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कभी NDA के साथ आने की चर्चा, कभी विपक्ष से दूरी; पश्चिमी UP में गठबंधन की नई स्क्रिप्ट लिख रहे हैं जयंत चौधरी

UP Politics पश्चिम उत्तर प्रदेश में नए गठबंधन की खिचड़ी पकाने में जुटे रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी की नजर सियासी खीर पर भी है। दिल्ली सर्विस बिल पर मतदान के दौरान राज्यसभा से दूरी बनाकर छोटे चौधरी ने दूर तक निशाना साधा है। विपक्ष को पत्र भेजकर उनके साथ खड़े रहने का संदेश दिया वहीं एनडीए के साथ गठबंधन की खिड़की को भी खोलकर रखा।

By Jagran NewsEdited By: Abhishek PandeyUpdated: Wed, 09 Aug 2023 02:47 PM (IST)
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पश्चिमी UP में गठबंधन की नई पटकथा लिख रहे हैं जयंत चौधरी
संतोष शुक्ल, मेरठ: (UP Politics) पश्चिम उत्तर प्रदेश में नए गठबंधन की खिचड़ी पकाने में जुटे रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी की नजर 'सियासी खीर' पर भी है। दिल्ली सर्विस बिल पर मतदान के दौरान राज्यसभा से दूरी बनाकर छोटे चौधरी ने दूर तक निशाना साधा है।

विपक्ष को पत्र भेजकर उनके साथ खड़े रहने का संदेश दिया, वहीं एनडीए के साथ गठबंधन की खिड़की को भी खोलकर रखा। कयास है कि विपक्ष के जमावड़े से दो बार दूर रहते हुए छोटे चौधरी ने 'सत्ता की खीर' पर फोकस बढ़ा दिया है।

योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री सुरेश खन्ना ने भी जयंत को एनडीए के साथ जुड़ने की बात कही है। बता दें कि पिछले दिनों जयंत चौधरी का एक ट्वीट "चावल खाना हो तो खीर खाओ" को सत्ताधारी दल के साथ हाथ मिलाने से जोड़कर देखा गया।

तीन में से दो बार विपक्षी खेमे से दूरी

जयंत पश्चिम उप्र की राजनीति में गठबंधन की नई पटकथा लिख रहे हैं। उनकी दो महीने की रणनीतिक चाल बताती है कि कदम भाजपा की अगुआई वाले एनडीए की तरफ बढ़ रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुआई वाले एनडीए की कड़ी घेरेबंदी के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुआई में 23 जून को पटना में विपक्ष की पहली बैठक हुई तो वहां जयंत नहीं पहुंचे।

बताया गया कि वह विदेश में हैं। इसके बाद छोटे चौधरी 17 जुलाई को बेंगलुरू में कांग्रेस की अगुआई में आयोजित दूसरी बैठक में पहुंच गए। इधर, सात अगस्त को राज्यसभा में दिल्ली सेवा बिल के दौरान जयंत चौधरी की दूरी ने विपक्ष की धड़कन बढ़ा दी।

पदाधिकारियों ने बताया पत्नी के ऑपरेशन के कारण नहीं गए थे राज्यसभा

रालोद पदाधिकारियों ने बताया कि जयंत की पत्नी चारू का ऑपरेशन हुआ था, जिसकी वजह से छोटे चौधरी सदन में नहीं गए। जबकि उनकी पत्नी दो दिन पहले अस्पताल से डिस्चार्ज होकर घर लौट आई थीं। साफ है कि जयन्त के लिए राज्यसभा पहुंचना ज्यादा मुश्किल नहीं था।

मालूम हो कि बीमार होने के बाद भी नब्बे वर्षीय पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व्हील चेयर पर मतदान के लिए राज्यसभा पहुंचे थे। ऐसे में माना जा रहा है कि छोटे चौधरी किसी बड़े चुनावी समीकरण का सूत्र खोजने में जुटे हैं।

गठबंधन का कड़वा अनुभव

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की भारी भरकम विरासत संभालने वाले अजित चौधरी ने गठबंधन की राजनीति में कई भूमिकाएं निभाईं। लेकिन 2014 में बागपत एवं 2019 में मुजफ्फरनगर से लोकसभा चुनाव हारकर हाशिए पर पहुंच गए।

किसान आंदोलन की तपिश और अखिलेश यादव का साथ पाकर जयंत अपने आठ विधायक जिताने में सफल हुए, लेकिन ज्यादातर सपाई चेहरे हैं। निकाय चुनाव में जयंत एवं अखिलेश की केमेस्ट्री बिगड़ गई। दोनों दल अलग-अलग चुनाव लड़े। जयंत को पता है कि राजनीतिक रूप से सूखी जमीन में हरियाली के लिए गठबंधन की पगडंडी पर चलना होगा।

पिछले दिनों भाजपा की केंद्रीय इकाई में दो गुर्जर चेहरा रखे गए, जबकि एक भी जाट चेहरा शामिल नहीं किया गया। भाजपा का एक खेमा मान रहा है कि देर सबेर सही, जयंत एनडीए के साथ आएंगे जिससे जाट फैक्टर की भरपाई हो जाएगी।

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