LokSabhaElection2019 : नए सांसद के लिए मुरादाबाद की जनता का घोषणा पत्र
राष्ट्रीय दल हों या क्षेत्रीय सभी के प्रत्याशी जनता के बीच सजने वाले मंचों पर जनता के लिए ही काम करने की प्रतिबद्धता व्यक्त कर रहे हैं।
By Narendra KumarEdited By: Updated: Mon, 22 Apr 2019 06:15 AM (IST)
मुरादाबाद, जेएनएन। चुनाव कोई भी हो, उसमें जनता से जुड़े मुद्दे उठते ही हैं। धर्म-जति के मुद्दे भी उठते हैं लेकिन, मंचों की शोभा जनता के वे मुद्दे ही होते हैं जिनके प्रति लोकतंत्र में जनप्रतिनिधि की जवाबदेही मानी जाती है। लोकसभा चुनाव-2019 में भी आमजन के जीवन से जुड़े मुद्दों पर खूब चर्चाएं हो रही हैं। राष्ट्रीय दल हों या क्षेत्रीय, सभी के प्रत्याशी जनता के बीच सजने वाले मंचों पर जनता के लिए ही काम करने की प्रतिबद्धता व्यक्त कर रहे हैं। ऐसे में दैनिक जागरण ने जनता के बीच कराई गई चर्चाओं से निकले अहम मुद्दों को अपने घोषणा पत्र में रखने की पहल की है, जो भावी सांसद के घोषणा पत्र में परिवर्तित कर दिया जाएगा। जागरण टीम ने चौपाल के जरिये जनता से संवाद बनाकर उनकी समस्याएं और उनके मुद्दे जानने की कोशिश की। विचार-विमर्श के दौरान जो मुद्दे सामने आए उन्हें हमने अपने घोषणा पत्र में तीन श्रेणियों में रखा है। पहला- लोकसभा क्षेत्र के तीन राष्ट्रीय मुद्दे, दूसरा- प्रदेश स्तर के तीन मुद्दे और तीसरा- स्थानीय स्तर के तीन मुद्दे..अर्थात प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र के नौ मुद्दों को हमने सभी प्रमुख प्रत्याशियों के सामने रखा और उनकी राय जानी। हमारा आशय यह है कि जो भी प्रत्याशी सांसद चुना जाए, वह इन मुद्दों को संसद से लेकर सड़क तक न सिर्फ उठाए बल्कि समयबद्ध निराकरण कराए। हमने जब प्रत्याशियों से इन मुद्दों पर उनकी राय पूछी तो सबने जनता के बीच से लिए गए इन नौ मुद्दों के प्रति न सिर्फ अपनी सहमति जताई बल्कि आश्वस्त किया कि सांसद चुने जाने पर वे इन मुद्दों को लेकर तक तक आवाज उठाएंगे जब तक समाधान न हो जाए। अपने पाठकों को स्पष्ट करना चाहते हैं कि लोकसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद नए सांसद को हम दैनिक जागरण के मंच पर आमंत्रित करेंगे और जनता की उपस्थिति में नौ मुद्दों के निराकरण के लिए व्यक्त किए गए उनके संकल्प से संबंधित बुकलेट देंगे। साथ ही उनसे अनुरोध किया जाएगा कि इन मुद्दों के समाधान के लिए वे प्राण-पण से जुट जाएं। घोषणा पत्र की प्रतिलिपि सौंपने के साथ ही हम लगातार उनके प्रयासों पर नजर रखेंगे। सांसद ने इन मुद्दों के लिए कब-कब संसद में आवाज उठाई, क्या सवाल किए और समाधान क्या निकला, इसकी जानकारी दैनिक जागरण अपने पाठकों को खबर के जरिये देता रहेगा। जागरण इन मुद्दों को तब तक उठाता रहेगा जब तक सांसद अपने वादे के अनुरूप इनका निस्तारण नहीं कराएंगे।
पीतलनगरी के रूप में विख्यात मुरादाबाद प्रदेश का नहीं देश का हैंडीक्राफ्ट निर्यात का प्रमुख केंद्र है। देश भर के हैंडीक्राफ्ट में मुरादाबाद की हिस्सेदारी 23 फीसद की है और प्रदेश में यही 60 फीसद हो जाता है। यहां निर्यात की बड़ी भागीदारी भी हैं। इसके बावजूद निर्यात कारोबार से जुड़े लोगों की समस्याएं खत्म नहीं हो रही हैं। मांगें लंबित हैं। मुरादाबाद के साथ अमरोहा, रामपुर और सम्भल से भी काफी मात्र में निर्यात होता है। निर्यातकों की मांग है कि हैंडीक्राफ्ट इंडस्ट्री वस्त्र मंत्रलय के अंतर्गत काम करती है। लेकिन कपड़ा