अस्पताल में मौलिक अधिकार का हनन
By Edited By: Updated: Mon, 14 Apr 2014 09:09 PM (IST)
--डॉक्टर-पुलिस विवाद--
-सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार घायल को तत्काल इलाज देना है सुनील मौर्य, नोएडा मारपीट में घायल व्यक्ति को समय पर इलाज मुहैया नहीं करा मौलिक अधिकार का भी हनन किया गया है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 1989 में परमानंद कटारा बनाम भारत संघ मामले में निर्णय दिया था कि घायल व्यक्ति को बिना किसी औपचारिकता के तत्काल इलाज मुहैया कराई जाए। यह संविधान के अनुच्छेद-21 के अंतर्गत जीवन के अधिकार के तहत मौलिक अधिकार भी है।
इस तरह दनकौर के घायल भूरे के मामले में भी पुलिस की कागजी औपचारिकता और डॉक्टर विवाद के चलते दो घंटे से ज्यादा देर हुई। ऐसे में भूरे के सिर पर गहरी चोट लगे होने की वजह से जानलेवा भी हो सकता था। इस तरह सवाल उठता है कि आखिर जिला अस्पताल में तैनात डॉक्टर ने पुलिस की औपचारिकता को नजरअंदाज कर इलाज क्यों नहीं शुरू किया? ----------
सुप्रीम कोर्ट का यह था निर्णय परमानंद कटारा बनाम भारत संघ केस में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया था कि सभी डॉक्टर चाहे वह सरकारी हो या गैर सरकारी, यह वृत्तिक दायित्व है कि वे घायल व्यक्ति की जान बचाने के लिए उसे तुरंत चिकित्सा सहायता प्रदान करे और दंड प्रक्रिया संहिता के अधीन पुलिस द्वारा पूरी की जाने वाली कानूनी औपचारिकता की प्रतिक्षा न करें। यह भी कहा था कि घायल व्यक्ति को समय पर उपचार नहीं देना उसके संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकार अनुच्छेद-21 के तहत जीने के अधिकार का अतिक्रमण है। --------- सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट में दायर कर सकते हैं याचिका मौलिक अधिकार का हनन करने के मामले में कोई भी व्यक्ति हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाल सकता है। वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल यादव बताते हैं कि अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट और अनुच्छेद-226 के तहत हाईकोर्ट में याचिका दे सकते हैं। अगर ऐसा किया जाता है तब हाईकोर्ट की तरफ से मुआवजा देने का भी आदेश किया जा सकता है।
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