UP Film City: बॉलीवुड के लिए लाभ का जरिया न बनकर रह जाए उत्तर प्रदेश की फिल्म सिटी
फिल्म सिटी बसने का सपना एक बार पहले भी नोएडा देख चुका है। शहर भुक्तभोगी है। पहले भी यहां कथित फिल्म सिटी बसी जहां कभी शूटिंग तक नहीं हुई। जमीन की बंदरबाट हुई सितारों ने जमीन बेचकर मुनाफा कमाया और निकल गए। कहीं इस बार भी ऐसा तो नहीं हो।
By Prateek KumarEdited By: Updated: Wed, 23 Sep 2020 10:36 PM (IST)
नोएडा, मनोज त्यागी। गौतमबुद्ध नगर एक बार फिर से फिल्म सिटी के ख्वाब संजोने लगा है। प्रदेश सरकार ने एक हजार एकड़ जमीन पर फिल्मी दुनिया की चकाचौंध के लिए प्लाटिंग कर दी है। सब कुछ अच्छा है, लेकिन ये शहर भुक्तभोगी है। पहले भी यहां कथित फिल्म सिटी बसी, जहां कभी शूटिंग तक नहीं हुई। जमीन की बंदरबाट हुई, सितारों ने जमीन बेचकर मुनाफा कमाया और निकल गए। कहीं इस बार भी ऐसा तो नहीं हो जाएगा कि बॉलीवुड के सितारे आएंगे औने-पौने दामों पर जमीन का लाभ लेंगे और निकल जाएंगे?
कई बड़े सितारों ने ली थी जमीनवर्ष 1986 में, सेक्टर-16ए में फिल्म सिटी का निर्माण किया गया। जहां 39 प्लाट बनाए गए इसमें से 23 प्लाट संस्थागत और 16 प्लाट औद्योगिक थे। 1988 में फिल्म उद्योग जगत से जुड़े लोगों को प्लाट अलाट कर दिए गए। इसमें बड़े दिग्गज शामिल थे। पद्मिनी कोल्हापुरी, डैनी, टूटू शर्मा, आदित्य चोपड़ा, अनिल कपूर, संदीप मारवाह, सुभाष चंद्रा, गुलशन कुमार, पूर्ण चंद्र राव, बोनी कपूर-श्रीदेवी, पूनम ढिल्लो तमाम सितारों ने मात्र 200 रुपये प्रति वर्ग मीटर पर जमीन ली थी। कोई भी प्लाट दो हजार वर्ग मीटर से कम का नहीं था। आज इस जमीन की कीमत 35 हजार रुपये वर्ग मीटर है। अब इस कथित फिल्म सिटी में टीवी चैनल, यूट्यूब चैनल, न्यूज वेबसाइट, इंस्टीट्यूट के दफ्तर बने हुए हैं। और तो और यह खेल सिर्फ प्लाट के मुनाफे तक ही नहीं है। वर्ष 2014 में तत्कालीन सरकार ने फिल्म उद्योग को प्रदेश के प्रति आकर्षित करने को सब्सिडी तक बांटी। इसमें एक फिल्म की शूटिंग के लिए दो करोड़ रुपये तक का लाभ दिया गया।
21 फिल्मों को मिला था अनुदानवर्ष 2014 में 21 फिल्मों को यह अनुदान प्राप्त भी हुआ, लेकिन उन फिल्मों की शूटिंग नोएडा को छोड़ प्रदेश के अन्य शहरों में हुई। बहरहाल अब तक बीते अनुभव तो यही कहते हैं कि तमाम मदद के बाद भी फिल्म जगत ने उत्तर प्रदेश पर कभी भरोसा नहीं जताया है। इस बार तो फिल्म सिटी का निर्माण करने के लिए जगह भी जेवर एयरपोर्ट के आसपास तय की गई है। जाहिर है कि आसपास जमीन की कीमतें भी बहुत आसमान छूती होंगी, जबकि फिल्म इंडस्ट्री को बसाने के लिए सस्ते दामों पर जमीन दी जाएगी। इससे किसे लाभ मिलेगा यह भविष्य की गर्त में होगा। बड़ा सवाल यही है कि क्या फिल्म उद्योग उत्तर प्रदेश पर भरोसा जताएगा या फिर पहले की तरह से मौके का फायदा उठाकर फुर्र हो जाएगा।
तकनीकी रूप से आ सकती हैं दिक्कतेंएक पहलू यह भी है कि फिल्म निर्माण के लिए इस शहर को तकनीकी रूप से भी मुफीद नहीं माना जाता है। टेक्निकल डायरेक्टर निर्देश कुमार का कहना है कि फिल्म निर्माण के लिए जिस प्राकृतिक रोशनी और नमी की जरूरत होती है वह मुंबई में ज्यादा बेहतर है। उसका कारण भी स्पष्ट है। जब रात में शूटिंग करनी होती है तो उसके लिए बड़ी-बड़ी लाइटें लगाई जाती हैं। रात के समय दिन का नजारा तैयार करना पड़ता है। यदि कैमरे के सामने कोई छोटा सा भी कीड़ा आ जाता है, तो समस्या बन जाती है। यहां का वातावरण भी शूटिंग के अनुकूल नहीं है। हालांकि इस बारे में अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।
लैंडयूज में न बदलने का कर दिया जाए नियमजागरण सुझाव: सरकार को चाहिए कि वह प्राधिकरण को निर्देशित करे, जो भी जमीन फिल्म सिटी के लिए दी जाए, उस जमीन का लैंडयूज न बदलने पाएं और फिल्म निर्माण के अतिरिक्त उस पर कोई कार्य न हो सके। जिसको भूमि का आवंटन हो वह केवल पचास फीसद जमीन ही बेच सके बाकी जमीन पर उसी का मालिकाना हक रहना चाहिए। ऐसे क्लोज से जमीन के दुरुपयोग की गुंजाइश कम रहेगी।Coronavirus: निश्चिंत रहें पूरी तरह सुरक्षित है आपका अखबार, पढ़ें- विशेषज्ञों की राय व देखें- वीडियो
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