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आखिर कौन है मुरादाबाद एसएसपी आवास का असली मालिक ? 19 साल से कौन ले रहा किराया, जांच में दस्तावेज मिला फर्जी

मुरादाबाद में एसएसपी आवास के किराए को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। जांच में पाया गया है कि किराए के लिए लगाए गए दस्तावेज फर्जी हैं। अपर आयुक्त ने मंडलायुक्त को सौंपी जांच रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इस मामले में पुलिस विभाग और राजस्व विभाग के कर्मचारी भी कार्रवाई के दायरे में आ गए हैं।

By Tarun Parashar Edited By: Abhishek Saxena Updated: Wed, 11 Sep 2024 02:38 PM (IST)
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Moradabad News: मुरादाबाद एसएसपी आवास का फाइल फोटो।

जागरण संवाददाता, मुरादाबाद। पुलिस विभाग एसएसपी मुरादाबाद के सरकारी आवास का लगभग 19 साल तक किराया भरता रहा। किसी ने यह जानने का प्रयास नहीं किया कि लगभग 97 साल पुराने आवास पर 2005 में किराए के लिए किस आधार पर दावा किया गया।

इस प्रकरण की अपर आयुक्त के द्वारा की गई जांच में किराया वसूली के लिए लगाए गए प्रपत्र फर्जी मिले हैं। जबकि, किराए भरने के लिए आदेश करने वाला भी कूट रचित माना जा रहा है। इस प्रकरण में एसएसपी द्वारा पहले ही प्राथमिकी दर्ज कराई जा चुकी है। जांच के आधार पर न्यायालय में अपना पक्ष रखेगी। साथ ही पुलिस अपने स्तर पर कार्रवाई करेगी।

मंडलायुक्त तक पहुंचा था मामला

आवास के सरकारी आवास से किराया वसूले जाने के प्रकरण मंडलायुक्त के पास पहुंचा था। इसके बाद उन्होंने इस प्रकरण को जिलाधिकारी के पास भेजा था। जिलाधिकारी इस प्रकरण में जांच की आवश्यकता बताते हुए संदर्भित किया था। मंडलायुक्त ने अपर आयुक्त सर्वेश गुप्ता के नेतृत्व में चार सदस्यीय एसआइटी गठित कर जांच कराई। अपर आयुक्त ने जांच पूरी कर रिपोर्ट मंडलायुक्त को सौंप दी। इसमें राजस्व विभाग के साथ पुलिस विभाग के कर्मी भी कार्रवाई के दायरे में आ गए है।

एसआईटी ने मालिकाना हक जानने का किया प्रयास

एसआईटी ने यह पता लगाने का प्रयास किया कि पहले तो किराया नहीं जा रहा था फिर अचानक से दावा कैसे हो गया और मालिकाना हक का दावा करने वाले को सही कैसे मान लिया। मालिकाना हक का दावा करने के लिए लगाए गए प्रपत्रों की जांच हुई या नहीं। राजस्व विभाग में जमीन किसने के नाम पर दर्ज है किरायानामा किन लोगों ने तैयार किया।

जांच रिपोर्ट में सामने आया है कि जो भी प्रपत्र लगाए गए हैं, उनकी विभागीय पुष्टि नहीं हो रही है और अधिकतर के कूट रचित होने की संभावना है। पुलिस विभाग ने भी इनकी जांच करने की जरूरत नहीं समझी। इससे स्पष्ट है कि यह कारनामा मिलीभगत से हुआ है।

एसएसपी का आदेश लखनऊ से भेजा गया

एसएसपी बंगले का किराया कोर्ट के माध्यम से निर्धारित हुआ था। किराया निर्धारित किए जाने के बाद उसका काउंटर भी दाखिल नहीं किया गया। इसके साथ ही किराया भरने के लिए एसएसपी ने भी आदेश कर दिय। हालांकि, किराया देने का आदेश जिन कप्तान का है, वह उस समय मुरादाबाद में नहीं थे। उनके आदेश लखनऊ से दिखाया गया है। इससे उसके कूट रचित होने की पूरी संभावना है।

