Maa Shakambhari Devi Siddhapeeth : 51 शक्तिपीठों में की जाती है सहारनपुर की मां श्री शाकंभरी देवी पीठ की गिनती , जानिए विशेषताएं
Maa Shakambhari Devi Siddhapeeth श्रद्धालुओं की मान्यता है कि मां श्री शाकंभरी देवी सिद्धपीठ में शीश नवाने से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। सिद्धपीठ की अत्यधिक मान्यता के कारण गांव पुंवारका में निर्माणाधीन विश्वविद्यालय का नाम शाकंभरी देवी के नाम पर रखा गया।
By Parveen VashishtaEdited By: Updated: Fri, 03 Dec 2021 12:29 AM (IST)
सहारनपुर, जागरण संवाददाता। जिले के बेहट क्षेत्र में स्थित सिद्धपीठ मां श्री शाकंभरी देवी की गिनती देश के 51 पवित्र शक्तिपीठों में की जाती है। हर मास की चतुर्दशी एवं अष्टमी पर यहां श्रद्धालुओं का तांता लगता है। पावन नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं की अकल्पनीय भीड़ उमड़ती है।
सिद्धपीठ के नाम पर रखा गया विश्वविद्यालय का नाम श्रद्धालुओं की मान्यता है कि मां श्री शाकंभरी देवी सिद्धपीठ में शीश नवाने से मनुष्य सर्व सुख संपन्न होकर अपने मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है। सिद्धपीठ की अत्यधिक मान्यता के कारण गांव पुंवारका में निर्माणाधीन विश्वविद्यालय का नाम शाकंभरी देवी के नाम पर रखा गया। इसका आज गृहमंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शिलान्यास किया।
मां शाकंभरी देवी आदि शक्ति का हैं स्वरूप
मां शाकंभरी देवी आदि शक्ति का स्वरूप हैं। सिद्धपीठ में बने माता के पावन भवन में माता शाकंभरी देवी, भीमा देवी, भ्रांबरी देवी व शताक्षी देवी की प्रतिमाएं स्थापित हैं। मान्यता है कि पुरातन युग में राक्षसों के घोर पाप के कारण सृष्टि पर अकाल पड़ गया था। उसी समय सभी देवताओं ने मिलकर शिवालिक पर्वत श्रृंखला की प्रथम शिखा पर पूर्ण भक्ति भावना व आस्था से ओत-प्रोत होकर मां जगदंबा की घोर तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर मां भगवती प्रकट हुईं। उन्होंने अपनी शक्तियों का चमत्कार दिखाते हुए अकालग्रस्त पृथ्वी लोक से भूख और प्यास के प्रकोप को खत्म कर दिया। इस तरह माता ने अपनी पावन शक्ति के बल पर सभी प्राणियों की रक्षा की और संसार में मां पूजनीय बनीं।
मार्कण्डेय पुराण में भी सिद्धपीठ का उल्लेख मार्कण्डेय पुराण में इस सिद्धपीठ के उल्लेख के अनुसार शिवालिक पर्वत पर पुरातन काल में शिव-गौरी, नारायणी का शीश गिरा था, इस कारण आज भी अधिसंख्य श्रद्धालुओं का यही मानना है कि मां जगदंबा सूक्ष्म शरीर में इसी स्थल पर वास करती हैं। जब भी मां अंबे गौरी का कोई भक्त श्रद्धापूर्वक मां की आराधना करता है, दयामयी मां शाकंभरी स्थूल शरीर में प्रकट होकर भक्तजनों की मुरादें पूरी करती हैं। ग्रंथों में माता की महिमा का उल्लेख राक्षसों से युद्ध में शुंभ-निशुंभ, महिषासुर, चंड, महिषासुर व रक्तबीज का संहार करने के लिए भी किया गया है।
माता ने बाबा भूरादेव को दिया था वचन जनश्रुति के अनुसार माता ने धर्म की रक्षा के लिए बलिदान देने वाले बाबा भूरादेव को वचन दिया था कि मेरे दर्शन से पूर्व जो श्रद्धालु भूरादेव के दर्शन नहीं करेगा, उसकी यात्रा अपूर्ण मानी जाएगी। यही कारण है कि मां श्री शाकंभरी देवी मंदिर से एक किमी पहले स्थित बाबा भूरादेव मंदिर के दर्शन के उपरांत ही श्रद्धालु मां के दर्शन के लिए आगे बढ़ते हैं। सिद्धपीठ परिक्षेत्र में कई प्रसिद्ध स्थल हैं। इन्हीं में से एक वीरखेत है। मान्यता है कि इसी स्थल पर माता ने दुर्गम दैत्य सहित अनेकों असुरों का संहार किया था। दुर्ग दैत्य का वध करने के कारण मां जगद्जननी दुर्गा कहलाई।
शिवालिक पहाडियों की तलहटी में हैं कई पवित्र स्थल शिवालिक पहाडियों की तलहटी में स्थापित इस पावन तीर्थ के निकटवर्ती क्षेत्र में बाबा भूरादेव मंदिर, छिन्नमस्ता देवी मंदिर, रक्त दंतिका मंदिर, बड़केश्वर महादेव, इंद्रेश्वर महादेव, शाकेश्वर महादेव, कमलेश्वर महादेव, वटुकेश्वर महादेव, सहस्त्र ठाकुरधाम, वीर खेत, प्राचीन गुफा, भगवान विष्णु की विराट छवि, सूरजकुंड, गौतम ऋषि की गुफा, बाणगंगा एवं प्रेतशिला सरीखे पवित्र स्थल स्थापित है।
कैसे पहुंचें बेहट क्षेत्र में शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में सिद्धपीठ मां श्री शाकंभरी देवी का मंदिर है। दिल्ली-मेरठ मार्ग से सहारनपुर के देवबंद, गागलहेड़ी, छुटमलपुर से वाया गांव कलसिया होते हुए बेहट पहुंचा जा सकता है। बेहट से सिद्धपीठ करीब दस किलोमीटर दूर है। सहारनपुर शहर से सिद्धपीठ करीब 42 किलोमीटर दूर है।
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