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हमेशा याद रहेंगे मुरादाबाद के आजादी के दीवाने नवाब मज्जू खां, पढ़ें नवाब मज्जू खां की शौर्य गाथा

Heroic story of Freedom fighters of Moradabad देश की आजादी के लिए जंग लड़ने वालों में मुरादाबाद के मजीदुद्दीन उर्फ मज्जू खां का नाम हमेशा याद किया जाएगा। देश की आजादी में इन्होंने अपनी कुर्बानी दी थी। अंग्रेजों ने उन्हें बेहद दर्दनाक मौत दी थी।

By Samanvay PandeyEdited By: Updated: Tue, 10 Aug 2021 04:10 PM (IST)
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अंग्रेज शासकों ने 20 क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करके फांसी पर लटका दिया था।

मुरादाबाद, जेएनएन। Heroic story of Freedom fighters of Moradabad : देश की आजादी के लिए जंग लड़ने वालों में मुरादाबाद के मजीदुद्दीन उर्फ मज्जू खां का नाम हमेशा याद किया जाएगा। देश की आजादी में इन्होंने अपनी कुर्बानी दी थी। अंग्रेजों ने उन्हें बेहद दर्दनाक मौत दी थी। इतिहास के जानकार प्रवक्ता मुशाहिद हुसैन का कहना है कि आजादी की जंग के दौरान 14 अप्रैल 1855 तक मुरादाबाद में हंगामा खत्म हो गया था। इस बीच 25 अप्रैल को जालिम अंग्रेज जनरल जानसन गौरी फौज और सिख रेजीमेंट के साथ मुरादाबाद पहुंचा। इसके बाद क्रांतिकारियों ने फिर से अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद करनी शुरू कर दी।

इस दौरान अंग्रेज शासकों ने 20 क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करके फांसी पर लटका दिया था। नवाब मज्जू खां 18वीं सदी में रुहेलखंड आए बहादुरों के परिवार से थे। मेरठ में 1857 के गदर में एक व्यक्ति मेरठ के क्रांतिकारी की सूचना लेकर 11 मई, 1857 को मुरादाबाद आया। सूचना मिलते ही मुरादाबाद में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत शुरू हो गई। अंग्रेजों की सरकार ने 12 मई को अपने अधिकारी जीटीसी विलसन को मुरादाबाद भेजा।

18 मई को अंग्रेज सेना की पलटन के 70 लोगों ने मेरठ से मुरादाबाद आकर आसपास के क्षेत्र में बगावत शुरू कर दी। इसके बाद 30 मई की शाम को बरेली से रेजीमेंट के 445 लोग मुरादाबाद पहुंचे। अगले ही दिन सूबेदार मुहम्मद बख्श उर्फ बख्त खां और तोपखाना व पलटन नंबर 18 व 68 छावनी बरेली के लोग बागी हो गए। इतना ही नहीं उन्होंने अंग्रेजों को मुरादाबाद से भगा दिया था।

हाथी के पैर में बांधकर शहर में घुमाया था नवाब मज्जू खां मेमोरियल कमेटी के अध्यक्ष वकी रसीद ने बताया कि नवाब मज्जू खां रामपुर नवाब की फौज के साथ लड़ते समय पैर में गोली लगने से घायल हो गए थे। यहीं उन्हें गिरफ्तार करके अंग्रेज अधिकारी निकलसन के सामने पेश किया गया। उसने उनके हाथ-पैर व हड्डियां तोड़ने का आदेश दिए। इसके बाद उन्हें ताजा चूने में डाल कर उन पर पानी डाला।

इतना ही नहीं जालिमों ने उन्हें हाथी के पैर से बांध कर पूरे शहर में घुमाया। 25 अप्रैल 1858 को उनकी लाश मुहल्ला गलशहीद में इमली के पेड़ से बांध कर लटका दी गई थी। सबकुछ अंग्रेजों ने लूट लिया। कई दिन तक मज्जू खां की लाश पेड़ पर लटकी रही। जुमे के दिन उनके शव को उतार कर अंग्रेजों ने मैदान में एक तरफ डलवा दिया। इसी बीच हजरत शाह मुकम्मल शाह (रह.) के मजार की तरफ से दो लोग पहुंचे।

उन्होंने मस्जिद पत्तन शहीद के पीछे उनके शव को दफन किया। हर साल 15 अगस्त, 26 जनवरी पर डीएम उनकी मजार पर चादरपोशी के लिए आते हैं। अंग्रेजों का नवाब मज्जू खां पर तक सीमित नहीं रहा। उनके बेटे अमीरुद्दीन, बहनोई शब्बीर अली खां और रफीउद्दीन खां पर भी 1858 में मुकदमा चलाकर उन्हें गोली मारकर शहीद कर दिया था।