प्रधानमंत्री ने लोगों से की आत्मनिर्भर बनने की अपील, सम्भल का आढौल गांव बोला यस सर Sambhal News
दूध तो इतना कि 40 रुपये लीटर बिकने वाला अब डेयरी की गाड़ी न आने से रेट पहुंचा 25 रुपये। गांव में काफी संख्या में लोग कृषि व्यवसाय से जुड़े हैं।
सम्भल (राघवेंद्र शुक्ल)। कोरोना वॉयरस से देश लॉक है। सम्भल बंद है। सड़कें सूनी हैं। दुकानें बंद हैं। शहरों में गरीब दूसरों पर निर्भर हैं। राशन की दुकानें यदा कदा नहीं खुली तो हालात बदतर हो जाते हैं। शहरी आंखें सब्जी वाले को ढूंढती हैं, दूधिये को तलाश करती हैं, फल वाले ठेले के लिए नजर गड़ाए रहती हैं। पर गांव तो अलग हैं। इस कोरोना वॉयरस ने बदलाव की आंधी में एक बड़ी बात भी समझाई। यानी निर्भरता। जो खुद पीएम नरेंद्र मोदी भी बोले। आत्मनिर्भर बने। दूसरों पर से निर्भरता खत्म हो।
एक माह क्या एक साल भी लॉकडाउन हो जाए तो गांव चलते रहेंगे। जैसे आढौल चल रहा है। बिना थके, बिना रुके। यहां खेत में किसान जुटे हैं। चौपाल खाली है लेकिन घर के गोदाम भरे हैं। डेयरी की गाड़ी शहर से नहीं आती लेकिन घर के बड़े बर्तन दूध से भरे हैं। सब्जी ठेला नहीं तलाशे जाते। खेत में जाकर सब्जी तोड़ ली जाती है। गेहूं निकालकर आटा पीस लिया जाता है।
मंगलवार को जब जागरण टीम ने पवांसा विकास खंड की ग्राम पंचायत आढौल का जायजा लिया तो यह तस्वीर भी दिखी। गांव के बाहरी छोर पर प्रधान कोमल यादव का घर। पूरी तरह से सन्नाटा। गेट खुला है लेकिन लोग घर के अंदर। इनके पुत्र रजनेश आए और गांव की भौगोलिक स्थिति को बताया। गांव की गलियां सुनसान। थोडी दूर आगे 75 वर्षीय महेंद्र छांव में बैठे थे। पूछा दादा लॉकडाउन है यहां क्या कर रहे हो। बोले मालूम है। यहां तो हर दिन लॉकडाउन है। सुरक्षित है म्हारा गांव। चौपाल पर सोशल डिस्टेंङ्क्षसग का पूरा पालन। सौदान ङ्क्षसह, गंगा शाह, दिनेश और श्रीराम थोड़ी-थोड़ी दूरी पर बैठे मिले। चौपाल पर बनी स्थायी कुर्सी पर गंगा शाह काबिज थे। यहां चर्चा में देश, कोरोना, लॉकडाउन और पीएम मोदी थे।
गांव के 300 लोग हरियाणा में मजदूर
गांव के 300 लोग हरियाणा में मजदूर हैं। इनके परिवार के बाकी लोग खेती करते हैं। होली पर सभी गांव आए तो 20 के बाद जाने की सोचे। फिर कोरोना आया और लॉकडाउन संग लाया। सब यहीं रह गए। 25 युवक जा चुके थे। वह भी 16 दिन पहले आ गए लेकिन प्रधान ने आने के साथ ही जांच भी उनकी करा दी। वह सामान्य हैं और घर की दहलीज में हैं। गांव में 3000 आबादी और 1800 वोटर हैं।
गांव में कुल 1500 बीघा खेत हैं। इसमें से 1000 बीघा खेत में गेहूं, आलू और मैंथा की फसल होती है। 200 से 300 बीघा में ग्रामीण सब्जी उगाते हैं। 100 बीघा में सरसो और उड़द की फसल होती है। शेष में जरूरत की अन्य चीजों के साथ ही जानवरों के चारे की भी व्यवस्था हो जाती है। गेहूं की पैदावार के बाद कुछ हिस्सा बेचकर नकदी रखते हैं और इससे वह चीनी, मसाला, हल्दी, नमक, बिस्किट, नमकीन, फल व अन्य चीजों की खरीदारी करते हैं।
ग्राम प्रधान कोमल देवी ने कहा कि गांव में पूरी सतर्कता बरती जा रही है। हर किसी को सतर्क किया गया है। वह जागरूक रहे। बाहरी का आवागमन वर्जित है। गांव में रहने वाले रजनेश बोले गेहूं न बिकना ही इस समय की बड़ी दिक्कत है। यहां किसान जरूरत के लिए 2 से 4 कुंटल गेहूं बेचना चाहता है और केंद्र पर ज्यादा खरीदारी की जाती है। इजहार आलम का कहना था कि गांव के लोगों को मास्क पहनने के लिए जागरूक कर रहा हूं। वैसे गांव पूरी तरह से कोरोना मुक्त है। महेंद्र ने बताया कि हमें बाहर के सामान की क्या जरूरत है सब कुछ गांव में पैदा होता है।