बनाने वाले और उसके हस्तशिल्पियों को जो सुविधाएं मिलती हैं वह हैंडीक्राफ्ट इंडस्ट्री को नहीं दी जाती। दूसरा निर्यातकों को पहले अनेक सुविधाएं और रियायतें मिलती आ रही हैं, इनमें फोकस लाइसेंस, ड्रा बैक, कंटेनर सब्सिडी, फेयर सब्सिडी, एमडीए ग्रांट, तकनीकी इंपोर्ट पर सब्सिडी आदि शामिल हैं। पिछले पांच साल में इन सभी मदों में लगातार कटौती की जा रही है। यह दरें सात फीसद से घटकर लगभग डेढ़ से दो फीसद रह गई हैं। विशेष आर्थिक क्षेत्र को बहुउद्देश्यीय आर्थिक क्षेत्र घोषित कर दिया गया, लेकिन कार्रवाई ठप है। मंडल के जिलों में औद्योगिक क्षेत्र स्थापित नहीं हो पाया है। बढ़ावा देने के लिए निर्यात नीति में संशोधन की जरूरत है।
किसान हैं परेशान
स्वामीनाथ आयोग की रिपोर्ट लागू न होने की वजह से मुरादाबाद के किसान परेशान हैं। उन्हें अपनी फसलों का न्यूनतम मूल्य तक नहीं मिल पा रहा है। सरकारी क्रय केंद्र न खुलने की वजह से किसानों को न्यूनतम मूल्य से कम दामों में बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है। गन्ने की पैदावार में मुरादाबाद मंडल का प्रदेश में अपना मुकाम है। किसान गन्ने को मिलों तक पहुंचा रहे हैं, लेकिन मिलें भुगतान नहीं कर रही हैं। किसान अपने ही पैसे के लिए आंदोलन कर रहे हैं। सरकारें वादों के सिवा कुछ नहीं करती हैं। 18 नवंबर 2004 में यूपीए सरकार ने प्रो. एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया था। आयोग ने कहा था कि औद्योगिक ईकाइयों को उत्पाद की लागत का 250 गुना तक मुनाफा जोड़कर अधिकतम मूल्य तय करने का अधिकार है जबकि किसान की फसलों का मूल्य सरकार तय करती है। वह भी न्यूनतम मूल्य। सरकार को फसलों में 50 फीसद मुनाफा जोड़कर रेट तय करने के लिए कहा गया था, जो आज तक नहीं हुआ।
शिक्षा के बीच गहरी खाई
राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा के बीच गहरी खाई है। एक ओर महंगे कान्वेंट स्कूल हैं तो दूसरी ओर सरकारी विद्यालय हैं। दोनों में जमीन आसमान का अंतर है। कान्वेंट स्कूलों में शिक्षा महंगी है तो वहां उसका स्तर भी ऊंचा है। इन विद्यालयों में बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को आधुनिक तकनीक के प्रयोग के साथ वैश्विक स्तर से मुकाबला किया जा रहा है। उनके पास स्मार्ट क्लासेज हैं, पहली कक्षा से ही कंप्यूटर शिक्षा है। वहीं दूसरी ओर सरकारी स्कूलों का हाल किसी से छिपा नहीं है। ठंड के दिनों में बर्फ जैसी फर्श पर टाट पट्टी पर बैठकर पढऩा तो गर्मियों के दिनों में 40 डिग्री तापमान में पसीना बहाते हुए पढ़ाई करना। मिड-डे मील व्यवस्था भ्रष्टाचार की शिकार है। सरकारी स्कूलों में सुधार के लिए अधिकारियों और मंत्रियों के बच्चों को शिक्षा दिलाने की न्यायालय की सलाह का पालन करना तो दूर, इस पर चर्चा तक नहीं होती। सबसे बड़ी बात यह है कि आठवीं तक कंप्यूटर देखने को नहीं मिलता, जब वे रोजगार के लिए निकलते हैं तो कान्वेंट से पढ़कर निकले बच्चे के सामने कहीं नहीं ठहरते। मुरादाबाद मंडल के साढ़े चार लाख बच्चे बेसिक शिक्षा विभाग के विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। जबकि कान्वेंट विद्यालयों में इनकी संख्या डेढ़ लाख के आसपास है। सरकारी स्कूल से शिक्षा पाकर निकलने वाले बच्चों में अंगुली पर गिने जा सकने वाले ही अच्छे पदों तक पहुंच पाते हैं। ऐसे में देश स्तर पर समान शिक्षा नीति की दरकार है, जो कम से कम कक्षा एक से आठ तक चाहे गरीब हो या अमीर हर बच्चे को समान अवसर उपलब्ध कराए।खंडपीठ की मांग है पुरानी
