पश्चिमी यूपी की बयार तय करेगी पूर्वांचल और बुंदेलखंड के समीकरण, कैराना पलायन और बुलडोजर नीति होंगे भाजपा के बड़े मुद्दे
भगवा रथ के सबसे बड़े सारथी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मेरठ में 31 मार्च को पहली चुनावी जनसभा में अयोध्या में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा और ब्रज की होली की तान छेड़कर उत्तर प्रदेश में बड़ा संदेश दिया। पश्चिम उत्तर प्रदेश में कहीं ध्रुवीकरण की धार पर हिंदुत्व की लहर आगे बढ़ रही है तो दूसरी तरफ मुद्दों की हांड़ी पर खेतीबाड़ी उद्योग कानून-व्यवस्था और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे विषय उबल रहे हैं।
संतोष शुक्ल, मेरठ। (Lok Sabha Election 2024) भगवा रथ के सबसे बड़े सारथी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मेरठ में 31 मार्च को पहली चुनावी जनसभा में अयोध्या में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा और ब्रज की होली की तान छेड़कर उत्तर प्रदेश में बड़ा संदेश दिया। भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कड़ा कदम उठाने का संकल्प दोहराया।
पश्चिम उत्तर प्रदेश में कहीं ध्रुवीकरण की धार पर हिंदुत्व की लहर आगे बढ़ रही है तो दूसरी तरफ मुद्दों की हांड़ी पर खेतीबाड़ी, रोजगार, उद्योग, कानून-व्यवस्था और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे विषय उबल रहे हैं। पश्चिम उत्तर प्रदेश में चुनावी वोल्टेज बढ़ने से इसका करंट पूर्वांचल तक पहुंचने लगा है।
2024 में पश्चिमी यूपी पर मोदी की नजर
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के प्रभारी प्रशांत कुमार कहते हैं नरेन्द्र मोदी 2014 और 2019 के बाद एक बार फिर 2024 में पश्चिम उत्तर से चुनावी रथ हांक चुके हैं। मोदी ने चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने और सदन में जयंत के खिलाफ कांग्रेस के सदस्यों की आपत्ति को किसानों के सम्मान से जोड़कर प्रदेशभर में संदेश दिया है।
मोदी की अगुआई में पश्चिम उत्तर प्रदेश ने एक बार फिर भाजपा के चुनावी इंजन में नया गियर लगा दिया है। पश्चिम उत्तर प्रदेश में 19 और 26 अप्रैल को होने वाले मतदान की बयार पूर्वांचल से लेकर बुंदेलखंड तक के समीकरणों की दिशा तय करेगी।
एडवोकेट केके चौबे कहते हैं कि भाजपा पश्चिम उत्तर प्रदेश में अपराध नियंत्रण का मॉडल, कैराना पलायन का जिक्र, देवबंद में एटीएस केंद्र की स्थापना, बुलडोजर नीति के अलावा शाकंभरी देवी विश्वविद्यालय स्थापना व कई नए हाइवे निर्माण का एजेंडा लेकर चुनाव में उतरी है। वर्ष 2014 से सब कुछ बदल गया। अब खेतीबाड़ी इतना बड़ा मुद्दा नहीं बनता कि परिणाम पलट दे।
2013 की लू ने बदली हवा
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के राजनीति विभाग के अध्यक्ष डा. संजीव शर्मा कहते हैं कि 2013 में मुजफ्फरनगर के दंगों से उठी राजनीतिक लू ने सामाजिक ताने-बाने व प्रदेशभर के चुनावी समीकरणों को बदल डाला। इसे भारतीय राजनीति में अहम मोड़ के रूप में देखा जाएगा।
भाजपा ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाकर दो फरवरी, 2014 को मेरठ में विजय शंखनाद रैली कराई थी। पूर्व प्रशासनिक अधिकारी प्रभात राय कहते हैं कि ऐसी लहर चली कि पश्चिम उत्तर प्रदेश के सभी समीकरण ध्वस्त हो गए।
उखड़ गए विरासतों के तंबू
2014 में मोदी लहर में सहारनपुर के मसूद परिवार, कैराना के हसन परिवार, बागपत में चौधरी परिवार के किले हिल गए। भाजपा ने पश्चिम की लहर से अभेद्य दुर्ग मुरादाबाद व रामपुर को भी जीत लिया।
बिजनौर, नगीना, संभल व अमरोहा जैसी कमजोर सीटों पर भाजपा की जीत बड़े परिवर्तन का संकेत था। हालांकि, 2019 लोकसभा चुनाव चुनावी में सपा-बसपा और रालोद की में रिदृश्य तिकड़ी ने मिलकर चुनाव लड़ा,और भाजपा सात सीटें हार गई ।
15 वर्ष बाद रालोद-भाजपा ने फिर हाथ मिलाया है। इस बहाने भाजपा प्रदेशभर में किसानों को साधने में जुटी है। भाजपा ने पिछली बार हारी सीटों सहारनपुर, बिजनौर, नगीना, संभल, रामपुर एवं मुरादाबाद पर फोकस किया है।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव पश्चिम उत्तर प्रदेश में गौतमबुद्धनगर, मेरठ, बागपत व मुरादाबाद के प्रत्याशियों को बदलकर असमंजस में हैं, जबकि सहयोगी दल कांग्रेस जमीन बना नहीं सकी। उधर, मुस्लिम वोटों की बड़ी तादाद के बावजूद सपा, कांग्रेस, बसपा का असमंजस व असदुद्दीन एआइएमआइएम अध्यक्ष ओवैसी की चुप्पी चौंकाने वाली है।
.... तो हाथी हांफने लगा
यहां के राजकीय इंटर कालेज के जीव विज्ञान के प्रवक्ता विपिन भारद्वाज कहते हैं कि हां, पश्चिम के मुद्दों ने भाजपा को सत्ता दिलाई, पर राजनीतिक नेतृत्व कमजोर पड़ा तो सत्ता पूर्वांचल की धुरी पर आ गई।
गौतमबुद्धनगर में बादलपुर गांव की निवासी मायावती कैराना व बिजनौर से चुनावी यात्रा करते हुए चार मायावती सीएम तक बन गईं, पर 2012 में अखिलेश यादव के पास सत्ता आने के बाद हाथी हांफने लगा। लखनऊ और दिल्ली की राजनीति में पश्चिम का कद सिमटता गया ।
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