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मेरठ में घर पहुंचे फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह, बोले- हमारी संस्कृति की बेहतर झलक दिखाती हैं दक्षिण की फिल्में

TV And Film Actor Sushant Singh Rajput दिल्ली में एक कार्यक्रम में शामिल होने के बाद सुशांत अपने घर पहुंचे। सुशांत ने कहा जमीन से जुड़ी होने से सुपरहिट हो रहीं फिल्में। माता-पिता से मिलने मेरठ पहुंचे जाने-माने अभिनेता।

By Praveen VashisthaEdited By: Abhishek SaxenaUpdated: Tue, 28 Mar 2023 12:00 PM (IST)
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Meerut News: घर पर माता-पिता के साथ फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह। सौ. स्वयं
मेरठ, जागरण टीम, (प्रवीण वशिष्ठ)। बालीवुड में 25 साल के करियर में कई हिट फिल्मों और धारावाहिक सावधान इंडिया से खास पहचान बना चुके अभिनेता सुशांत सिंह का कहना है कि आजकल दक्षिण भारत की फिल्मों को मिली सफलता का बड़ा कारण उनके कथानक का जमीन से जुड़ा होना है। इनमें हमारी संस्कृति की बेहतर झलक मिलती है।

सत्या में छोटे से रोल की थी शुरूआत

बिजनौर में जन्मे सुशांत सिंह ने वर्ष 1998 में राम गोपाल वर्मा की फिल्म सत्या में छोटे से रोल से करियर की शुरुआत की थी। वर्ष 2000 में आई जंगल से उन्हें पहचान मिली। इसके लिए उन्हें जी सिने और आइफा अवार्ड मिले। उन्होंने द लीजेंड आफ भगत सिंह, 16 दिसंबर, लक्ष्य, सहर और हेट स्टोरी टू सहित कई दक्षिण भारतीय फिल्मों में काम किया। धारावाहिक सावधान इंडिया में बतौर होस्ट उनका अंदाज दर्शकों को बहुत भाया। हाल ही में नेटफिलिक्स पर राणा नायडू सीरीज में भी नजर आए हैं।

मां को सुशांत पर है गर्व

बालीवुड में एक चौथाई सदी गुजारने के बाद भी सुशांत सिंह पूरी तरह से देशी हैं। बताते हैं कि मेरठ में आकर बहुत अच्छा लगता है। यहां लोगों से खूब प्रेम मिलता है। समय मिलने पर बिजनौर भी जाते हैं। वहां बचपन में कोल्हू पर बनता गर्म गुड़ खूब खाया है। उनकी माताजी इंदु सिंह कहती है कि शुरू में सुशांत ने अभिनय को करियर बनाया तो कुछ शंका हुई थी, लेकिन अब उन पर गर्व होता है।

अब मेरठ से है खास नाता

कई साल से सुशांत सिंह का मेरठ आना-जाना है, क्योंकि उत्तराखंड के लोकनिर्माण विभाग से रिटायर होने के बाद उनके पिता कल्याण सिंह ने सदर में बांबे बाजार के पास आशियाना बना लिया है। सुशांत ने यहां पहुंचकर सोमवार को उन्होंने दैनिक जागरण से बातचीत की।

आजकल देश ही नहीं, विश्व स्तर पर दक्षिण भारतीय फिल्मों का डंका बजने के सवाल पर कहा कि उन्हें लगता है कि वहां के फिल्मकार बालीवुड के मुकाबले जमीन से जुड़ी फिल्में अधिक बना रहे हैं। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो मुबंई में हिंदी फिल्में आज भी बड़े शहरों को ही पेश कर रही हैं और अंग्रेजी दां लोगों का बोलबाला है।

दक्षिण की फिल्मों में काम करते हुए खुद महसूस किया कि वहां हर स्तर पर अपनी भाषा और संस्कृति की दृष्टि से विचार किया जाता है। ओटीटी प्लेटफार्म को वह फिल्म विधा के सभी लोगों के लिए अच्छा अवसर मानते हैं। इससे दर्शकों को भी एक और विकल्प मिला है। 

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