West UP की 18 जाट बाहुल्य लोकसभा सीटों पर 'जिसके जाट उसके ठाठ', क्या Bhupendra Singh कराएंगे भाजपा की 'ठाठ'
New UP BJP President News जाटों में अब तक सबसे बड़े नेता चौधरी चरण सिंह रहे हैं। उनकी विरासत बेटे स्व. चौधरी अजीत सिंह को मिली थी लेकिन वह सत्ता के साथ के अपने कदमों के चलते जाटों को साथ नहीं रख सके।
By Vivek BajpaiEdited By: Updated: Thu, 25 Aug 2022 05:52 PM (IST)
मुरादाबाद, (संजय रुस्तगी)। Chaudhary Bhupendra Singh News: गन्ने सी मिठास, लेकिन खरी-खरी बात। जाट बाहुल्य क्षेत्र (पश्चिमी उप्र) का यह स्वभाव राजनीति में भी दिखता है। इसीलिए, कहावत यह भी मशहूर है कि जिसके जाट, उसके ठाठ। हर पार्टी की कोशिश होती है कि जाट उसके साथ रहें लेकिन कैराना प्रकरण ने जाटों को भाजपा के साथ जोड़ा तो यह कड़ी अब तक बनी हुई है। बीते आठ साल में कुछ जगह कड़ियां कुछ कमजोर होती नजर आईं तो नई जोड़ी गईं। अब भूपेंद्र सिंह को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नियुक्त कर इसे नई चमक देने की कोशिश की गई है। इस चमक की 2024 में कितनी चकाचौंध दिखती है, यह नए अध्यक्ष के कद में विस्तार की अगली परीक्षा होगी। फिलहाल, सपा से गठबंधन के बाद राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) को रोकना और प्रदेश में दोबारा आंदोलन की तैयारी में जुटी भाकियू को थामना नए अध्यक्ष का पहला काम होगा।
यह भी पढ़ें:- UP BJP President: जानिए कौन हैं चौधरी भूपेंद्र सिंह, 33 साल में कैसे तय किया प्रदेश अध्यक्ष तक का राजनीतिक सफरजाटों में अब तक सबसे बड़े नेता चौधरी चरण सिंह रहे हैं। उनकी विरासत बेटे स्व. चौधरी अजित सिंह को मिली थी लेकिन वह लगातार सत्ता के साथ चलते अपने कदमों के कारण जाटों को एकजुट नहीं रख सके। परिणाम यह हुआ कि वह 2014 में पूरे जाटलैंड से उनका तंबू उखड़ गया। अपनी परंपरागत बागपत सीट से भी वह भाजपा प्रत्याशी एसपी सिंह से लोकसभा चुनाव हार गए थे।
यह भी पढ़ें:- UP BJP President : पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट वोट पर भाजपा की नजर, भूपेन्द्र सिंह को बनाया यूपी का अध्यक्षयह सीट चौधरी की विरासत संभालने वाले अजित के लिए कितनी अहम थी, इसका अनुमान इसी से लगा सकते हैं कि 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद की सहानुभूति लहर में भी यहां चौधरी चरण सिंह की जीत हुई थी। यह विरासत अजीत के बाद चौधरी चरण सिंह के पौत्र जयंत चौधरी के पास आई, परंतु जाटों का इस बीच बड़ा जुड़ाव भाजपा के साथ हो चुका था। ऐसे में उनके लिए राह पथरीली रही। पश्चिमी उप्र में जाटों के करीब 17 प्रतिशत से ज्यादा वोट होने के बाद भी वह कोई करिश्मा नहीं कर सके।
यह भी पढ़ें:- UP BJP President: नए प्रदेश अध्यक्ष चौधरी भूपेंद्र सिंह के सामने में घर में ही भाजपा को मजबूत करने की बड़ी चुनौतीभाजपा के लिए बड़ी मुश्किल यह है कि मुरादाबाद मंडल की मुरादाबाद, संभल, रामपुर, अमरोहा, नगीना और बिजनौर की अधिकांश सीटों पर मुस्लिम मतदाता प्रभावी संख्या में हैं। इस वजह से वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बाद भी भाजपा यहां एक सीट भी नहीं जीत पाई थी। मुरादाबाद, संभल और रामपुर लोकसभा सीट पर सपा जीती थी। बिजनौर, अमरोहा और नगीना पर बसपा की जीत हुई थी।
यह भी पढ़ें:- UP BJP President: रात में नड्डा और सुबह हुई शाह से मुलाकात, दोपहर में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बन गए चौधरी भूपेंद्र सिंहहालांकि, वर्ष 2022 में रामपुर सीट आजम खां द्वारा छोड़ दिए जाने के बाद यहां भाजपा के घनश्याम लोधी जीत गए। मेरठ, बागपत, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद और गौतमबुद्ध नगर की सीटों पर भूपेंद्र मेहनत कर भाजपा को मजबूत बनाए रख सकते हैं। अन्य सीटों में अलीगढ़ मंडल की अलीगढ़, हाथरस में शहरी वोटर भाजपा के साथ रहता है। ऐसे में भाजपा का जाट मतदाता सधा रहे तो वह आसानी से जीत हासिल कर लेती है। यहां भूपेंद्र सिंह के लिए ज्यादा मुश्किल नहीं होगी।
यह भी पढ़ें:- UP BJP President: जाटलैंड में रालोद पर लगाम और टिकैत को थामना चौधरी भूपेंद्र सिंह का पहला कामआगरा मंडल की फतेहपुर सीकरी और मथुरा सीट पर जाटों की महत्वपूर्ण भूमिका है। सीकरी में भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजकुमार चाहर सांसद हैं। उनका वहां भाजपा के साथ व्यक्तिगत प्रभाव भी है। मथुरा में शहरी क्षेत्र भाजपा की चिंता कम तो करता है, लेकिन वहां गांवों में जयंत की पकड़ मुश्किल करती है। पिछले दो चुनावों से इसीलिए अभिनेत्री हेमामालिनी को भाजपा चुनाव में उतार कर जीत हासिल करती रही है।
यह भी पढ़ें:- UP BJP President: रुहेलखंड से पहले भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बने भूपेंद्र सिंह, पार्टी में मुरादाबाद मंडल का दबदबासमाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के बने गठबंधन के कारण विधानसभा चुनाव में रालोद को आठ सीटों पर जीत हासिल हुई। यह गठबंधन संसदीय चुनाव में भी बरकरार रहने की प्रबल संभावना है। भूपेंद्र की ताजपोशी इसे रोकने में भी कामयाब हो सकती है। दिल्ली सीमा पर एक साल से अधिक आंदोलन करने वाली भाकियू अब फिर आंदोलन करने की तैयारी में है। उसका लक्ष्य 2024 में भाजपा को परेशान करना है। भाकियू की मंशा पूरी होने में भी भूपेंद्र आड़े आ सकते हैं।
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