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Hanuman Janmotsav: 160 वर्ष पुराने हनुमान मंदिर में 25 वर्षों से जल रही अखंड ज्योति, 40 दिन दीपक जलाने से पूरी होती है मनोकामना

Hanuman Janmotsav 2024 बुढ़ाना गेट पर प्राचीन व सिद्धपीठ हनुमान मंदिर हनुमानजी के भक्तों के लिए आस्था का प्रतीक है। प्रत्येक मंगलवार की सुबह और शनिवार की शाम को यहां हनुमान जी को विशेष रूप से भक्तों द्वारा मनोकामनाएं पूर्ण होने पर चाेला चढ़ाया जाता है। मंगलवार और शनिवार को मंदिर में बजरंग बली के भक्तों की भारी भीड़ रहती है।

By Vinay Kumar Edited By: Abhishek Saxena Updated: Tue, 23 Apr 2024 01:49 PM (IST)
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बुढ़ाना गेट स्थित हनुमान मंदिर में पूर्ण होती है भक्तों की मनोकामना
विनय विश्वकर्मा, मेरठ। जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहुं लोक उजागर.... आज हनुमान जन्मोत्सव है। इस दिन विशेष रूप से बजरंग बली की पूजा की जाती है। हनुमान मंदिरों में विशेष तैयारी और कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं।

शहर के हृदय में स्थित बुढ़ाना गेट पर प्राचीन व सिद्धपीठ हनुमान मंदिर भक्तों के लिए प्रमुख आस्था का केंद्र है। यह मंदिर लगभग 160 वर्ष पुराना है। मंदिर में पिछले 25 वर्षों से अखंड ज्योति प्रज्वलित है। बजरंग बली के भक्तों को यह मंदिर अत्यंत प्रिय है, दूर-दूर से हनुमान जी के भक्त यहां दर्शन करने आते हैं।

मान्यता है कि 40 दिन घी का दीपक जलाने से मनोकामना पूर्ण होती है। मंदिर में बजरंग बली चोले वाले बाबा के नाम से भी जाने जाते हैं। 

अखाड़े में होता था दंगल, बुढ़ाना जाने को मिलता था तांगा

मंदिर के वरिष्ठ प्रबंधक श्री अनिल पाठक बताते हैं कि उनके ससुर स्व. पंडित बनवारी लाल शर्मा प्रयागराज के निवासी थे। उनके मामा स्व. पंडित शिवधनहारी व स्व. पंडित छोटेलाल मंदिर प्रांगण में अखाड़े का संचालन करते थे। उन दोनों ने ही हनुमान जी की मूर्ति स्थापना की थी। वह दोनों बाल ब्रह्मचारी थे। जिस कारण उन्होंने अपने भांजे पंडित बनवारी लाल जी को बुला कर उन्हें मंदिर की गद्दी सौंप दी। इसके बाद विधिक रूप से मंदिर की सेवा और प्रबंधन उन्होंने अपनी बेटी कृष्णा पाठक व उनके पुत्रों को सौंपकर स्वर्गवासी हो गए।

स्व. बनवारी लाल जी ने 1932 से 1985 तक मंदिर की सेवा की। वह रामकथा मर्मज्ञ थे। उनके द्वारा प्रतिदिन शाम को रामकथा सत्संग आयोजित किया जाता था, जो उनके निधन के बाद अब उनके शिष्य अजीत शर्मा द्वारा किया जाता है। उस समय हनुमान जी की मूर्ति लगभग 15 फीट ऊंचाई पर चबूतरे पर स्थापित की गई थी। यद्यपि मंदिर में अनेक बदलाव हो चुके हैं लेकिन मंदिर अपने मूल अस्तित्व के धरोहर स्वरूप को संजोए हुए है।

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मंदिर के पास से बुढ़ाना तक लोग तांगे से जाते थे। बुढ़ाना गेट पुलिस चौकी के पास गेट हुआ करता था। जिस कारण इस जगह का नाम बुढ़ाना गेट पड़ा। यहां पर एक प्याऊ भी बना हुआ था।

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मंदिर परिसर में डेढ़ सौ साल पुराना पीपल वृक्ष

मंदिर परिसर में एक कुंआ भी था। जहां पर राहगीर पानी पीकर अपनी प्यास बुझाते थे। मंदिर प्रांगण में विशालकाय पीपल वृक्ष लगभग 155 वर्ष पुराना है। अनिल पाठक के पुत्र डा. गौरव, वैभव व अभिनव पाठक भी मंदिर की व्यवस्था में हाथ बंटाते हैं। मंदिर की मूर्ति जिस रूप में स्थापित की गई थी, आज भी वैसे ही मूल स्वरूप में है।

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