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उपन्यासों में देश की गरीबी व उत्पीड़न की झलक ही क्यों? पढ़ें क्या बोले- प्रसिद्ध कथाकार सच्चिदानंद जोशी

प्रसिद्ध कथाकार सच्चिदानंद जोशी ने जागरण संवादी कार्यक्रम में हिंदी उपन्यासों में भारत के चित्रण पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि वर्तमान में उपन्यासों में भारत का जो रूप दिख रहा है उसमें सिर्फ गरीबी और उत्पीड़न ही क्यों है? क्या कुछ भी सकारात्मक नहीं है? इस चर्चा में उपन्यासकार प्रो. उर्मिला शिरीष और साहित्य अकादमी की उपाध्यक्ष प्रो. कुमुद शर्मा ने भी अपने विचार रखे।

By Jagran News Edited By: Kapil Kumar Updated: Fri, 13 Sep 2024 03:36 PM (IST)
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हिंदी उपन्यासों में भारत’ विषय पर हुए सत्र में कथाकार सच्चिदानंद जोशी बोले। जागरण फोटो

संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। Jagran Samvadi प्रसिद्ध कथाकार सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि जब हम उपन्यासों में भारत की बात करते हैं तो पाते हैं कि भारत भौगोलिक सीमाओं में बंधा कोई देश मात्र नहीं, बल्कि एक संस्कृति और सभ्यता है, जो इंडोनेशिया सहित कई अन्य देशों में भी देखने को मिलती है। भारतीय उपन्यासों में देश की संस्कृति की झलक देखने को मिलती है।

सच्चिदानंद जोशी ने रखे अपने विचार

विचारणीय पहलू यह है कि वर्तमान में हम उपन्यासों में भारत का कौन सा रूप प्रस्तुत कर रहे हैं। क्या यहां सिर्फ गरीबी या उत्पीड़न ही है, कुछ भी सकारात्मक नहीं है? सच्चिदानंद जोशी बृहस्पतिवार को जागरण संवादी कार्यक्रम के पहले दिन ‘हिंदी उपन्यासों में भारत’ विषयक सत्र में अपनी बात रख रहे थे।

इस सत्र में उपन्यासकार प्रो. उर्मिला शिरीष और साहित्य अकादमी की उपाध्यक्ष प्रो. कुमुद शर्मा ने भी अपने विचार रखे। लेखक प्रो. वेदप्रकाश ने साहित्य के क्षेत्र की इन तीनों हस्तियों से संवाद किया। चर्चा के दौरान प्रो. कुमुद शर्मा ने भी वर्तमान में लिखे जा रहे उपन्यासों के कथानक को लेकर प्रो. जोशी की चिंता से सहमति जताई।

उन्होंने कहा कि साहित्य सृजन में रागात्मकता और साझेदारी होनी चाहिए। करुणा, प्रेम और मानवीयता का चित्रण भी होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारतेन्दु युग में हमारी राष्ट्रीय चेतना एक नया आयाम लेती है। स्वराज की चेतना का असर भी हर जगह दिखाई देता है। प्रो. कुमुद ने यह भी कहा कि आज हम साहित्य में बंट रहे हैं, जबकि साहित्य अखंड होता है।

इस मौके पर उन्होंने लेखक शिवपूजन सहाय के उपन्यास का भी उल्लेख किया। प्रो. उर्मिला शिरीष ने आंचलिक उपन्यासों का जिक्र करते हुए कहा कि भारत की ज्यादातर जनसंख्या गांवों में बसती है, इसलिए आंचलिक उपन्यासों में भी भारतीय संस्कृति का प्रतिबिंब देखने को मिलता है। यह बात अलग है कि पहले लिखे गए उपन्यासों में हर संवाद के दौरान बिंब और चित्रण भी देखने को मिलता था। आज के दौर के लेखक एयर कंडीशनर कमरे में बैठकर भावों को बिना महसूस किए लिखते हैं तो पाठक उनसे एकाकार नहीं हो पाता है।

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जागरण संवादी में चर्चा के दौरान प्रो. कुमुद ने नारी की स्वतंत्रता को लेकर पाश्चात्य देशों में उत्पन्न हुई विकट स्थिति, लेखकीय दायित्व एवं पाठकों के विवेक पर भी अपने विचार रखे। प्रो. वेदप्रकाश ने अतीत और वर्तमान में लिखे गए विभिन्न उपन्यासों की बात करते हुए कुछ विरोधाभासों-विसंगतियों पर ध्यान आकृष्ट कराया।

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