Meerut Famous Sweet: मुंह में लाजवाब मिठास घाेलती है घी-गुड़ तिल की रेवड़ी, बनाने में कढ़ाई और हाथों का जादू
Meerut Famous Sweet लाला राम चंद्र सहाय ने जिस व्यवसाय की नींव डाली थी 1927 में उनके निधन के बाद उनके बेटे लाला फकीर चंद ने आगे बढ़ाया। वर्तमान कारोबार को परिवार के सबसे वरिष्ठ सदस्य सुनील गुप्ता उनके बेटे दीपक जिंदल और दिवंगत विनोद गुप्ता के पुत्र वरुण गुप्ता संभालते हैं। 19 लोगों का पूरा परिवार साकेत में एक साथ रहता है।
By Jagran NewsEdited By: Abhishek SaxenaUpdated: Mon, 24 Jul 2023 03:38 PM (IST)
मेरठ, जागरण टीम (ओम बाजपेयी)। खाने के शौकीनों के जेहन में मेरठ का नाम लेते ही कोई चीज तैरती है तो वह यहां की मशहूर खस्ता रेवड़ी और गजक है। लाला राम चंद्र सहाय और रेवड़ी एक-दूसरे का पर्याय हैं। उन्हीं का नाम शहरभर में रेवड़ी गजक की दुकानों के बोर्ड पर लिखा है। हालांकि लाला राम चंद्र सहाय ने जिस छोटी-सी दुकान से इस खाने के अनूठे आयटम को ईजाद किया था, वह गुदड़ी बाजार में आज भी है। वर्तमान में 18 देशों में इसके स्वाद और जायके आनंद लिया जा रहा है। मेरठ की पहचान से जुड़ी रेवड़ी पर ओम बाजपेयी की रिपोर्ट...
इस तरह बढ़ा स्वाद का सफर
1964 तक आसपास के जिलों से ही नहीं, दूरदराज से लोग गुदड़ी बाजार की दुकान पर रेवड़ी-गजक लेने आने लगे। सुनील गुप्ता ने बताया कि देश के नामी-गिरामी लोगों के यहां से मांग आने लगी। साथ ही गुदड़ी बाजार की तंग गलियों में आना ग्राहकों के लिए भी मुश्किल था। इसलिए पहला आउटलेट 1980 में आबू लेन में खोला गया। 1998 से विदेशों में उनकी रेवड़ी गजक जाने लगी। वर्तमान में टोरंटो, हांगकांग, दुबई, सिंगापुर, अमरीका, इंग्लैंड जैसे 18 देशों में हर वर्ष 20 से 25 हजार किलोग्राम रेवड़ी और गजक सप्लाई होती है।
गुदड़ी बाजार में 1904 तक
लाला राम चंद्र सहाय गर्मी में कढ़ाई के दूध और जाड़ों में गुड़ की चिक्की बनाते और बेचते थे। एक बार ताजा तैयार चक्की का थाल पास रखे तिल के ढेर पर गिर गया। राम चंद्र माल खराब होने से चिंतित हो गए। उन्होंने तिल में गिरी गुड़ की चिक्कियों को फिर से गरम कर कुछ नया बनाने की कोशिश की। उनके पोते 70 वर्षीय सुनील गुप्ता बताते हैं कि उस समय कुछ मुसलमान कारीगर चीनी की रेवड़ी बनाते थे। बाबा जी ने उनसे भी बनाने की विधि सीखी और फिर गुड़ की रेवड़ी तैयार की।मोरार जी देसाई और मुलायम सिंह यादव थे मुरीद
सुनील गुप्ता बताते हैं कि उनकी दुकान से महात्मा गांधी और इंदिरा गांधी के लिए रेवड़ी जाती थी। पूर्व प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई को भी रेवड़ी पसंद थी। खान अब्दुल गफ्फार खां और पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे परवेज मुशर्रफ के लिए रेवड़ी उनकी दुकान से जाती थी। पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के कहने पर वह गाय के दूध के घी से तैयार रेवड़ी बनाते थे, उसमें काजू नहीं डाले जाते थे।
4.50 लाख किलो रेवड़ी गजक का वार्षिक कारोबार
गजक रेवड़ी का कारोबार सितंबर से फरवरी तक चलता है। कारोबार की जब शुरुआत हुई थी, तब स्वयं रामचंद्र सहाय दो कारीगरों के साथ प्रतिदिन 10 से 12 किलो रेवड़ी गजक बना पाते थे। वर्तमान में उनके नाम से चल रहे चार आउट लेट पर सीजन में प्रतिदिन ढाई से तीन हजार किलोग्राम रेवड़ी बनती है। सीजन में 150 कारीगर काम करते हैं। सामान्य दिनों में 50 लोगों काउंटर सेल और मिठाई आदि बनाने का काम करते हैं।कढ़ाई और हाथों का जादू
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से एमबीए वरुण बताते हैं कि खस्ता रेवड़ी बनाने में कढ़ाई और हाथों का मुख्य रोल है। इसमें देशी घी मिलाकर गुड़ को गर्म किया जाता है। तिल मिलाए जाते हैं। गर्म गुड़ की चाशनी को कारीगर खूंटी पर 15 से 20 मिनट तक खींचते हैं। इसे पट्टी खींचना कहते हैं। इससे इसमें करारा और खस्तापन आता है।
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