सपा के गढ़ में ओवैसी बिगाड़ेंगे सियासी समीकरण, यूपी के बड़े नेताओं को खलने लगी है कार्यक्रम में उमड़ती भीड़
विधानसभा चुनाव में जीत को लेकर आश्वस्त दिखाई देने वाले नेताओं को भी वोट कटने की चिंता सताने लगी है। मुस्लिम मतों के सहारे सियासत करने वाले सभी दलों के नेता सबसे अधिक परेशान हैं। वह अपने वाेटरों को ओवैसी से बचाने के लिए फॉर्मूला तलाश रहे हैं।
By Narendra KumarEdited By: Updated: Fri, 16 Jul 2021 09:08 AM (IST)
मुरादाबाद [मोहसिन पाशा] । समाजवादी पार्टी का गढ़ कहे जाने वाले मुरादाबाद मंडल में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लेमीन के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी की आमद सियासी सूरमाओं का खेल बिगाड़ सकती है। टिकट न मिलने पर कुछ बागी नेताओं के लिए ओवैसी की पार्टी चुनाव लड़ने के लिए सहारा भी बन सकती है। ओवैसी के कार्यक्रम में जुटी भीड़ के बारे में सुनकर स्थानीय नेताओं को पसीना छूट रहा है। मोदी लहर में वर्ष 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने धमाकेदार जीत हासिल की थी, लेकिन मुरादाबाद मंडल में भाजपा का प्रदर्शन अन्य मंडलों की तुलना में बेहद खराब रहा था। सम्भल की असमोली विधानसभा सीट पर पिंकी यादव को जनता ने विधायक चुना था।
मुरादाबाद की छह विधानसभा सीटों में चार पर सपा ने कब्जा कर लिया था। अमरोहा में भी सपा ने अच्छा प्रदर्शन किया था। अब छह महीने बाद फिर से विधानसभा चुनाव होने हैं। यूपी में योगी आदित्यनाथ सरकार की परीक्षा की घड़ी आ रही है। सपा मुखिया एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी चुनाव की जोरदार तैयारी कर रहे हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपनी सियासी गोटियां बिछानी शुरू कर दी है। कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका वाड्रा ने खुद यूपी के चुनाव की कमान संभाल रखी है। यूपी में भागीदारी संकल्प मोर्चा बनाकर असदुद्दीन ओवैसी का चुनावी ताल ठोकना तीनों ही प्रमुख दलों के बड़े नेताओं को खलने लगा है। ओवैसी को भाजपा का एजेंट बताया जा रहा है। लेकिन, वह भी ऐसा कहने वालों को जवाब देने से चूक नहीं रहे। गुरुवार को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नवाब मज्जू खां की दरगाह पर चादरपोशी करके ओवैसी ने मुरादाबाद में चुनाव से पहले अपनी धमाकेदार आमद दर्ज कराई है। उनके कार्यक्रम में भारी भी़ड़ थी। पुलिस को भीड़ को हटाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी। ओवैसी से हाथ मिलाने के लिए भीड़ में शामिल युवा बेताब नजर आए। हालांकि, उनके कार्यक्रम में आयी भीड़ ने दूसरे दलों के नेता के माथे पर चिंता की लकीरें बना दीं। विधानसभा चुनाव में जीत को लेकर आश्वस्त दिखाई देने वाले नेताओं को भी वोट कटने की चिंता सताने लगी है। मुस्लिम मतों के सहारे सियासत करने वाले सभी दलों के नेता सबसे अधिक परेशान हैं। वह अपने वाेटरों को ओवैसी से बचाने के लिए फॉर्मूला तलाश रहे हैं। चुनाव की घोषणा के बाद ही ओवैसी का असर वोटरों पर दिखाई देगा। राजनीति के जानकारों का कहना है कि ओवैसी को हल्के में लेना भूल होगा। सपा-बसपा और कांग्रेस का समीकरण तो वह बिगाड़ ही सकते हैं।
ओवैसी की बागियों पर नजर : ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लेमीन के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी का देश की मुस्लिम सियासत में बड़ा नाम है। वह मुस्लिम वोटरों को प्रभावित कर सकते हैं। सपा-बसपा और कांग्रेस के वोट बैंक में ही वह यूपी में सेंध लगाने का काम करेंगे। इसलिए उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ाने के लिए चेहरों की तलाश भी इन्हीं दलों में से शुरू कर दी है। वह इन तीनों दलों के बागियों पर दांव लगा सकते हैं। इससे पार्टी जीतेगी भी नहीं तो कम से इन दलों के नेता होने का लाभ लेकर कुछ फीसद वोट मिल ही जाएगा। इसके आगे आने वाले चुनावों में पार्टी को लाभ मिलता रहेगा।
2017 में बिगाड़ा था सपा का खेल : एमआइएमआइएम ने कांठ में अपना प्रत्याशी उतारा था। इसका सीधा फायदा भाजपा को मिला था। फिजाउल्ला चौधरी को ओवैशी ने टिकट दी थी और उन्होंने करीब 23 हजार वोट लेकर सपा का खेल बिगाड़ दिया था। भाजपा के राजेश कुमार चुन्नू ने 76 हजार से अधिक वोट लेकर सपा प्रत्याशी अनीसुर्रहमान को करीब ढाई हजार वोट से हराया था। इस बार भी ओवैशी के प्रत्याशी पूरे समीकरण बिगाड़ देंगे।
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