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Pulwama Terror Attack : धमाका इतना तेज था क‍ि स्‍टेयरिंग पर कांप गए थे हाथ, मुरादाबाद के भीम स‍िंंह चला रहे थे बस

Pulwama Terror Attack पुलवामा हमले के दौरान काफिले में शामिल बस को चला रहे थे मुरादाबाद के भीम सिंह। कांठ तहसील के मौढ़ा तैया के रहने वाले भीम सिंह सीआरपीएफ में ड्राइवर हैं। आज भी वह हमले को यादकर स‍िहर जाते हैं।

By Narendra KumarEdited By: Updated: Sun, 14 Feb 2021 09:49 AM (IST)
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विस्फोट की आवाज इतनी थी कि लगा जैसे कान फट जाएंगे।

मुरादाबाद, जेएनएन। Pulwama Terror Attack। वह मंजर कभी नहीं भूल सकता। जब कभी उस हमले की याद आती है तो रात में नींद नहीं आती। उस काफिले में शामिल बस को मैं चला रहा था। जिस बस से विस्फोटक से भरी कार टकराई थी, पहले मेरी बस भी उसके नजदीक थी। लेकिन, बस में खराबी आने के कारण पीछे हो गई थी। हमले के समय हमारी बस करीब 700 मीटर की दूरी पर थी। विस्फोट की आवाज इतनी थी कि लगा जैसे कान फट जाएंगे। हमले के बाद सारे वाहन वहीं रोक दिए गए थे। उस दिन का याद करते हुए मुरादाबाद के मौढ़ा तैया गांव निवासी सीआरपीएफ भीम सिंह का गला रुंध गया।

पुलवामा हमला ने देश को ऐसा दर्द दिया है, जो रह-रहकर सताता है। बम धमाके में 40 जवान शहीद हो गए थे। 14 फरवरी 2019 में हमला हुआ था। कांठ तहसील के गांव मौढा तैया के मूल निवासी सीआरपीएफ में ड्राइवर हैं। अभी जम्मू में तैनात हैं। फोन पर हुई वार्ता में उन्होंने बताया कि हमारा काफिला तड़के जम्मू रेलवे स्टेशन से श्रीनगर के लिए निकला था। इसमें सीआरपीएफ, बीएसफ, सेना और अन्य पैरा मिलिट्री फोर्स की बसें थीं। ये बसें स्टेशन से छुट्टी से लौटकर आए जवानों को लेकर चलीं थीं। जिस बस को मैं चला रहा था वह कानवॉय में तीसरे नंबर पर थी। अवंतिकापोरा जिले में प्रवेश के बाद हाईवे पर चलते समय अचानक से इंजन में एयर आ जाने के कारण बस झटके लेने लगी, लेकिन बस किसी भी हाल में रोकने का आदेश नहीं थे, इसलिए दूसरी बसों को पास दे दिया। कुछ झटके खाने के बाद बस फिर से ठीक से चलने लगी। इसके चलते हमारी बस पीछे हो गई। हाईवे पर चलते अचानक से तेज धमाके की आवाज आई, ऐसे लगा जैसे कान फट जाएंगे। स्टेयरिंग पर हाथ कांप गए और खुद ही ब्रेक दब गए। इसके बाद तो पूरा काफिला ही रुक गया। पर बस से कोई बाहर नहीं निकला। पता चला कि आगे धमाका हुआ है। कुछ ही देर में सेना के जवानों ने पूरा क्षेत्र घेर लिया और बसों को वहां से बख्शी स्टेडियम ले जाया गया। वहां करीब सात घंटे तक हम लोगों ने इंतजार किया। यहां पूरी घटना की जानकारी हो चुकी थी। घर से फोन आने लगे, जब उन्हें पता चला कि हम पूरी तरह ठीक हैं, तो राहत की सांस ली। गुस्सा और गम आज भी दिल में बरकरार है। अपने साथियों के बलिदान वाले फोटो देखकर तो आंखें नम हो जाती हैं।

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