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नारी सशक्तिकरण: मिर्जापुर की महिलाओं ने खेती-बाड़ी और पशुपालन से बदली अपनी तकदीर, सालाना 200 लाख की हो रही आमदनी

मिर्जापुर की महिलाओं ने पशुपालन और खेती-बाड़ी में कदम रखकर अपनी आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश की है। 12 समूहों में काम करने वाली लगभग 200 महिलाएं सालाना 200 लाख रुपये से अधिक का उपार्जन कर रही हैं। सरकार के सहयोग से स्थापित इन समूहों ने महिलाओं के जीवन में बदलाव लाया है और उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाया है।

By Arun Kumar Mishra Edited By: Sakshi Gupta Updated: Tue, 12 Nov 2024 02:36 PM (IST)
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स्वयं सहायता से जुड़ी महिलाओं को सालाना 200 लाख रुपये की आमदनी हो रही है। (प्रतीकात्मक तस्वीर) जागरण।
जागरण संवाददाता, मिर्जापुर। नारी शक्ति है। घर में है तो समृद्धि का द्वार खोलती है। वहीं, नारी जब घर की दहलीज से बाहर कदम रखती है तो उसके हुनर से घर-आंगन सब उजियार हो उठता है। महिलाएं आज पुरुषों से कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं। यही कारण है कि गांव की महिलाएं आत्मनिर्भर हो रही हैं। इस बदलाव के चलते ही बहुत सारी पुरानी रुढ़ियां टूटती-बिखरती हुईं दिखाई पड़ रही है।

र्जापुर जनपद की प्रगति समूह की महिलाओं ने अपने बल पर बेहतर कार्य करके आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कदम बढ़ाया है। आज स्थिति यह है कि ये महिलाएं सालाना 200 लाख रुपये से अधिक का उपार्जन कर रही हैं। आमदनी का यह आंकड़ा समृद्ध मीरजापुर की दशा और दिशा तय करता हुआ दिखाई पड़ रहा है।

पशुपालन से लेकर खेती-बाड़ी की ली कमान

पशुपालन और खेती बाड़ी मुख्य रूप से पहले पुरुषों के द्वारा ही किए जाते रहे हैं। इसमें महिलाओं की भूमिका नगण्य ही रही है, लेकिन बदलते समय के साथ आधी आबादी की भी सोच में बदलाव आया है। सरकार के प्रयासों से कदम से कदम मिलाकर आधी आबादी ने अपनी क्षमता का बेहतर प्रदर्शन कर उदाहरण प्रस्तुत किया है। 12 समूह में लगभग 200 महिलाएं हैं। इसमें सात महिलाएं जनरल स्टोर, 70 महिलाएं पशुपालन, 90 महिलाएं खेती-बाड़ी और 50 महिलाएं बटाई पर मटर और मिर्चा की खेती कर रही हैं।

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समूह को खड़ा करने में मिला यहां से सहारा

महिलाएं बताती हैं कि समूह को बनाने से लेकर उसे संचालित करने के लिए सरकार का सहयोग प्राप्त हुआ। समूह सखी अनीता बताती हैं कि स्टार्टअप फंड के रूप में 1500 रुपये, रिवॉल्विंग फंड 15000 रुपये और सीआइएफ एक लाख 10 हजार प्राप्त हुए थे।

समूह गठन के बाद स्टार्टअप फंड से दरी व बक्सा आदि खरीदे गए। जबकि रिवॉल्विंग फंड के जरिए समूह के बीच लेन-देन शुरू किया गया। वहीं, सीआइएफ से महिलाओं को रोजगार बढ़ाने से लेकर लेन-देन करके काम शुरू करने में आसानी हुई। आज समूह की सभी महिलाओं के पास काम है। इसके साथ ही समूह लिए पैसे भी महिलाएं समय से लौटा रही हैं।

एक गांव में 12 समूह कर रहा काम

रामगढ़ कला के प्रगति एसएचजी की समूह सखी अनीता देवी का कहना है कि एक ग्राम संगठन में 12 समूह काम कर रहा है। समूह के जरिए महिलाएं खेती-बाड़ी से लेकर पशुपालन भी कर रही हैं। प्रति महिला सालाना एक से डेढ़ लाख का उपार्जन कर लेती हैं। इससे घर से लेकर बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का खर्च उठाना आसान हो गया है। महिलाओं में आर्थिक स्वावलंबन को लेकर सोच के स्तर पर बदलाव हो रहा है। यह अपने आप में एक बड़ी बात है। समूह की बैठक में साफ-सफाई से लेकर सरकारी योजनाओं तक की जानकारी दी जाती है।

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