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Nithari Kand: सरकार के दबाव में अधिकारियों ने नहीं किया निठारी कांड का पर्दाफाश, एक साल राजनीति के चक्रव्यूह में फंसा रहा मामला

निठारी कांड को लेकर सूत्र बताते हैं कि 2005 से 2006 के बीच जब बच्चे गायब हो रहे थे तब कुछ पुलिसकर्मी घटना के पर्दाफाश के करीब पहुंच गए लेकिन तत्कालीन सरकार के दबाव में अधिकारियों ने मामला पर्दाफाश नहीं होने दिया था। सरकार के करीब रहे एक स्थानीय नेता ने भी इसमें भूमिका निभाई। उस समय जिले में तैनात अधिकारी इस मामले को लेकर दो फाड़ हो गए थे।

By Dharmendra KumarEdited By: Shyamji TiwariUpdated: Tue, 17 Oct 2023 10:11 PM (IST)
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राजनीति के चक्रव्यूह में एक साल फंसा रहा निठारी कांड

धर्मेंद्र चंदेल, नोएडा। नोएडा का निठारी कांड एक बार फिर चर्चाओं में हैं। 19 बच्चों की हत्याएं हुई। मुख्य आरोपित मोनिंदर सिंह पंधेर व सुरेंद्र काेली को अदालत से बरी कर दिया है। अब सवाल उठाता है कि आखिर बच्चों का हत्यारा कौन है।

घटना के पर्दाफाश तके करीब पहुंच गए थे पुलिसकर्मी

इस मामले में तत्कालीन पुलिस अधिकारी और उनके अधिनस्थों पर भी लापरवाही के आरोप लगे हैं। यह आरोप यूं ही नहीं लगे हैं। इसके पीछे सच्चाई भी है। सूत्र बताते हैं कि 2005 से 2006 के बीच जब बच्चे गायब हो रहे थे, तब कुछ पुलिसकर्मी घटना के पर्दाफाश के करीब पहुंच गए थे, लेकिन तत्कालीन सरकार के दबाव में अधिकारियों ने मामला पर्दाफाश नहीं होने दिया था।

सरकार के करीब रहे एक स्थानीय नेता ने भी इसमें भूमिका निभाई। सूत्र यह भी बताते हैं कि उस समय जिले में तैनात अधिकारी इस मामले को लेकर दो फाड़ हो गए थे। बच्चों के प्रति संवेदना रखने वाले पुलिसकर्मियाें का एक गुट मामले का पर्दाफाश चाहता था, जबकि दूसरा गुट सरकार की छवि धूमिल न हो, इसके लिए प्रकरण को दबाए रहा।

बच्चे गरीबों के थे। उनके पास किसी की सिफारिश नहीं थी। सरकार तक पहुंच नहीं थी। यहीं कारण है कि मानवीय संवदेनाएं इस हद तक तार-तार हो गई थी कि एक के बाद एक 19 बच्चे लापता होते रहे। जांच के लिए पुलिस की कई टीमें लगाई गई। एसओजी और तकनीकी रूप से मजबूत पुलिस टीम को बच्चों के गायब होने की सच्चाई सामने लाने की जिम्मेदारी सौंपी गई।

साक्ष्य के बावजूद नहीं दर्ज हुआ मामला

साक्ष्य भी मिले, लेकिन थाने में मामला दर्ज नहीं किया। एक वर्ष तक यह मामला राजनीति के चक्रव्यूह में फंसा रहा। पहला मामला अदालत के आदेश पर 156 तीन के तहत दर्ज हुआ। उत्तराखंड के नंदलाल नौकरी की तलाश में नोएडा आए थे। उनकी बेटी गायब हुई थी।

पुलिस ने मामला दर्ज नहीं किया था तो नंदलाल कोर्ट गए। कोर्ट के आदेश पर पहला मामला आठ मई 2006 को सेक्टर 20 थाने में दर्ज हुआ। मामले को दबाए रखने के लिए अधिकारियों पर इतना अधिक राजनीतिक दबाव था कि तत्कालीन एसएसपी के पास पूरे मामले के पर्दाफाश की योजना लेकर गए एक पुलिसकर्मी को डांट झेलनी पड़ी थी।

एसएसपी ने पुलिस कर्मी से यहां तक कह दिया था कि तुम मुझे सिखाओंगे कैसे मामले खोले जाते हैं। हैरानी की बात यह है कि डी-5 कोठी के आसपास जहां 19 बच्चों की हत्या हुई,वहां 100 मीटर के दायरे में बच्चों के कंकाल मिल रहे थे। इसके बावजूद पुलिस नहीं चेती। पहले 16 बच्चे गायब हुए थे। इसके बावजूद पुलिस ने एक भी मामला थाने में दर्ज नहीं किया।

यदि पुलिस समय रहते कार्रवाई करती तो कुछ बच्चों की जान बचाई जा सकती थी। जिनकी हत्या हो चुकी थी उनके कंकाल के बजाय शव मिलते। शव मिलने से पुलिस को अपराधियों तक पहुंचने और पर्दाफाश में आसानी होती। शव के पाेस्टमार्ट से बच्चों के अंग निकाले जाने अथवा दुष्कर्म आदि की सच्चाई सामने आती।

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यह भी पता चलता कि मानव अंग व्यापार के लिए तो बच्चों की हत्या नहीं हुई। हत्या के पीछे उद्देश्य का भी पता चलता, लेकिन कंकाल की वजह से सच्चाई सामने नहीं आ सकी। जब बच्चे गायब हो रहे थे, तब एक पुलिस कर्मी ने संदेह के आधार पर मोनिंदर सिंह पंधेर को हिरासत में भी लिया था, लेकिन आला अफसरों ने उसे रात में ही थाने से छुड़वा दिया था।

पुलिस के हटते ही गायब हुए बच्चे

सूत्र बताते हैं कि पुलिस को शक हो गया था कि बच्चे गायब हाेने में डी-5 कोठी और उसमें रहने वाले लोगों का कोई न कोई संबंध है, इसलिए 16 बच्चे गायब होने के बाद वहां 33 दिन तक पुलिस तैनात की गई। इस दौरान एक भी बच्चा इन 33 दिनों में गायब नहीं हुआ। आश्चर्य की बात यह है कि पुलिस के वहां से हटते ही दो लड़की गायब हो गई। इसके बावजूद पुलिस ने पंधरे और सुरेंद्र कोली पर कोई कार्रवाई नहीं की। जब 19 वां बच्चा गायब हुआ तो पुलिस को कोर्ट के आदेश पर मामला दर्ज करने की मजबूरी बनी।

आरूषि केस की तरह अनसुलझा न रह जाए यह मामला

नोएडा में आरूषि हत्याकांड पुलिस और सीबीआई जांच के बाद भी नहीं खुल सका। अब लोगों के दिमाग में यहीं सवाल उठ रहा है कि मोनिंदर सिंह पंधेर व सुरेंद्र कोली के बरी होने से कहीं यह केस भी अब अनसुलझा न रह जाए।

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