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कुत्ते और बंदरों से खुद करें दो-दो हाथ, नगर निगम तो हाथ बांधे बैठा है

मेरठ में कुत्तों और बंदरों का आतंक बढ़ता जा रहा है। पशु प्रेमियों का बहाना बनाकर नगर निगम इस समस्या की तरफ से आंख मूंदे बैठा है।

By Ashu SinghEdited By: Updated: Sun, 06 Jan 2019 05:04 PM (IST)
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कुत्ते और बंदरों से खुद करें दो-दो हाथ, नगर निगम तो हाथ बांधे बैठा है
मेरठ, [जागरण स्पेशल]। शहर की 20 लाख आबादी खौफ में है। यह खौफ आवारा कुत्तों और बंदरों ने पैदा कर रखा है। न घरों की छत पर लोग बंदरों से सुरक्षित हैं और न ही सड़कों व पार्को में आवारा कुत्तों से। सड़कों पर आवारा कुत्तों की फौज कब आपको दौड़ा ले, कहा नहीं जा सकता। ऐसे जानवरों से निजात दिलाने की जिम्मेदारी नगर निगम की है लेकिन नगर निगम पशु क्रूरता निवारण अधिनियम के नाम पर अपने हाथ बांधे बैठा है। जागृति विहार सेक्टर सात में पांच वर्ष के बच्चे पर आवारा कुत्ते और मटौर में महिलाओं पर बंदरों के झुंड के हमले के बाद लोग सहमे हैं। बावजूद इसके इन क्षेत्रों में शनिवार को निगम की टीम नहीं पहुंची। आवारा कुत्तों और बंदरों की नसबंदी और वैक्सीनेशन की योजना ठंडे बस्ते में हैं। नसबंदी न होने से आवारा कुत्तों और बंदरों की संख्या लगातार बढ़ रही है। शहर में करीब एक लाख आवारा कुत्ते और 30 हजार से ज्यादा बंदर हैं।

लाइसेंस का प्रावधान लेकिन होता कुछ नहीं
कुत्तों को पालने के लिए नगर निगम अधिनियम में लाइसेंस देने का प्रावधान है। इसके एवज में टीकाकरण करने के साथ शुल्क भी वसूलना होता है लेकिन नगर निगम प्रशासन कुछ नहीं कर रहा। शहर में हजारों घरों में खतरनाक प्रजाति के पालतू कुत्ते हैं लेकिन नगर निगम कभी लाइसेंस का दबाव नहीं बनाता है।
ये मोहल्ले बंदरों से परेशान
पत्थरवालान, बुढ़ाना गेट, सुभाष बाजार, सुभाष नगर, सरायलाल, ठठेरपाड़ा, डालमपाड़ा, स्वामीपाड़ा, कानून गोयान, थापर नगर, सोती गंज, फूलबाग कालोनी, तिलक रोड, मानसरोवर साकेत, शर्मा नगर, जवाहर क्र्वाटर, खैरनगर, लाल का बाजार, शहर सर्राफा, गंगानगर, राधा गार्डन, मीनाक्षीपुरम, कसेरू बक्सर, शताब्दी नगर, माधवपुरम, टीपी नगर, गुरुनानक नगर, ब्रह्मपुरी, भगवतपुरा, मलियाना, शास्त्रीनगर, जागृति विहार, सोफीपुर, शाइन सिटी, कोणार्क, गंगोत्री, पल्लवपुरम, कंकरखेड़ा, शिवलोकपुरी आदि मोहल्लों के लोग बंदरों से परेशान हैं।

नसबंदी और एंटी रेबीज इंजेक्शन से कम नहीं होती आक्रामकता
पशु पालन विभाग के मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. एके सिंह का कहना है कि नसबंदी से कुत्तों और बंदरों की संख्या पर लगाम लगाई जा सकती है। एंटी रैबीज वैक्सीनेशन के बाद काटने पर रेबीज के खतरे से लोगों को बचाया जा सकता है। लेकिन इससे कुत्तों और बंदरों की आक्रामकता में कमी नहीं आती।

ऐसे हैं हालात

  • 95000 कुत्ते शहर में
  • 32000 बंदर हैं शहर में
  • 22000 लोग सालभर में घायल
  • 13000 पहुंचे सरकारी अस्पताल
  • 01 कांजी हाउस (यह भी बंद है)
नियमों में ‘बंधा’ समाधान

  • पशु क्रूरता निवारण अधिनियम के तहत कुत्तों को न मारा जा सकता और न उनका स्थान बदला जा सकता है।
  • जंगल में छोड़ने से वह भूखा मर सकता है। जंगली जानवर भी उसे मार सकते हैं। 
  • सरकार का भी आदेश है कि एबीसी (एनीमल बर्थ कंट्रोल) कार्यक्रम को तत्परता से चलाया जाए।
इनका कहना है 
कुत्तों के खिलाफ कार्रवाई का पशु प्रेमी संगठन विरोध करते हैं। कुत्तों का वैक्सीनेशन तथा नसबंदी के प्रस्ताव पर अभी फैसला किया जाना है। बंदरों के लिए भी अभी कोई प्लान नहीं है। निगम के पास गैंग है लेकिन पशु क्रूरता अधिनियम के चलते सक्रिय नहीं है।
-डॉ. गजेंद्र सिंह, नगर स्वास्थ्य अधिकारी
आवारा कुत्तों और बंदरों को पकड़कर उन्हें सुरक्षित स्थान पर रखने और उनकी देखभाल की जिम्मेदारी नगर निगम प्रशासन की है। कानूनी रूप से उनकी नसबंदी व एंटी रैबीज वैक्सीनेशन होना चाहिए, ताकि इनके द्वारा कोई जनहानि या आर्थिक नुकसान न हो।
-विजयकांत भारद्वाज, अधिवक्ता मेरठ
पशु प्रेमी कुत्तों और बंदरों की नसबंदी व एंटी रैबीज वैक्सीनेशन का विरोध नहीं करते हैं। हम तो चाहते हैं कि इनकी जनसंख्या पर नियंत्रण हो। कुत्तों-बंदरों को जंगल में नहीं छोड़ा जाए।
-अंशुमाली वशिष्ठ, एनीमल केयर सोसायटी

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