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Election 24: लंबे समय तक खुर्जा सीट पर रहा कांग्रेस का दबदबा, कन्हैया लाल ने लगाई थी जीत की हैट्रिक

आजादी के बाद लंबे समय तक खुर्जा सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा है। आजादी के बाद 1951 में हुए पहले आम चुनाव में प्रदेश में 17 सीट ऐसी थी जिन पर दो-दो व्यक्ति सांसद चुने गए। इनमें एक सामान्य वर्ग से और दूसरा अनुसूचित जाति से होता था। बुलंदशहर ड्रिस्टिक के नाम से इस सीट पर पहले चुनाव में कन्हैया लाल व रघुवर दयाल मिश्रा सांसद चुने गए थे।

By Dharmendra Kumar Edited By: Abhishek Tiwari Updated: Wed, 27 Mar 2024 08:31 AM (IST)
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Election 24: लंबे समय तक खुर्जा सीट पर रहा कांग्रेस का दबदबा
धर्मेंद्र चंदेल, नोएडा। गौतमबुद्ध नगर लोकसभा सीट 2009 में नए परिसीमन से पहले खुर्जा के नाम से जानी जाती थी। आजादी के बाद जिस कांग्रेस का खुर्जा लोस सीट पर लंबे समय तक दबदबा रहा, अब उसका यहां वजूद समाप्त होने के कगार पर है। इस बार तो कांग्रेस ने यहां से अपना प्रत्याशी मैदान में उतारने के बजाय सपा के खाते में सीट दे दी।

1984 के बाद विजय हासिल करना तो दूर कांग्रेस प्रत्याशी मुख्य लड़ाई में भी नहीं रह सके। 2014 व 2019 के लोकसभा चुनाव में तो कांग्रेस के प्रत्याशी मतदान से पहले मैदान छोड़ पार्टी के दामन पर बदनुमा दाग लगवा चुके हैं। आजादी के बाद 1951 में हुए पहले आम चुनाव में प्रदेश में 17 सीटों पर पर दो-दो व्यक्ति सांसद चुने गए। एक सामान्य वर्ग से व दूसरा अनुसूचित जाति से होता था।

पहले आम चुनाव में पांच उम्मीदवार थे मैदान में

बुलंदशहर ड्रिस्टिक के नाम से इस सीट पर पहले चुनाव में कन्हैया लाल व रघुवर दयाल मिश्रा सांसद चुने गए थे। रघुवर दयाल ने बुलंदशहर का प्रतिनिधितत्व किया, जबकि कन्हैया लाल ने खुर्जा का।

पहले आम चुनाव में इस सीट से पांच उम्मीदवार मैदान में थे। तब 6,96063 मतदाताओं ने मतदान किया था। कन्हैया लाल सर्वाधिक 223717 मत व रघुवर दयाल मिश्रा 181068 वोट लेकर सांसद बने। 1957 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर कन्हैया लाल व रघुवर दयाल पर दाव लगाया।

आठ प्रत्याशी मैदान में उतरे। बाजी कन्हैया लाल व रघुवर दयाल मिश्रा के हाथ लगी। 1962 के लोस चुनाव में बहु व्यवस्था समाप्त हुई। खुर्जा के नाम से अलग लोस सीट बनी। कांग्रेस के कन्हैया लाल ने प्रजा सोशलिस्ट के प्रत्याशी को हरा जीत की हैट्रिक लगाई। 1967 के चुनाव में कांग्रेस की पहली बार इस सीट से हार हुई। कन्हैया लाल को प्रजा सोशलिस्ट के रामचरण ने हराया। 1971 के लोस चुनाव में कांग्रेस ने हरिसिंह को मैदान में उतारा।

1980 के चुनाव में जनता पार्टी के त्रिलोक चंद बने सांसद

उन्होंने भारतीय क्रांति दल के रामचरण को हराकर सीट कांग्रेस के खाते में डाल दी। 1977 के चुनाव में भारतीय लोकदल के मोहन लाल करीब सवा दो लाख वोटों से जीत कर सांसद बने। 1980 के चुनाव में जनता पार्टी के त्रिलोक चंद सांसद बने। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति की लहर में वीरसैन इस सीट से अंतिम बार कांग्रेस के सांसद चुने गए। इसके बाद कांग्रेस प्रत्याशी इस सीट से कभी नहीं जीत सके।

कांग्रेस ने 2014 में गाजियाबाद से भाजपा के टिकट पर चार बार सांसद रहे रमेश चंद तोमर को मैदान में उतारा। वह मतदान से तीन पहले भाजपा में शामिल हो गए। कांग्रेसियों ने प्रत्याशी के मैदान छोड़ भाग जाने के बावजूद उन्हें वोट दिया। तब उन्हें 12727 वोट मिले।

2019 के चुनाव में कांग्रेस ने अरविंद सिंह को मैदान में उतारा। उनके पिता पूर्व मंत्री ठाकुर जयवीर सिंह भाजपा में थे। अरविंद सिंह पर भी मतदान से चार दिन पहले मैदान से गायब होने के आरोप लगे। अरविंद सिंह को भी मात्र 42077 हजार वोट मिले।

कब किसने मारा मैदान

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