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खिलौना उद्योग में यूपी के इस शहर का बोलबाला, यहां के खेल उत्पादों की दुनिया कायल; बस विशेष निर्यात प्रोत्साहन की कमी

भारत में खेल सामान उद्योग की शुरूआत पाकिस्तान से आये कुछ परिवारों ने जालंधर और मेरठ जैसे शहरों से की। हालांकि 75 वर्ष बीत जाने के बावजूद अभी तक ना तो यहां विश्वस्तरीय इंफ्रास्ट्रक्चर स्थापित हो पाया और ना ही इस उद्योग को कोई खास वित्तीय प्रोत्साहन पैकेज ही मिला है। मेरठ की कंपनियों की सबसे बड़ी मांग इस क्षेत्र में एक समर्पित विशेष आर्थिक क्षेत्र के निर्माण की है।

By Jagran News Edited By: Riya Pandey Updated: Sat, 13 Jul 2024 06:36 PM (IST)
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खेल उद्योग को और गति देने के लिए सरकार से यह मांग कर रही इंडस्ट्री (प्रतिकात्मक फोटो)
प्रवीण द्विवेदी, मेरठ। खेल उत्पाद बनाने वाला देश का घरेलू उद्योग एक जबरदस्त दौर में प्रवेश कर चुका है। देश की आबादी में युवा वर्ग की बढ़ती संख्या, खेल व मनोरंजन पर खर्च करने की इच्छाशक्ति और आम जनता की बढ़ती आय, तीन ऐसे कारक हैं जो खेल उद्योग के सुनहरे भविष्य की जमीन तैयार कर रहे हैं।

खेल उद्योग में मेरठ और जालंधर उल्लेखनीय

हाल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय खेल उद्योग का आकार वर्ष 2023 में 5.1 अरब डॉलर का था जो वर्ष 2032 तक 10 अरब डॉलर को पार कर जाएगा। खेल उद्योग में देश के जिन शहरों की खास पहचान है उसमें मेरठ और जालंधर खास तौर पर उल्लेखनीय है।

क्रिकेट विश्व कप में रनों का अंबार खड़ा करते हुए बल्ले हों या आग उगलती गेंदें या खेलों के महाकुंभ ओलंपिक में फेंका जाने वाले डिस्कस व हैमर हों या टेबल टेनिस व‌र्ल्ड चैंपियनशिप में इस्तेमाल किये जाने वाले रैकेट हों, ये सारे उत्पाद मेरठ में खेल समान बनाने वाले उद्यमियों की उद्यमिता और इनके साथ काम करने वाले कारीगरों की कुशल कारीगरी के प्रमाण हैं।

भारत के इन छोटे शहरों के खेल उत्पादों के दुनिया कायल

भारत में खेल सामान उद्योग की शुरूआत पाकिस्तान से आये कुछ परिवारों ने जालंधर और मेरठ जैसे शहरों से की। हालांकि 75 वर्ष बीत जाने के बावजूद अभी तक ना तो यहां विश्वस्तरीय इंफ्रास्ट्रक्चर स्थापित हो पाया है और ना ही इस उद्योग को कोई खास वित्तीय प्रोत्साहन पैकेज ही मिला है। इसके बावजूद भारत के इन छोटे शहरों में निर्मित खेल उत्पादों की दुनिया कायल होती जा रही है।

जब केंद्र सरकार घरेलू उद्यमियों को आत्मनिर्भर भारत के नारे को आत्मसात करने को कह रही है तब इस उद्योग से जुड़े उद्यमियों को भी उम्मीद है कि 23 जुलाई, 2024 को पेश किया जाना वाला आम बजट उन्हें वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ाने के लिए कुछ खास इतंजाम करेगा।

दस लाख लोगों को रोजगार देने की क्षमता रखता है भारत

मैकेंजी की एक रिपोर्ट कहती है कि यह उद्योग वर्ष 2030 तक भारत में दस लाख लोगों को रोजगार देने की क्षमता रखता है। खेल सामान उद्योग के साथ ही स्पो‌र्ट्स अपैरल्स (खेलों में पहने जाने वालों कपड़ों) को एक साथ प्रोत्साहित करने के लिए अगर राज्य सरकार मदद करे तो यहां रोजगार की संभावनाएं और बढ जाएंगी।

सबसे पहले बनें स्पेशल इकॉनोमी जोनजांलधर और मेरठ ने पिछले वर्ष संयुक्त तौर पर 2100 करोड़ रुपये के खेल सामग्रियों का निर्यात किया है।