पश्चिम उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट खंडपीठ की मांग 40 साल पुरानी है। प्रदेश में 22 करोड़ की जनसंख्या में से आठ करोड़ पश्चिम उप्र के 22 जिलों की है। हाईकोर्ट की सिर्फ लखनऊ में खंडपीठ है। प्रदेश में तीसरी खंडपीठ नहीं है। मुरादाबाद से दूरी 545 किमी, सहारनपुर से दूरी 752 किमी, शामली 720 किमी, मुजफ्फरनगर 693, बिजनौर 692 और बागपत 670 किलोमीटर है। सत्ता और विपक्ष उनकी मांग को न्यायोचित मानता है। पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने विपक्ष में रहते हुए भी हाईकोर्ट बेंच की मांग को जायज बताया था। हालांकि प्रधानमंत्री बनने के बाद अटलबिहारी वाजपेई ने मांग पूरी नहीं की। इस मामले को लेकर निरंतर आंदोलन और संघर्ष चल रहा है। रिकार्ड में अंकित है कि इस वक्त 15 लाख से ज्यादा मुकदमे लंबित हैं। आंदोलन की रणनीति के लिए आगामी 24 मई को शामली में बैठक बुलाई गई है। निर्णय लिया गया है कि अगर नेताओं से मिलने से रोकने का प्रयास किया गया तो गिरफ्तारी देने से पीछे नहीं हटेंगे, चाहे उन्हें जेल जाना पड़े।खेल सुविधाओं को लेकर उदासीनता
खेल सुविधाओं को लेकर सरकारें उदासीन रहीं हैं। खेल के विकास के लिए योजनाएं बनती हैं और धरातल पर नहीं उतर पाती हैं। जिले और ब्लाक स्तर पर खेल मैदान अभी तक नहीं बने हैं। ऐसे में खेल प्रतिभाओं का विकास नहीं हो पा रहा है। न्याय पंचायत तक खेल सुविधाएं बढ़ें तो निश्चित रूप से प्रतिभाएं आगे बढ़ेंगी। जनप्रतिनिधियों के एजेंडे में खेल नहीं हैं। मुरादाबाद मंडल की बात करें तो देश को चेतन चौहान, पीयूष चावला, मुहम्मद शमी जैसे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर दिए हैं। क्रिकेटर शिवा सिंह और शिवम शर्मा भी इस फेहरिस्त में आगे बढ़ रहे हैं। इसके अलावा अन्य खेलों से खिलाड़ी आगे बढ़े हैं। रामपुर में तीन स्टेडियम बने हैं। प्रदेश का नंबर वन हॉकी स्टेडियम मुहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी के पास बना है। अभी तक इसे खेल विभाग को हस्तांतरित नहीं किया गया है।बसों की कनेक्टिविटी गांवों तक नहीं
उत्तर प्रदेश में रोडवेज बसों की कनेक्टिविटी गांवों तक नहीं हैं। कई जिलों में बस अड्डे भी नहीं हैं। उदाहरण स्वरूप सम्भल जिले को ले लें। यही कारण है कि गांवों के मार्ग पर डग्गामार वाहनों के सहारे ग्रामीण हैं। मध्य प्रदेश और हरियाणा सरकार से भी अनुबंध अभी तक हो नहीं पाया है। वहां बसें नहीं जाती है। यानी सीधी बस सेवा नहीं है। इसलिए इन दो राज्यों में जाने के लिए लोगों के सामने ट्रेन ही एक विकल्प है। मुरादाबाद शहर से शाम होने के बाद अंतर जनपदीय बसें नहीं है, जो बसें जाती भी हैं वे बाइपास होकर निकल जाती हैं। इससे लोगों को रात में भटकना पड़ता है। एक दूसरे जिले के बीच शटल बस सेवा की कमी है। इसके चलते डग्गेमार वाहनों को बढ़ावा मिल रहा है। गांव तक रोडवेज बसों को जोडऩे की मुहिम अभी तक पूरी नहीं हो सकी है।पुल है की है दरकार
