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Kirana gharana: किराना घराना से किनारा, यहां मन्ना डे घूमे नंगे पांव, भीमसेन जोशी ने किया सजदा

kairana related kirana gharana कैराना का वर्तमान भले ही सनसनीखेज हो लेकिन इसका अतीत सुखनखेज रहा है। कभी यहां की सुबह का आगाज राग भैरव व तोड़ी के सुरों से होता था तो राग यमन की सरगम संग सांझ ढलती थी।

By Parveen VashishtaEdited By: Updated: Thu, 03 Feb 2022 12:48 PM (IST)
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साल 1872 में उस्ताद अब्दुल करीम खां का कैराना में जन्म हुआ
मेरठ, राजन शर्मा। संगीत की महान परंपरा किराना घराना की धरती कैराना में फिलवक्त पलायन समेत तमाम चुनावी सुर अलापे जा रहे हैं। पलायन पीडि़तों की कैराना वापसी पर क्षेत्र की जनता भले ही खुश नजर आ रही हो, लेकिन पिछली सदी में इस कस्बे से पलायन कर गए किराना घराना के सैंकड़ों दिग्गजों ने आज तक वापसी नहीं की।

पूरी दुनिया में फैली है किराना घराना की रोशनी

भारत रत्न पंडित भीमसेन जोशी और मोहम्मद रफी सरीखे फनकारों को तराशने वाले किराना घराना की रोशनी पूरी दुनिया में फैली है, लेकिन अफसोस की बात है कि कैराना में किराना घराना के संस्थापक उस्ताद अब्दुल करीम खां के नाम पर एक स्मारक तक नहीं है। इसके अलावा तबला वादन के अजराड़ा और ध्रुपद गायन की धरती अंबहेटा की सुरमई पहचान भी नेताओं की सांस्कतिक शून्यता में खो गई। किसी भी चुनावी एजेंडे में किराना समेत इन संगीत घरानों को पुनर्सथापित करने का मुद्दा शामिल नहीं रहा।

मुख्यमंत्री ने बड़े गर्व से किया था किराना घराना का जिक्र

बीते दिनों प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शामली जिले के कस्बा कैराना आए तो उन्होंने दावा किया कि कैराना का माहौल शांत होने के बाद पलायन कर चुके लोग अब यहां लौट गए हैं। इस दौरान उन्होंने किराना घराना का जिक्र भी बड़े गर्व से किया हो। कहा कि अब कैराना की पहचान अपराध से नहीं, बल्कि किराना घराना से होगी। विधानसभा अध्यक्ष हृदयनारायण दीक्षित ने भी शामली के जिला प्रशासन से किराना घराना को संरक्षित करने की बाबत रिपोर्ट तैयार करने के आदेश दिए हैं।

बेकद्री पर समाज के जिम्मेदार और राजनीतिज्ञ कभी नहीं हुए संजीदा

दरअसल, इस सिलसिले का दुखद पहलू यह है कि कैराना में किराना घराना की बेकद्री पर समाज के जिम्मेदार और राजनीतिज्ञ कभी संजीदा नहीं हुए। पिछली सदी में प्रोत्साहन न मिलने पर किराना घराना के संस्थापक अब्दुल करीम खां समेत उनके दर्जनों परिजन कैराना से पलायन कर गए। दुनियाभर में नामचीन हो गए, लेकिन वे कभी कैराना लौटकर नहीं आए। कैराना में उस्ताद अब्दुल करीम खां, अब्दुल वहीद खां, सारंगी वादक शकूर खां और तमाम दिग्गजों के जर्जर घर अपने अतीत की कहानी बयां कर रहे हैं।

जयपुर, मैसूर और बड़ौदा राजघराने की शान बने उस्ताद अब्दुल करीम खां

इस छोटे से कस्बे में साल 1872 में उस्ताद अब्दुल करीम खां का जन्म हुआ। अपने पिता उस्ताद काले खां की संगत में ये सात-आठ साल की उम्र में ही गायन व सारंगी वादन में सिद्धहस्त हो गए थे, लेकिन हुनर के मुताबिक तवज्जों नहीं मिली। करीब बीस साल के थे तो अब्दुल करीम खां ने कैराना छोड़ दिया। वह जयपुर, मैसूर और बड़ौदा राजघराने की शान बने। उस्ताद को कैराना से इतनी मोहब्बत थी कि उन्होंने अपनी संगीत की नर्सरी को किराना घराना नाम दिया। करीम खां ने उत्तर और दक्षिण भारतीय संगीत परंपरा के बीच सेतु का काम किया। यह घराना विशिष्ट ख्याल गायकी, ठुमरी, दादरा, भजन और मराठी नाट्य संगीत गायन के लिए प्रसिद्ध है।

कैराना छोड़ने की टीस है दिल में

कोलकाता स्थित संगीत रिसर्च अकादमी के प्रवक्ता और अब्दुल करीम के पौत्र उस्ताद मशकूर अली खां कैराना आते रहे, लेकिन दस साल पहले कब्जे के डर से उन्होंने भी अपना घर बेच दिया। मशकूर अली के दिल में कैराना छोडऩे की टीस आज भी है। बातचीत के दौरान वह कहते हैं कि कैराना की गलियां और यमुना का किनारा उनके जहन में तरोताजा है। कैराना का किराना घराना से बिछोह बहुत दर्द देता है। बताते हैं कि देश-विदेश के मेरे छात्र मुझसे कैराना चलने की जिद करते हैं, लेकिन सोचता हूं कि मैं कैराना इन्हें ले गया तो उस्ताद अब्दुल करीम खां और दीगर बुजुर्गों की क्या निशानी दिखाउंगा। शर्मिंदगी के साथ उनकी बात टाल देता हूं।

शास्त्रीय गायिका प्रभा आत्रे के तेवर तल्ख

भारतीय शास्त्रीय गायिका प्रभा आत्रे को हाल ही में पदमविभूषण अवार्ड के लिए चयनित किया गया है। 89 साल की प्रभा आत्रे उस्ताद अब्दुल करीम खां की बेटी हीराबाई बरोडकर की शिष्या हैं। वो पदमविभूषण मिलने पर प्रफुल्लित हैं, लेकिन कैराना में किराना घराना की बेकद्री पर उनके तेवर तल्ख हो गए। बोलीं, उस्ताद की जन्मभूमि के प्रति सरकारों की उपेक्षा अफसोस की बात है। उन्होंने अपील की कि कैराना में उस्ताद अब्दुल करीम और उनके परिजनों की याद में स्मारक बनने चाहिए।

कैराना में मन्ना डे घूमे नंगे पांव, भीमसेन जोशी ने किया सजदा

संगीत साधकों से संबंधित ये दो वाकये राजनीतिज्ञों के लिए खासी नसीहत हैं। साल 1964 में पंडित भीमसेन जोशी कैराना आए। उस्‍ताद अब्‍दुल करीम के जर्जर घर के बाहर बैठकर सजदा किया और देहरी पर नजराना के तौर कुछ रुपये रखकर लौट गए। इसके अलावा फिल्मी गायक मन्ना डे साल 1970 में यहां मेला छडियाना में संगीत कार्यक्रम में शिरकत के लिए आए तो अपनी चप्पल कार में ही उतार दी। लोगों ने वजह पूछी तो बोले यह किराना घराना की धरती है। कैराना हर संगीतकार के लिए तीर्थ के समान है। यहां चप्पल पहनकर घूमना उस्ताद की शान में गुस्ताखी होगी।

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