मेरठ की कंपनियों की सबसे बड़ी मांग इस क्षेत्र में एक समर्पित विशेष आर्थिक क्षेत्र के निर्माण की है। सिर्फ मेक इन इंडिया योजना पर्याप्त नहीं है। इससे यहां उद्योग का आकार बढ़ेगा जो राज्य सरकार को ज्यादा राजस्व देगा और क्षेत्र में रोजगार के नये अवसर भी पैदा करेगा। यहां 10,000 छोटी व बड़ी कंपनियां हैं जो सीधे या परोक्ष तौर पर 2.50 लाख रोजगार के अवसर पैदा कर रहे हैं।

सरकार से विशेष छूट और सब्सिडी चाहते हैं उद्यमी

बिल्ट ब्रांड योजना के तहत वैश्विक स्तर पर भारत के ब्रांड को स्थापित करने व वृहद आकार दिलाने के लिए यहां के उद्यमी सरकार से विशेष छूट, सब्सिडी भी चाहते हैं। क्रिकेट उत्पाद बनाने वाली कंपनियों की मांग है कि उन्हें वैश्विक बनाने के लिए इस क्षेत्र की नई कंपनियों को पांच साल तक आयकर की शत-प्रतिशत छूट दी जानी चाहिए।

इन शहरों में अंतरराष्ट्रीय स्तर की टेस्टिंग लैब की स्थापना की मांग है। इससे यहां से प्रमाण पत्र लेने वाली इकाइयों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में व्यापार का अवसर मिलेगा। उन्हें अंतरराष्ट्रीय लैब में टेस्ट के लिए जाना नहीं पड़ेगा। खेल उद्यमी आयकर में भी छूट चाहते हैं।

निर्यात के लिए मिले प्रोत्साहन

दुनिया के कई देशों में जिस तरह से क्रिकेट ने दस्तक दी है और कोविड महामारी के बाद वैश्विक स्तर पर फिटनेस जिस तरह से एक क्रांति के तौर पर स्थापित हो रहा है उसे देखते हुए मेरठ के खेल उत्पाद निर्माताओं के लिए अपार संभावनाओं के द्वार खुलते नजर आ रहे हैं।

मेरठ के इस सेक्टर के उद्यमी साफ तौर पर मानते हैं कि आगामी बजट उनके कारोबार को नई दिशा दे सकता है। मसलन, पहले खेल उत्पादों के निर्यात में 15 फीसद का इंसेंटिव मिलता था जिसे बाद में घटा कर दो फीसद कर दिया गया। अगर इसे पूर्व की स्थिति नहीं लाया जा सकता तो कम से कम इसे बढ़ाया जरूर जाना चाहिए।

वैश्विक बाजार में मेरठ के उद्यमी को करना पड़ता है संघर्ष

क्रिकेट बल्ला बनाने के लिए मंगाई जाने वाली इंग्लिश विलो पर आयात शुल्क 11 प्रतिशत और उसके हैंडल केन पर 33 प्रतिशत लगता है, जिससे बल्ले की कीमत ज्यादा होने पर वैश्विक बाजार में मेरठ का उद्यमी संघर्ष करता है। दोनों मिलाकर पांच प्रतिशत की सीमा निर्धारित करने से इंडस्ट्री की सेहत सुधरेगी। तुगलकाबाद से निर्यात वाले माल को आगे बढ़ाने में तत्परता बरतना होगा।

खेल उत्पाद पर जीएसटी की कई दरों की जगह दो स्लैब बनाने की मांग लंबे समय से उठ रही है। खेल से जुड़े उत्पाद बनाने में भारत का स्थान एशिया में चीन व जापान के बाद तीसरा सबसे बड़ा है।ये कहते हैं उद्यमीभारत सरकार के पास क्रिकेट खेल उत्पाद को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने का बेहतर मौका है।

क्रिकेट खेल उत्पादों के लिए विशेष सहूलियत की मांग

नए देश क्रिकेट खेल में शामिल हो रहे हैं इसलिए सरकार को क्रिकेट खेल उत्पादों के लिए विशेष सहूलियत देनी चाहिए। कोई विशेष योजना, नए उद्योगों को पांच साल तक आयकर से छूट का प्रावधान करना चाहिए। जीएसटी से संबंधित रीफंड जल्द मिले तो नकदी ताकत बढ़ेगी।

आल इंडिया स्पो‌र्ट्स गुड्स इंडस्ट्रीज प्रमुख नवनीत भसीन के अनुसार, त्रिलोक आनंद, वाइस चेयरमैन, एसजी स्पो‌र्ट्स। केंद्रीय बजट में अलग से पैकेज दिया जाए तो देश में खेल सामानों का निर्यात बढ़ा कर बड़े पैमााने पर रोजगार पैदा किया जा सकता है। इस सेक्टर को मेक इन इंडिया में शामिल किया जाना चाहिए। जालंधर व दूसरे शहरों में अंतरराष्ट्रीय स्तर के एग्जीवबेशन सेंटर लगाने का भी फायदा होगा, नई तकनीक अपनाने में भी कुछ वित्तीय प्रोत्साहन मिले।

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