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शाहघासा के मंदिर में विराजमान हैं गुप्तकालीन दुर्लभ मूर्तियां, जानिए इसके पीछे की कहानी

मेरठ के शाहघासा स्थित शीतला देवी का मंदिर भक्ति और विश्वास का केंद्र है। बसोड़ा अष्टमी के पूजन के लिए दूर-दूर से महिलाएं पहुंचती हैं। यहां गुप्तकालीन विशाल मंदिर के भग्नावशेष भी हैं जो इस क्षेत्र में कभी विशाल मंदिर के अस्तित्व की गवाही देते हैं।

By Himanshu DwivediEdited By: Updated: Mon, 05 Apr 2021 08:40 AM (IST)
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शाहघासा के मंदिर में दुर्लभ मूर्तियां विराजमान हैं।
[ओम बाजपेयी] मेरठ। शाहघासा स्थित शीतला देवी का मंदिर भक्ति और विश्वास का केंद्र है। बसोड़ा अष्टमी के पूजन के लिए दूर-दूर से महिलाएं पहुंचती हैं। यहां गुप्तकालीन विशाल मंदिर के भग्नावशेष भी हैं, जो इस क्षेत्र में कभी विशाल मंदिर के अस्तित्व की गवाही देते हैं। टीलेनुमा जगह पर स्थित कोतवाली, पुरानी तहसील का क्षेत्र पुरातात्विक दृष्टि से भी अहम है। शीतला अष्टमी पर यहां भक्तों की भीड़ जुटेगी। बुढ़ाना गेट, शहर कोतवाली की संकरी गलियों से शाही जामा मस्जिद होते हुए शाहघासा पहुंचते हैं। यहां छोटी से कोठरीनुमा मंदिर में दुर्लभ मूर्तियां हैं। काले पाषाण से निर्मित अधिकांश मूर्तियां क्षति-विक्षत हो चुकी हैं।

मगर पर गंगा और कछुए पर सवार हैं यमुना : यहां पर दो पद चिह्न हैं, जो भगवान विष्णु की खड़ी मुद्रा में मूर्ति होने का संकेत देते हैं। मगरमच्छ पर सवार गंगा और कछुए पर सवार यमुना की मूर्तियां स्पष्ट हैं। मूर्तियों पर शोध करने वाले एनएएस कालेज के एसोसिएट प्रोफेसर डा. देवेश शर्मा ने बताया कि गुप्त काल की मूर्तियों की सभी विशेषता इनमें नजर आती हैं। डा. देवेश ने बताया कि गुप्त काल में मूर्ति कला काफी विकसित हो गई थी। भगवान विष्णु को चतुभरुज रूप में वैजयंती माला और मुकुट पहने दर्शाया जाता था। भक्तों की शुद्धि के लिए द्वार पर दोनों ओर गंगा-यमुना की मूर्तियां होती थीं।

गुप्‍त काल की मूर्तियों की विशेषताएं इनमें आती हैं नजर: देश के अन्य भागों में मौजूद गुप्त काल की मूर्तियों की सभी विशेषता इन मूर्तियों में नजर आती है। बकौल डा. देवेश, शुक्लों के चौक स्थित हरिद्वारी महादेव मंदिर में भी गुप्तकालीन मूर्तियों के अवशेष हैं। गुप्त काल 240 ईस्वी से 550 ईस्वी के मध्य माना जाता है। इस आधार पर यह मूर्तियां 1600 से 1800 साल पुरानी हैं। मंदिर में देखरेख करने वाले विनोद ने बताया कि उनकी दादी पहले यहां पूजा करती थीं। मंदिर कब से है, इसकी जानकारी नहीं है। स्थानीय निवासी अमर गोस्वामी ने बताया कि शीतला अष्टमी पर यहां काफी भीड़ लगती है। मेला भी लगता है।

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