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अपने आचरण में शामिल करें योग : प्रतिष्ठा शर्मा

मुरादाबाद : विश्व विख्यात योग गुरु पद्मश्री डॉ. भारत भूषण की बेटी और प्रख्यात योगाचार्य प्रतिष्

By JagranEdited By: Published: Tue, 13 Jun 2017 01:47 AM (IST)Updated: Tue, 13 Jun 2017 01:47 AM (IST)
अपने आचरण में शामिल करें योग : प्रतिष्ठा शर्मा

मुरादाबाद :

विश्व विख्यात योग गुरु पद्मश्री डॉ. भारत भूषण की बेटी और प्रख्यात योगाचार्य प्रतिष्ठा शर्मा योग कहती हैं कि पहली बार कोई सरकार भारतीय संस्कृति व परंपराओं को आधार बनाकर आगे बढ़ रही है। समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना व उनके अमल से ही बदलाव संभव है। योग भी इसका एक अहम अंग है। इसके जरिए विश्व पटल पर देश को एक अलग पहचान मिली है।

वह मुरादाबाद में दैनिक जागरण की ओर से विश्व योग दिवस पर होने वाले महाशिविर के अभ्यास सत्र में मंगलवार सुबह साधकों को योग दीक्षा देंगी। सोमवार को वह जागरण की गेस्ट एडिटर रहीं। इस दौरान उन्होंने संवाददाता को साक्षात्कार भी दिया। पेश है इसके संपादित अंश :-

सवाल : विदेश में योग शिविर का प्रतिनिधित्व करने पर कैसा महसूस करती हैं?

जवाब : एक सुखद अनुभव होता है, जब तिरंगे के आगे प्रस्तुति देने का मौका मिलता है। मुझे न मेरे नाम से, न शहर से, न जाति से और न प्रात से जाना जाता है, बल्कि एक भारतीय के तौर पर पहचाना जाता है तो सिर गर्व से ऊंचा हो जाता है।

सवाल : आप बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का जीवंत उदाहरण हैं। कैसा लगता है?

जवाब : गुरुदेव के आशीर्वाद से जीवन में उपलब्धिया मिली हैं, यह सबसे ज्यादा हर्ष का विषय है। मुझे लगता है कि मैंने अपनी मेहनत व प्रभु की कृपा से इस मिथक को तोड़ने का प्रयास किया है। बेटिया सबकुछ कर सकती हैं।

सवाल : आप योग के जरिए भविष्य को किस प्रकार देखती हैं?

जवाब : भविष्य में यही चाहती हूं कि योग व अध्यात्म के जरिए लोक कल्याण कर सकूं। छोटे-छोटे शहरों व गाव में भी योग का प्रचार कर पाऊं।

सवाल: आप एक जानी-मानी आध्यात्मिक गुरु व शास्त्रीय नृत्यांगना हैं। नृत्य को मात्र मनोरंजन का माध्यम माना जाता है। आपका क्या कहना है?

जवाब : लोग वही देखते सुनते व समझते हैं, जो उन्हें परोसा जाता है। मैंने अपने कार्यक्रमों व पब्लिक लेक्चर्स में नृत्य के चिकित्सा पक्ष का बोध लोगों को कराया। कैसे यह प्रभु से मिलन का सबसे सरल माध्यम है। उसका एहसास उन्हें कराया।

सवाल : क्या इस यात्रा में कठिन क्षण भी आए ?

जवाब : ये फूल मुझे विरासत में मिले हैं, तुमने मेरा काटों भरा बिस्तर नहीं देखा। ये लाइनें बताती हैं कि जीवन में कुछ भी बिना संघर्ष के प्राप्त नहीं होता, किसी भी लक्ष्य को पाने के लिए दृढ़ संकल्प के साथ मेहनत की है। हमें लक्ष्य तक पहुंचने के लिए शार्ट कट नहीं अपनाना चाहिए।

सवाल : सरकार के स्तर पर योग को लेकर और क्या चल रहा है?

जवाब : मोक्षायतन, देश की लगभग सभी योग समितियों का अंग है व पूरी तरह से सक्रिय है। गुरुदेव व समस्त मोक्षायतन परिवार की ओर से योग के सभी कार्यकलापों को हमारा हर प्रकार का सहयोग है।

सवाल : मोक्षायतन योग संस्थान का प्रमुख उद्देश्य क्या है?

जवाब : पूज्य गुरुदेव स्वामी डॉ. भारत भूषण के सानिध्य में वर्ष 1973 से संस्थान शक्ति, संयम व देशसेवा का काम किया है। मोक्षायतन का एक ही उद्देश्य है कि विश्व में भारत को बेहतर स्थान मिले। संस्थान के विभिन्न प्रकल्प भारत योग, लाइव ब्लड बैंक, संस्कार शिक्षा, व्यायामशाला, प्रकाशन सास्कृतिक प्रकोष्ठ, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ सहित तमाम राष्ट्र से जुड़े प्रकल्प संस्थान चला रहा है।

सवाल : गुरुदेव आपके पिता भी हैं, उनका क्या संदेश रहता है?

