का वे गणित लगाए बैठे हैं।
सपा-कांग्रेस के टिकट पर लड़ रहे हरेंद्र मलिक पुराने नेता हैं। 1985 में खतौली और 1989 से 1996 तक बघरा विधानसभा क्षेत्र से जीत की हैट्रिक लगाने वाले हरेंद्र 2002 से 2008 तक राज्यसभा के सदस्य भी रह चुके हैं। वर्तमान में इनके पुत्र पंकज मलिक चरथावल से विधायक हैं। हरेंद्र पिछली बार कांग्रेस के टिकट पर कैराना से पंजे के सहारे लड़े थे, लेकिन उन्हें महज 70 हजार वोटों से ही संतोष करना पड़ा था। मलिक कैंप का मानना है, मुस्लिम, जाट, त्यागी बिरादरी का पूरा साथ मिलेगा। नाराज ठाकुर उनसे जुड़ेगा। बाकी ओबीसी भी उन्हें ही वोट करेंगे। वहीं, मूल रूप से मेरठ में सक्रिय रहे बसपा के उम्मीदवार दारा सिंह प्रजापति पहली बार किस्मत आजमा रहे हैं।
बसपा को दलित वोट बैंक के साथ प्रजापति व अन्य पिछड़ा पर पूरा भरोसा है। दावा है, पश्चिम में बसपा के साथ मुस्लिम के चलने का ट्रेंड टूटेगा नहीं। इस लोकसभा की जनता चुनाव पर खुलकर बात करती है। स्पष्ट, तर्कों के साथ। मुजफ्फरनगर शिव चौक के निकट व्यापारी हाजी एहसान बेरोजगारी, व्यापार विरोधी नीतियों के लिए भाजपा को कटघरे में खड़ा करते हैं। वह कहते हैं, गलत नीतियां हैं कि ईद के चार दिन पहले भी बाजार में सन्नाटा है। महंगाई ने कमर तोड़ रखी है। अशरफ की भी यही राय है। कहते हैं, भाजपा ने गहरी खाई खोद दी है। अपने देश में होकर भी हम बाहरी से हो गए हैं। रोजाना नए कानून बनाकर हमें डराया जा रहा है। नवदीप सिंह चड्ढा भी व्यापारियों के लिए केंद्र सरकार की नीति पर सवाल उठाते हैं, लेकिन मतदान के नाम पर साफ कहते हैं... वोट तो मोदी को ही।
गुड़ मंडी के व्यापारी व फेडरेशन आफ फूड ट्रेडर्स के अध्यक्ष अरुण खंडेलवाल कानून-व्यवस्था को बड़ा मुद्दा बताते हैं। कहते हैं पिछली सरकारों में आए दिन व्यापारियों पर आफत आई रहती थी। कभी लूट, कभी डकैती, कभी अपहरण तो कभी धमकी। हमें सुरक्षा के लिए हर पंद्रहवें दिन धरना देना पड़ता था। अब इसकी नौबत नहीं। बिजली भी खूब सुधरी है। पहले मंडी में दिन में भी धुआं फेंकते जेनरेटर चलते रहते थे, अब ऐसा कुछ नहीं। ब्याही बेटियों ने भी गर्मी की छुट्टियों में बिजली की वजह से आना छोड़ दिया था। इसके अलावा अयोध्या में रामलला को विराजमान देख खासकर महिलाएं भावुक हैं। अब ऐसे में हमारे लिए कोई और मुद्दा बचता है क्या?
ज्यादा दिलचस्पी नहीं ले रहे आदमी इबके: टिकैत
चूंकि सिसौली भी अब चुनावी शक्तिपीठ बन चुका है। हर दल के नेता आशीर्वाद लेने पहुंच चुके हैं, तो हम भी यहां का माहौल समझने पहुंचे। भरी दोपहरी में भी कार्यकर्ताओं से घिरे भाकियू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बालियान खाप के चौधरी नरेश टिकैत बतियाते मिले।
चुनावी माहौल के बारे में पूछा ही था कि केंद्र सरकार पर बरस पड़े, बोले- ‘कोई भी जुबान खोलने को तैयार नहीं। ज्यादा दिलचस्पी नहीं ले रहे आदमी इबके। पता नहीं सरकार से विश्वास उठ गया...विपक्ष कहीं छोड्या ही नहीं। देख नहीं रहे आपलोग। वो एमपी है संजय सिंह, जेल से छूटकर आ रहा। केजरीवाल जेल में ही है अभी। एक मुख्यमंत्री, एक राजा है स्टेट का, दो स्टेटों में उसकी सरकार है। तानाशाही चल रही है, अच्छा नहीं लग रहा है ये सब। सत्ता आ जा... जीत भी हो जा, लेकिन देश टूट जाएगा।’
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