लाइन पार में रहने वाली चार लाख की आबादी को महानगर से जोडऩे के लिए कपूर कंपनी पुल सबसे नजदीक रास्ता है। लेकिन इतनी बड़ी आबादी की मांग पर जनप्रतिनिधि से लेकर सरकारी संस्थाएं आंखें मूंदे हुए हैं । यहां बता दें कि 26 साल पहले इस पुल पर हादसा हो चुका है, जिसमें 20 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। इस मुद्दे को लेकर आंदोलन भी चल चुका है। पूर्व में पुल निर्माण के लिए प्रस्ताव भी बना था, लेकिन अधिकारियों ने मनमानी दिखाते हुए ठंडे बस्ते में डाल दिया।जर्जर हो रहे कपूर कंपनी पुल की रेलवे ने 10 अक्टूबर 2018 में मरम्मत कराई और रेलिंग व जाली का वजन कम किया गया है। यह पुल चार लाख की जनता के लिए जरूरी है।अब नगर निगम और रेलवे दोनों ही इस पुल के निर्माण में रुचि नहीं दिखा रहे हैं। हाल यह है कि हर दिन 50 हजार से ज्यादा लोग रिस्क उठाकर पुल पार करने को मजबूर हैं।उधर, शहर को दिल्ली रोड से जोडऩे के लिए एकमात्र लोकोशेड पुल है। बरेली होकर लखनऊ जाने के लिए आवागमन लोकोशेड पुल से होता है। इससे टीयूवी (ट्रैफिक यूनिट व्हीकल) एक लाख प्रतिदिन के पार जा चुकी है। महानगर में जाम की समस्या को दूर करने के लिए फ्लाई ओवर के अलावा रिंग रोड का प्रस्ताव भी लंबित है।विवि की भी मांग है पुरानीमुरादाबाद में विश्वविद्यालय की स्थापना की मांग 45 वषों से चल रही है, लेकिन अब तक कुछ नहीं हो सका। एमजेपी रुहेलखंड विश्वविद्यालय बरेली से मुरादाबाद मंडल के 200 से अधिक महाविद्यालय संबद्ध हैं और इनमें करीब ढाई लाख से अधिक विद्यार्थी अध्ययन करते हैं। मुरादाबाद में सरकारी विश्वविद्यालय बनने के बाद लाखों छात्रों की भागदौड़ रुहेलखंड विवि बरेली के लिए बच जाएगी। डिग्री कालेज के आलावा मंडल मुख्यालय पर मेडिकल कालेज खोले जाने की मांग कर रहे हैं ताकि लोगों को बेहतर और सस्ती चिकित्सा सेवा मिल सके। मंडल में 20 हजार से अधिक कैंसर के मरीज पंजीकृत हैं। मेडिकल कालेज नहीं होने से दिल्ली, मेरठ और अलीगढ़ मरीज जाते हैं। ट्रामा सेंटर भी नहीं होने के चलते मुरादाबाद से मरीज रेफर किए जाते हैं। बदायूं जैसे छोटे से जिले में मेडिकल कालेज खुल गया। मंडल में चार निजी विश्वविद्यालय हैं। इनमें फीस अधिक होने के चलते गरीब के बच्चे यहां शिक्षा ग्रहण नहीं कर सकते हैं। हाल ही में सहारनपुर को विवि मिल गया है, जबकि एमएलसी मुरादाबाद से हैं। पूरे प्रदेश में मुरादाबाद ही ऐसा मंडल मुख्यालय बचा है जहां विश्वविद्यालय नहीं है।दुनिया भर में पीतलनगरी के नाम से पहचान बनाने वाले मुरादाबाद के लिए कंटेनर डिपो शहर में हैं। इस डिपो से 500 से एक हजार करोड़ का कारोबार होता है। शहर के बीच लोकोशेड के पास कंटेनर डिपो होने के चलते बड़े कंटेनर नहीं आ पाते हैं। उनका दिन में आना प्रतिबंधित है। रात में ही इन्हें शहर में एंट्री दी जाती है। इससे रात में इन कंटेनरों से जाम लगता है। इसको शहर के बाहर शिफ्ट किए जाने की मांग कई साल से लंबित हैं। दलपतपुर रेलवे स्टेशन के पास गांव में इसके लिए जमीन भी देखी गई थी, लेकिन बात नहीं बन पाई। इसकी वजह से यह मसला लंबित है। बड़े कंटेनर नहीं भरने से दिल्ली और मुंबई तक निर्यातकों को अपना माल भेजने के लिए लोगों को दिक्कत का सामना करना पड़ता है। इससे कारोबार पर असर पड़ रहा है। बड़े कारोबारी अपनी फैक्ट्री दिल्ली और नोएडा में ले गए हैं ताकि शिङ्क्षपग में दिक्कत न हो। इससे जहां महानगर से फैक्ट्रियां हट रही हैं वहीं रोजगार भ कम हो रहे हैं। निर्यात की एक और समस्या यहां पर कोई औद्योगिक क्षेत्र नहीं है। विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड ) का विस्तार नहीं हो सका है। इसको एमपीजेड (मल्टी परपज जोन) में परिवर्तित करने का काम पांच सालों से अधूरा है।
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