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UP Politics: RLD के एनडीए में जाने से यहां सपा को लगेगा करारा झटका, साइकिल दो 'लड़ाके' के भरोसे, अपने ही गढ़ में फिर से बनानी होगी रणनीति

UP News बसपा के बाद रालोद का भी साथ छूटने से गढ़ में ही मिलेगी चुनौती। नगर निगम के चुनाव में पार्टी प्रत्याशी को मुस्लिमों का समर्थन मिलने से यह संभावना जरूर थी कि कांग्रेस और सपा के आमने-सामने आने से मुस्लिमों का बिखराव हो सकता है। अमरोहा संभल रामपुर और मुरादाबाद सीट पर मुस्लिमों को निर्णायक माना जाता रहा है।

By Jagran News Edited By: Abhishek Saxena Updated: Sat, 10 Feb 2024 01:40 PM (IST)
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रालोद के राजग में जाने से मंडल में सपा को लगेगा करारा झटका l

जागरण संवाददाता, मुरादाबाद। किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न की घोषणा। रालोद का राजग के साथ जाना लगभग तय होने से मंडल में राजनीतिक समीकरण चौंकाने वाले हो सकते हैं। रालोद के साथ आने से भाजपा को लाभ होगा या नहीं, इसपर बहस हो सकती है लेकिन, सपा को अपने गढ़ में ही नए सिरे से रणनीति बनानी होगी।

गठबंधन से बसपा पहले ही अलग

वर्ष 2019 के चुनाव में सभी छह सीटें जीतने वाले गठबंधन से बसपा पहले ही अलग है, अब रालोद की भी राह अलग होने से उसे (समाजवादी पार्टी) को सिर्फ कांग्रेस का ही सहारा होगा। पूर्व के गठबंधघन नारे की तरह इस बार भी साइकिल "दो लड़कों" के भरोसे ही चुनावी दौड़ में दिख सकती है।

2019 के संसदीय चुनाव में सपा, बसपा और रालोद के गठबंधन ने मोदी लहर होने के बाद भी सभी छह सीटों पर कब्जा किया था। इनमें बिजनौर, नगीना और अमरोहा सीटें बसपा को मिलीं, जबकि मुरादाबाद, संभल और रामपुर सीटों पर सपा काबिज हुई। रालोद किसी सीट पर नहीं लड़ी थी।

मतों का गठबंधन को लाभ

चुनाव में रालोद के वोटबैंक माने जाने वाले कुछ जाट मतों का गठबंधन को लाभ होना माना गया था। साथ ही जीत का मुख्य आधार सपा-बसपा के साथ मुस्लिम और अनुसूचित जाति के मतदाताओं का जाना रहा। बदले हालात में बसपा और सपा की सियासी राहें विधानसभा चुनाव से पहले ही जुदा हो चुकी हैं। लिहाजा पिछले चुनाव की तरह अनुसूचित जाति का समर्थन हासिल करने की परीक्षा से सपा को गुजरना होगा।

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आंकड़ा जुटाने का

हालांकि, भाजपा ने चौधरी भूपेंद्र सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर जाटों के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने का दांव काफी पहले खेल दिया है। देखना दिलचस्प होगा कि रालोद के अलग होने पर अखिलेश जीत के लिए जादुई आंकड़ा कैसे जुटाएंगे...? इतना जरूर है कि इस चुनाव में कांग्रेस और सपा के एक प्लेटफार्म पर आना तय माना जा रहा है लेकिन, क्रिकेटर मोहम्मद अजहरुद्दीन की जीत के बाद से वह जनाधार बढ़ाने के लिए लगातार संघर्ष कर रही है।

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वैसे बसपा भी मुस्लिमों को पाने के लिए पूरा जोर लगा सकती है। इधर, भाजपा को रालोद के साथ आने से लाभ होने की बात करें, उसे सिर्फ जाट मतों पाने की राह आसान होगी। मंडल की कई विधानसभा सीटों पर जाट मतदाता भी काफी हैं।