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Moradabad News: मुफ्त की रेवड़ी समझकर बेच डाले कांशीराम आवास, 50 प्रतिशत लोगों ने किराए पर उठाया

30 प्रतिशत ने कागजों में हेर-फेर कर बेच दिए हैं। करीब 20 फीसद लोग ही ऐसे हैं जो निश्शुल्क आवास का पट्टा लेकर अपनी छत के नीचे रहे रहे हैं। निश्शुल्क आवासों में रहने वाले लोग कहते हैं कि डेढ़ से दो लाख रुपये में आवास बेचने की जानकारी है।

By Vivek BajpaiEdited By: Updated: Mon, 05 Sep 2022 03:58 PM (IST)
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तमाम अपात्रों ने भी कांशीराम आवास हासिल कर लिए। सौ. गूगल
मुरादाबाद, जागरण संवाददाता। मान्यवर कांशीराम शहरी गरीब आवास योजना 15 सालों में हाशिए पर पहुंच गई। वर्ष 2007 में पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने अपने कार्यकाल में निश्शुल्क आवास उपलब्ध कराकर गरीबों को सौगात दी थी। उस समय मिली फ्री की रेबड़ी मानकर अपात्रों ने गरीबों के हक पर डाका डाला था और आज भी उन्हें किराए पर उठाकर कमाई कर रहे हैं। ऐसा करने वालों की संख्या एक दो नहीं बल्कि 50 प्रतिशत तक है।

वहीं, 30 प्रतिशत ने कागजों में हेर-फेर कर बेच दिए हैं। करीब 20 फीसद लोग ही ऐसे हैं, जो निश्शुल्क आवास का पट्टा लेकर अपनी छत के नीचे रहे रहे हैं। निश्शुल्क आवासों में रहने वाले लोग कहते हैं कि डेढ़ से दो लाख रुपये में यह आवास बेचने की जानकारी है। कांशीराम नगर में ए से ई ब्लाक तक निश्शुल्क आवास बने हैं। अलग-अलग पाकेट में कम से कम 96 और 150 तक आवास तीन मंजिला इमारतों में हैं। कांशीराम नगर आवास योजना के तहत तीन मंजिला इमारतों में दो कमरे, शौचालय व रसोई बनाई गई थी।

गरीबों के लिए करीब 3500 आवास बने थे। मौजूदा समय में इनकी स्थिति खराब हो चुकी है। किराए पर उठाने के बाद रंग-राेगन तक नहीं कराया गया। जिस अवस्था में आवंटन हुआ, आज भी वह उसी स्थिति में हैं, जिसके चलते उनकी हालत खराब हो रही है। कई मकान ऐसे हैं, जिनका आवंटन नहीं होने से ताला तक नहीं खुला। उनमें ताला तोड़कर अवैध रूप से लोग रह रहे हैं। अवैध रूप से मकान आवंटन कराकर किराए पर उठाने और बेचने वालाें का न तो मुरादाबाद विकास प्राधिकरण कुछ बिगाड़ पाया और जिला प्रशासन ने कभी संज्ञान लिया।

यह थी योजना

वर्ष 2007 में किसानों की जमीन आवंटित करके कांशीराम नगर शहरी गरीब आवास योजना बनी थी। इसमें प्रथम चरण में 1500, दूसरे चरण में 2260 आवास बने थे। सरकार ने 99 साल के लिए पट्टे पर यह आवास दिए हैं। अगर इस बीच इनमें रहने वाले आर्थिक रूप से मजबूत हो जाते हैं और दूसरी जगह आवास खरीद या जमीन खरीदकर बना लेते हैं तो जिला प्रशासन को निश्शुल्क आवास वापस करने होंगे।

दूसरे मकान खरीदे, निश्शुल्क आवास नहीं किए वापस

लोगों ने कांशीराम नगर में प्राइवेट जमीन खरीदकर मकान बना लिए। लेकिन, सरकार से मिले निश्शुल्क आवास को वापस नहीं किया। पुराने शहर में रहने वाले कबाड़ियों के भी आवास हैं, जिन्होंने किराए पर उठा रखे हैं और वह सड़क पर झुग्गी झोपड़ी में रहते हैं। कुछ झुग्गी झोपड़ी वाले अपवाद हैं। वह इन निश्शुल्क आवास में रहकर कबाड़ बीनने का काम करते हैं।

नशाखोरों व वैश्यावृत्ति का अड्डा भी बने 

निश्शुल्क आवास में ऐसे लोगों का जीवन दुश्वार हो गया है, जो मेहनत करके गुजरा करते हैं। इन आवासों में किराए पर रहने वाले घरों में वैश्यावृत्ति तक हो रही है। लोगों का कहना है कि बच्चों का भविष्य खराब हो रहा है। मायावती ने जिस उद्देश्य से निश्शुल्क आवास दिए थे, वह दुश्वारियों का शिकार है। आसपास गंदगी रहती है।

एमडीए उपाध्‍यक्ष शैलेश कुमार ने कहा कि कांशीराम नगर योजना में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को आवास दिए गए थे। इसमें अगर जिन्होंने आवास बेचे और किराए पर उठाए हैं वह नियम विरुद्ध है। इनकी जांच कराई जाएगी।

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