जवाब : गुरुदेव का मानना है यदि बचपन से ही योग का बीजारोपण कर दिया जाए तो समाज से अपराध पूरी तरह से समाप्त जाएगा। हमने स्वास्थ्य का दायरा मात्र तन को मान लिया है इसीलिए आज समाज पतन की ओर जा रहा है।

सवाल : आप सामाजिक मुद्दों पर भी चैनल्स पर वक्ता के रूप में जाती हैं। हाल ही में देश भक्ति पर आपकी बड़ी चर्चा रही। योग से इनका क्या ताल्लुक है।

जवाब : मात्र योग से ही नहीं बल्कि हर चीज से देश का ताल्लुक है। देश है तो हम हैं। देश नहीं तो न हम नहीं। अब हमारी भी कुछ जिम्मेदारी बनती है कि देश व समाज को कुछ दें।

सवाल : सबसे कम आयु की योग गुरु होने के साथ-साथ आप प्रथम महिला योग गुरु हैं, कैसा अनुभव करती हैं?

जवाब : मैं इसे ईश्वरीय कृपा ही मानती हूं। प्रभु ने मुझे इस कार्य के लिए चुना। भारत के शास्त्रीय योग से सबको लाभान्वित करने से अच्छा कुछ हो ही नहीं सकता। जब तक दिन में कोई पुरुषार्थ न करो यानी किसी का भला न करो, तब तक सोना नहीं चाहिए।

सवाल: दैनिक जागरण के कार्यक्रम में आकर कैसा लग रहा है?

जवाब : दैनिक जागरण ने अच्छा प्रयास किया है। जागरण का समाजिक सरोकार ही पाठकों की पहली पसंद है।

सवाल: जागरण के पाठकों के लिए कोई संदेश?

जवाब : यही कहना चाहूंगी कि अपनी संस्कृति पर गर्व करें। उसी से हमारी पहचान है। शास्त्रीय विधाओं से योग को सीखें, आगे सिखाएं और जीवन शैली में उतारें।

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रोज शिशु गति करें महिलाएं

-नारी समाज की रीढ़ है। जब रीढ़ खराब होती है तो पूरा शरीर खराब हो जाता है। वह स्वस्थ रहने के लिए अपने बच्चों के साथ खेलें। शारीरिक रूप से सक्रिय रहने से खून का संचार बढ़ेगा। इसके लिए वह घुटनों के बल चलते हुए शिशु गति का अभ्यास कर सकती हैं, जिन महिलाओं को घुटनों में समस्या है। वह पवनमुक्तासन का करें।

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वाकर में बिठाने के बजाय जीने दें बचपन

वर्तमान में व्यक्ति सुविधाओं का हद से ज्यादा उपभोग करने लगा है। इसी कड़ी में शिशुओं को घुटनों के बल चलने देने के बजाय वाकर में बिठा देते हैं। यह नहीं होना चाहिए। गैजेट कल्चर को हावी न होने दें।

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प्राणायाम का करें अभ्यास

व्यस्त दिनचर्या से समय निकालकर प्रतिदिन प्राणायाम का अभ्यास करें। एक हाथ सीने पर और एक हाथ पेट पर रखकर गहरी सांस लें। इससे ऑक्सीजन और रक्त का संचार बढ़ेगा। साथ ही दिन में तीन बार अट्टाहास करने से शरीर भी प्रसन्न रहेगा।

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रेखागति व ज्ञान मुद्रा बढ़ाती है एकाग्रता

दिनभर की भागदौड़ के कारण व्यक्ति एकाग्रचित नहीं हो पाता है। परिवार और समाज से विरक्त रहकर तो सभी योगी बन जाते हैं। विषम परिस्थितियों में भी शांत चित्त रहना ही महत्वपूर्ण है। इसके लिए रेखागति का अभ्यास, जाप व ज्ञान मुद्रा का अभ्यास किया जा सकता है।

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13 बार ओम का उच्चारण देता है अच्छी नींद

प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन 70 से 75 हजार विचार आते हैं। रात को शरीर सो जाता है। मन जागता रहता है। जब हम सपने देखते हैं तो वह दिनभर के विचार ही होते हैं। यही वजह है कि आठ घंटे की नींद के बाद भी हम जग नहीं पाते। इसके लिए योग निद्रा का अभ्यास किया जा सकता है। बिस्तर पर सही तरीके से बैठकर 13 बार ओम का उच्चारण करने से बेहतर नींद आती है। ओ का उच्चारण पेट को, अ का सीने को और म का उच्चारण दिमाग को शांत करता है।

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राजकुमारी के स्थान पर बेटियों को बनाएं मजबूत

बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान से पहले हमें अपनी बेटियों को मजबूत बनाना होगा। अब हर विषय में बेटियों को राजकुमारी की तरह दिखाया जाता है। उन्हें गार्गी और मैत्री बनने के स्थान पर राजकुमार की कहानियां सुनाकर कमजोर बनाया जाता है, जो विपरीत परिस्थितियों में आकर उसे बचाएगा।

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पीटी विषय न बनकर रह जाए योग

बच्चों को बचपन से ही योग की शिक्षा दी जाए। पहले योजना बन रही थी कि पाठ्यक्रम में 20 फीसद थ्योरी रहेगी और 80 फीसद प्रैक्टिकल रहेगा। यह सही नहीं है। दोनों ही चीजों को 50-50 फीसद पर ही रखना होगा। योग पीटी विषय बनकर न जाए। अ¨हसा के ज्ञान से आतंक का नाश होगा।


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