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मुरादाबाद में भाजपा प्रत्याशी सर्वेश सिंह का निधन, अब क्या होगा उपचुनाव ?, जिद्दी स्वभाव और दबंग राजनीति के लिए जाने जाते थे

72 वर्षीय सर्वेश सिंह ने अस्वस्थ चल रहे थे। 27 मार्च को नामांकन कराने के बाद जनसंपर्क में भी नहीं निकल सके थे। हालांकि 12 अप्रैल को गृहमंत्री अमित शाह की मुरादाबाद और 15 अप्रैल को सीएम योगी आदित्यनाथ की लोकसभा क्षेत्र के बिजनौर के बढ़ापुरा में जनसभा में आए थे। 19 अप्रैल को उन्होंने पैतृक रतूपुरा गांव के बूथ पर मतदान किया था।

By Jagran News Edited By: Abhishek Saxena Updated: Sun, 21 Apr 2024 08:26 AM (IST)
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मुरादाबाद से भाजपा प्रत्याशी सर्वेश सिंह का निधन हो गया।
जागरण संवाददाता, मुरादाबाद। सर्वेश सिंह दांत के ऑपरेशन के बाद बीमार चल रहे थे। 19 अप्रैल को उन्होंने पैतृक रतूपुरा गांव के बूथ पर मतदान किया था। शनिवार की सुबह उन्हें उपचार के लिए एम्स ले जाया गया था। वहां हार्ट अटैक होने से मृत्यु हो गई। 

चुनाव पर नहीं पड़ेगा असर

जिला निर्वाचन अधिकारी मानवेंद्र सिंह के अनुसार मतगणना पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत ही होगी। यदि भाजपा प्रत्याशी विजयी होते हैं तो सीट को रिक्त घोषित कर दोबारा चुनाव कराया जाएगा। उनके पराजित होने पर चुनाव पर असर नहीं पड़ेगा। मुरादाबाद लोकसभा सीट पर पहले चरण में 19 अप्रैल को चुनाव हुआ है।  

पारंपरिक तौर तरीकों से अलग थी सर्वेश सिंह की राजनीति

कुंवर सर्वेश सिंह की राजनीति का अंदाज ही अलग था। अपने परिवार में तीसरी पीढ़ी में राजनीति में थे। उनकी ननिहाल से राजनीति विरासत में मिली। पिता कांग्रेस के टिकट पर विधायक और अमरोहा से सांसद रहे थे। अपने परिवार से अलग वह भाजपा के साथ जुड़े। 1991 में उन्हें भाजपा ने ठाकुरद्वारा विधानसभा क्षेत्र में प्रत्याशी बनाया और वह विधायक चुने गए। इसके साथ ही उनकी राजनीति का दौर शुरू हुआ।

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राजनीति में थी दबंग छवि

सर्वेश सिंह राजनीति में दबंग छवि के लिए जाने जाते थे। वह राज परिवारों की तरह राजनीति में सक्रिय रहे। जिद्दी स्वभाव और अपने निर्णय को बड़े-बड़े नेताओं से मनमाने की खूबी उनके अंदर थी। वह लोगों के साथ सीधे जुड़कर राजनीति करते। लोगों के सुख-दुख में साथ खड़े होते। संगठन के साथ उनके कभी मधुर संबंध नहीं रहे। वह हमेशा अपनी मूंछों पर ताव देते हुए दिखाई देते।

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चुनाव में करना पड़ा था हार का सामना

  • सर्वेश सिंह भाजपा की टिकट पर 1991, 1993, 1996 और 2002 में लगातार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे।
  • 2007 में उन्हें बसपा प्रत्याशी विजय यादव से हार का सामना करना पड़ा था।
  • 2009 में उन्हें लोकसभा प्रत्याशी बनाया। लेकिन, अजहरुद्दीन के स्टारडम के आगे सफल नहीं हुए।
  • 2012 में वह ठाकुरद्वारा सीट पर फिर से विधायक चुने गए।
  • 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें फिर से प्रत्याशी बनाया और उन्होंने जीत दर्ज की।
  • 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें हार मिली।
  • हालांकि, 2022 में भी उन्होंने ठाकुरद्वारा सीट से दावेदारी की, लेकिन टिकट नहीं मिला।
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