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Filmmaker Akhilesh; पैर गंवाने पर और बुलंद हो गए अखिलेश के हौसले...,बीस हजार के बजट में बना चुके हैं फिल्म

अखिलेश की बनाई कई शॉर्ट फिल्में देश ही नहीं बल्कि विदेश के समारोह में भी प्रदर्शित हुई हैं। जीवन में परेशानी आने पर हौसला रखने वालों को सफलता अवश्य मिलती है। इसका बड़ा उदाहरण मेरठ के आइआइएमटी विश्वविद्यालय से सिनेमा पर पीएचडी कर रहे अखिलेश वर्मा हैं। हादसे में पैर गंवा चुके युवा फिल्मकार अखिलेश की शार्ट फिल्में देश-विदेश में प्रदर्शित हुई हैं।

By Praveen Vashistha Edited By: Abhishek Saxena Updated: Wed, 22 May 2024 02:21 PM (IST)
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पैर गंवाने पर और बुलंद हो गए अखिलेश के हौसले, बीस हजार के बजट में बना चुके हैं फिल्म
प्रवीण वशिष्ठ, मेरठ। जिंदगी में थोड़ी सी समस्या आने पर लोग निराश होने लगते हैं, लेकिन अखिलेश वर्मा मुसीबत में और मजबूत हो गए। हादसे में पैर गंवाने के बाद उनके हौसलो की उड़ान और परवान चढ़ने लगी। छात्र के तौर पर मात्र बीस हजार रुपये के बजट में फीचर फिल्म बना चुके युवा फिल्मकार की शार्ट फिल्में देश-विदेश के समारोह में प्रदर्शित हो चुकी हैं। इसी के साथ अपनी पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान दे रहे हैं। जेआरएफ उत्तीर्ण कर आइआइएमटी विश्वविद्यालय मेरठ से सिनेमा पर पीएचडी कर रहे हैं।

इंजीनियरिंग में करियर बनाने का इरादा छोड़ा

मुजफ्फरनगर के कृष्णापुरी निवासी मुकेश कुमार वर्मा और पुष्पा वर्मा के पुत्र अखिलेश वर्मा बताते हैं कि उन्होंने एमिटी विश्वविद्यालय नोएडा के बीटेक-एमटेक डुएल डिग्री कार्यक्रम में 2011 में प्रवेश लिया था। इस दौरान उनका थियेटर और फिल्मों से हुआ लगाव इतना बढ़ गया कि मात्र 20 हजार रुपये के बजट में दोस्तों के साथ मिलकर 'गाइ इन द ब्लू' नाम से एक फीचर फिल्म बनाई।

उसे सबसे कम बजट की फीचर फिल्म के रूप में दर्ज कराने को गिनीज बुक को भी भेजा। गिनीज बुक की ओर से उन्हें इसे नामिनेट करने का मेल जरूर मिला, लेकिन किसी कारण से उनका नाम दर्ज तो नहीं हो सका। 2015 में इंजीनियरिंग में करियर बनाने का विचार छोड़ एक साल का ब्रेक लिया। इस समय को फिल्म निर्माण के विभिन्न पहलुओं को जानने में लगाया।

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2017 में हुआ हादसा, एक साल चला उपचार

अखिलेश बताते हैं कि 2016 में नोएडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी से बीजेएमसी में प्रवेश लिया। सब कुछ ठीक चल रहा था है कि वर्ष 2017 में नोएडा में एक ट्रक ने टक्कर मार दी। हादसे के दो माह बाद होश आया तो खुद को एम्स दिल्ली में पाया। जब उन्हें पता चला कि एक पैर नहीं है तो तनिक भी नहीं घबराए। आगे करीब दस माह उनका उपचार चला और प्रोस्थेटिक लेग की मदद ने चलने लगे। ग्रेविटी रेल्म एंटरटेनमेंट नाम से कंपनी शुरू की।

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जिस जर्मन कंपनी का लगाते हैं प्रोस्थेटिक लेग, उसके लिए भी बनाई कारपोरेट फिल्म

उनकी बनाई कई शार्ट फिल्में देश-विदेश के समारोह में प्रदर्शित हुई हैं। इनमें नोएडा के मारवाह स्टूडियो के ग्लोबल फिल्म फेस्ट, यूके के एलआइएफटी फिल्म फेस्ट और हिमाचल फिल्म फेस्ट प्रमुख हैं। विज्ञापन और कारपोरेट फिल्में भी बनाते हैं। जिस जर्मन कंपनी का प्रोस्थेटिक लेग लगाते हैं, उसके लिए भी कारपोरेट फिल्म बनाई है।

अब उनकी फीचर फिल्म बनाने की तैयारी है। कहते हैं कि वह कभी हीन भावना का शिकार नहीं हुए। प्रोस्थेटिक लेग के साथ चलने का इतना अभ्यास कर लिया है कि कई किलोमीटर पैदल चलने के साथ-साथ आसानी से ड्राईविंग भी कर लेते हैं।

फीचर फिल्म की शूटिंग पूरी

30 वर्षीय अखिलेश वर्मा बताते हैं कि हाल में उन्होंने निर्माता-निर्देशक के तौर पर ग्रामीण पृष्ठ भूमि पर बनी फीचर फिल्म की शूटिंग देहरादून के पास एक गांव में पूरी कर ली है। संपादन पूरा होने वाला है। इसमें थियेटर से जुड़े नए कलाकारों के साथ काम किया है। फिल्म में दिखाया गया है कि मेहनत के बाद गरीबों के सपने भी साकार होते हैं।

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