1927 से है एसएसपी आवास

सिविल लाइंस स्थित करीब छह हजार वर्ग मीटर में फैला यह बंगला वर्ष 1927 से एसएसपी आवास है। इससे पहले एडीजी ट्रेनिंग का आवास हुआ करता था। 2003 तक इस बंगले को लेकर कोई विवाद नहीं था। 2003-04 में अचानक संजय धवन एडवोकेट ने बंगले पर मालिकाना हक जताते हुए कोर्ट में दावा कर दिया। कोर्ट में वाद दायर होने के बाद किसी अधिकारी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया और पैरवी भी ठीक से नहीं होने के कारण न्यायालय ने एकतरफा आदेश कर दिया।

पांच हजार रुपये महीना किराया देने की कही बात

कोर्ट ने कहा कि दावा करने वाले को पांच हजार रुपये महीना किराया देने का किराया दिया जाए या उसे खाली किया जाए। तत्कालीन अधिकारियों ने बंगला खाली नहीं कराने के लिए डीजीसी सिविल से काउंटर दाखिल कराया। इसमें कहा कि वह किराया भरने के लिए तैयार हैं। किराया मिलना शुरू होने के बाद संजय धवन ने बंगले में 20 से अधिक कमरे बताकर किराया बढ़ाने के लिए फिर से वाद दायर कर दिया। इसमें भी विभागीय लापरवाही के कारण एकतरफा आदेश हो गया। इस बार किराया बढ़ाकर 51 हजार कर दिया। संपत्ति के बारे में सच पता लगने पर छह महीने पहले तत्कालीन एसएसपी हेमराज मीणा ने प्राथमिकी दर्ज कराई थी।

हेमराज मीणा ने किराया देना बंद करके बैठाई जांच

2024 में तत्कालीन एसएसपी हेमराज मीणा को किराए का प्रकरण सामने आने पर शक हुआ। उन्होंने संजय धवन से मालिकाना हक के दस्तावेज मांगकर जांच कराई। संजय धवन ने एसएसपी को 1903 की उर्दू भाषा की एक रजिस्ट्री दिखाई। जांच कराने पर रजिस्ट्री विभाग में इसका कोई उल्लेख नहीं मिला। जांच में रजिस्ट्री विभाग, नगर निगम और रेवेन्यू रिकार्ड में कहीं भी संजय धवन के पास इस बंगले के मालिकाना हक का टाइटल नहीं निकला।

बदलते रहे मालिक

जांच में पता लगा कि ब्रिटिश काल में एसएसपी बंगले की संपत्ति मुस्लिम परिवार की थी, जिसे उस समय एसएसपी आवास के लिए दिया था। 1903 में शाहू हरगुलाल ने अकबरी बेगम से इस संपत्ति को खरीदा था। इसके बाद ये संपत्ति उनके बेटे श्रीनाथ के पास गई।

संजय धवन खुद को इसी परिवार का वंशज बताकर दावा किया था। मामले को गंभीरता से लेकर एसएसपी ने सिविल लाइंस थाने में प्राथमिकी दर्ज करा दी थी। विवेचक निरीक्षक राजेंद्र सिंह कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि राजस्व विभाग से जमीन से संबंधित प्रपत्र इकट्ठे करके जांच कर रहा हूं। कुछ प्रपत्र मिल भी गए हैं। जल्द ही इस मामले में आगे की कार्रवाई होगी।

जांच रिपोर्ट मिल गई है। अभी विस्तार से अध्ययन नहीं किया गया है। इसमें प्राथमिक तौर पर किराए के लिए लगाए गए दस्तावेज फर्जी और कूटरचित हैं। आंजनेय कुमार सिंह, मंडलायुक्त

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