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NDA के साथ जनादेश, मीरापुर सीट पर जीतीं 'मिथलेश'; उपचुनाव में BJP-रालोद की जीत में छिपी रणनीति यहां समझिये

मीरापुर उपचुनाव में बीजेपी-रालोद गठबंधन की प्रत्याशी मिथलेश पाल की जीत ने केंद्र और प्रदेश सरकार की नीतियों पर जनता के भरोसे को साबित कर दिया है। प्रत्याशी के चयन से लेकर बेहतर समन्वय और बूथ प्रबंधन तक कई अहम फैक्टर इस जीत में अहम रहे। मुस्लिम मतों के बिखराव ने भी एनडीए प्रत्याशी को लाभ पहुंचाया। जानिए इस जीत के पीछे की रणनीति का विश्लेषण...।

By Sakshi Gupta Edited By: Sakshi Gupta Updated: Sat, 23 Nov 2024 06:25 PM (IST)
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मीरापुर में बीजेपी और रालोद के गठबंधन ने जीत हासिल की। (तस्वीर जागरण)
आनंद प्रकाश, मुजफ्फरनगर। जैसा अनुमान था, उपचुनाव का परिणाम वैसा ही रहा। जनता जनार्दन ने एनडीए की प्रत्याशी मिथलेश पाल को जिताकर साबित कर दिया है कि केंद्र और प्रदेश सरकार की नीतियों से वह प्रभावित है। मोदी-योगी का जलवा कायम है। इस जीत में कई अहम फैक्टर भी हैं, जो प्रत्याशी के चयन से लेकर बेहतर समन्वय और बूथ प्रबंधन से तय हुए। लगभग सवा लाख मुस्लिम मतदाता होने के बावजूद सपा अंधेरे में रही और बिखराव को महसूस नहीं कर सकी, जिससे एनडीए प्रत्याशी को बहुत लाभ मिला।

दरअसल, मीरापुर सीट के उपचुनाव में जीत के लिए भाजपा और रालोद ने शुरुआत से ही सटीक रणनीति अपनाई, जो प्रत्याशी के चयन से ही साफ हो गई। रालोद ने सपा और बसपा के प्रत्याशी का इंतजार किया। जैसे ही सपा ने पूर्व सांसद कादिर राना की पुत्रवधू सुम्बुल राना को प्रत्याशी बनाया, तो रालोद ने अति पिछड़ा वर्ग को साधने के लिए पूर्व विधायक मिथलेश पाल को मैदान में उतार दिया, क्योंकि पाल समाज के वोटरों की संख्या लगभग 20 हजार से अधिक है।

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मिथलेश पाल के प्रत्याशी बनने पर रालोद के नेताओं के मन में पीड़ा तो हुई, क्योंकि वह भाजपा में थीं, लेकिन रालोद अध्यक्ष जयन्त चौधरी की सूझबूझ ने तमाम नाराजगी दूर कर दी और मिथलेश पाल को पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह का प्रत्याशी बताकर भावनात्मक कनेक्शन प्रगाढ़ कर दिया। फिर भाजपा और रालोद नेताओं ने आपसी समन्वय बनाया और कैबिनेट मंत्री से लेकर राज्यमंत्री, सांसद व विधायकों को अलग अलग जिम्मेदारी सौंप बेहतर बूथ प्रबंधन किया।

मुस्लिम मतों के बिखराव को सपा नेता भांप नहीं पाए

वहीं, विपक्षी प्रत्याशियों में सपा के अलावा बसपा से शाहनजर, आसपा (कांशीराम) से जाहिद हुसैन और एआइएमआइएम से अरशद राना प्रत्याशी बनाए गए थे। शुरुआत से ही माना जा रहा था कि चार मुस्लिम प्रत्याशियों में मुस्लिम मतों को बिखराव ठीक-ठाक होगा और चुनाव परिणाम इसकी गवाही भी दे रहे हैं। आसपा प्रत्याशी को 22 हजार से ज्यादा वोट मिलने और बसपा प्रत्याशी को महज 3248 वोट मिलने से स्पष्ट हो गया कि बसपा का परंपरागत वोटर उससे खिसक चुका है। वहीं, मुस्लिम मतों में बिखराव को सपा नेता भांप नहीं पाए, जिस कारण सपा प्रत्याशी को 30 हजार से अधिक वोटों से हार का सामना करना पड़ा। एआइएमआइएम के प्रत्याशी अरशद राना को 18,869 वोट मिलना यह भी बयां कर रहा है कि आगामी चुनाव में सपा के लिए और मुश्किल पैदा होने वाली है।

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