Move to Jagran APP

Muharram 2022 पर रामपुर में चार क्विंटल चांदी की जरीह कर रही लोगों को आकर्षित, नवाबों ने बनवाई थी जरीह

Muharram 2022 पिछले दो साल कोरोना महामारी के चलते मुहर्रम की मजलिसों पर भी पाबंदी रही। लेकिन इस साल कर्बला के शहीदों की याद में मजलिस भी हो रही हैं और जुलूस भी निकल रहे हैं। यहां नवाब खानदान के तीन इमामबाड़े हैं।

By Samanvay PandeyEdited By: Updated: Tue, 09 Aug 2022 01:39 PM (IST)
Hero Image
Muharram 2022 : रामपुर नवाब खानदान के इमामबाड़ा खासबाग में चार क्विंटल चांदी की जरीह। फोटो जागरण
रामपुर, (मुस्लेमीन)। Muharram 2022 : रामपुर नवाब खानदान (Rampur Nawab Family) के इमामबाड़ा खासबाग (Kothi Khasbag) में चार क्विंटल चांदी की जरीह (Silver Jarih) है, जो इराक (Iraq) में बने हज़रत इमाम हुसैन (Imam Husain) के रोज़े की तरह बनी है।

इस जरीह को बनाने के लिए रामपुर (Rampur) रियासत के आखिरी नवाब रजा अली खां ने आर्किटेक्ट को कर्बला (इराक) भेजा था। आजकल इस जरीह को देखने के लिए अजादार उमड़ रहे हैं। पिछले दो साल कोरोना महामारी के चलते मुहर्रम की मजलिसों पर भी पाबंदी रही।

इस साल कर्बला के शहीदों की याद में मजलिस भी हो रही हैं और जुलूस भी निकल रहे हैं। यहां अजादार जंजीरों और छुरियों का मातम भी करते हैं, जिससे वे लहूलुहान हो जाते हैं। रामपुर का नवाब खानदान (Rampur Nawab Family) भी मुहर्रम (Muharram) माह में नवासा ए रसूल इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत की याद में हर साल अजादारी करता है। यहां नवाब खानदान के तीन इमामबाड़े हैं।

इनमें इमामबाड़ा किला, इमामबाड़ा खासबाग और इमामबाड़ा गुलजार-ए- रफत शामिल हैं। नवाबी दौर में नवाब खानदान इमामबाड़ा किला में ही अजादारी करता रहा। आजादी के बाद किला सरकार के अधीन हो गया तो 1949 में खासबाग में भी इमामबाड़ा बनाया गया। इसके अलावा 1987 में ज्वालानगर में इमामबाड़ा गुलजार-ए-रफत बना। अब मुहर्रम माह चल रहा है तो इमामबाड़ों में मजलिस हो रही हैं। अजादारों की भीड़ लग रही है। अलम और जरीह के जुलूस भी निकल रहे हैं।

इमामबाड़ा किला में 1500 अलम

पूर्न मंत्री नवाब काजिम अली खां (Nawab Kazim Ali) उर्फ नवेद मियां (Naved Mian) बताते हैं कि इमामबाड़ा खासबाग में नवाब खानदान के सभी सदस्यों की जरीह रखी गई है। खासबाग में 1200 और किला इमामबाड़ा में 1500 अलम हैं। इमामबाड़ा गुलजार-ए-रफत में सोने के अलम भी हैं। यह अलम ईरान और सीरिया से लाए गए थे। मुहर्रम माह में अलम बाहर निकलते हैं। इसके बाद तीनों इमाम बाड़ों के अलम खासबाग इमामबाड़े के स्ट्रांग रूम में रखे जाते हैं। इनकी सुरक्षा में पुलिस तैनात रहती है।

महिलाओं की भी होती है मजलिस

इमामबाड़ा गुलजार-ए-रफत के मुतव्ली भी नवेद मियां (Naved Mian) हैं। इनसे पहले उनके पिता नवाब जुल्फिकार अली खां (Nawab Zulfiqar Ali Khan) उर्फ मिक्की मियां (Mickey Mian) इस इमामाबाड़े के मुतवल्ली थे। नवेद मियां (Naved Mian) बताते हैं कि इमामबाड़ा गुलज़ार–ए–रफत में महिलाओं के लिए अलग से मजलिस की व्यवस्था है।

इसमें उनकी मां पूर्व सांसद बेगम नूरबानो (Begum Nurbano) और पत्नी फिरदौस जमानी बेगम (Firdaus Zamani Begum) उर्फ शाहबानो (Shahbano) समेत परिवार की सभी महिलाएं शामिल होती हैं। 29 जिलहिज्जा को इमामबाड़ा गुलज़ार–ए–रफत से जरीह का जुलूस निकाला गया था और मोमेनीन ने मातम किया था। दस मुहर्रम को जुलूस निकाला जाएगा। पंद्रह मोहर्रम को अलम मुबारक का जुलूस भी निकलेगा।

पहले नवाब सुन्नी और आखिरी शिया

नवेद मियां (Naved Mian) बताते हैं कि रामपुर में शाही खानदान में शिया और सुन्नी दोनों ही मसलक के नवाब हुए। रियासत के पहले नवाब फैजुल्लाह खां (Nawab Faizullah Khan) सुन्नी थे। इनके बाद नवाब हाफिज रहमत खां (Nawab Hafiz Rahmat Khan), नवाब मुहम्मद अली खां (Nawab Muhammad Ali Khan) और नवाब अहमद अली खां (Nawab Ahmed Ali Khan) सुन्नी रहे।

लेकिन, पांचवें नवाब सईद खां (Nawab Saeed Khan) और उनके बेटे यूसुफ अली खां (Yusuf Ali Khan) शिया थे। सातवें नवाब कल्बे अली खां (Nawab Kalbe Ali Khan) और उनके बेटे मु्स्ताक अली खां (Mustaq Ali Khan) सुन्नी रहे। इसके बाद नौवें नवाब हामिद अली खां और उनके बेटे आखिरी नवाब रजा अली खां शिया मसलक पर रहे।

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।