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नोएडा में 2 महीने के बच्चे में इस दुर्लभ बीमारी की हुई पहचान, देश में यह पहला केस

पीजीआइसीएच के डॉक्टरों ने गैस्ट्रोएंटरोलाजी विभाग की मदद से बच्चे का इलाज शुरू किया है। बच्चे को हर 15 दिन पर बुलाया जाएगा।इस बीमारी के इलाज के लिए लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है लेकिन इस मामले में अभी लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत नहीं है। बच्चे को होने वाली वर्तमान परेशानी को देखते हुए उसका इलाज किया जा रहा है।

By MOHD Bilal Edited By: Abhishek Tiwari Published: Sun, 30 Jun 2024 10:11 AM (IST)Updated: Sun, 30 Jun 2024 10:11 AM (IST)
दुर्लभ बीमारी से पीड़ित बच्चा। (फोटो साभार- अस्पताल)

जागरण संवाददाता, नोएडा। सेक्टर-30 पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ (पीजीआइसीएच) के डॉक्टरों ने दो माह के बच्चे में नवजात इचिथोसिस-स्क्लेरोसिंग कोलेंजाइटिस (एनआइएससीएच) सिंड्रोम नामक दुर्लभ बीमारी की पहचान कर इलाज शुरू किया है। वक्त पर बीमारी की पहचान से इलाज आसान होगा।

10 लाख में एक बच्चा मिलता है बीमारी से पीड़ित

मेडिकल जेनेटिक्स विभाग के डॉ. मयंक निलय का कहना है कि मुजफ्फरनगर के एक डॉक्टर ने जांच में संदेह होने पर बच्चे के परिवार को चाइल्ड पीजीआइ जाने की सलाह दी थी। बच्चे की जेनेटिक्स जांच कराई है। जांच पर पता चला कि बच्चे को नवजात इचिथोसिस-स्क्लेरोसिंग कोलेंजाइटिस (एनआइएससीएच) सिंड्रोम नामक दुर्लभ बीमारी है।

10 लाख में एक बच्चा बीमारी से पीड़ित मिलता है। अबतक ज्यादातर केस उत्तरी अफीका के मोरक्को में मिले हैं। भारत में अबतक इस बीमारी का एक भी केस रिकॉर्ड नहीं किया गया है। भारत में यह पहला केस है जो रिकॉर्ड किया गया है।

क्या है यह बीमारी?

नवजात इचिथोसिस-स्क्लेरोसिंग कोलेंजाइटिस एक दुर्लभ आनुवंशिक विकार है। जिसमें त्वचा और यकृत दोनों प्रभावित होते हैं। जहां इचिथोसिस एक त्वचा की स्थिति है जिसमें त्वचा सूखी, मोटी और परतदार हो जाती है। वहीं स्क्लेरोसिंग कोलेंजाइटिस यह यकृत की एक बीमारी है जिसमें यकृत की बाइल नलिकाएं सूजनग्रस्त और स्कारड हो जाती हैं। जिससे यकृत के कार्यों में रुकावट होती है।

इस स्थिति का सही निदान और उपचार जटिल होता है और आमतौर पर विशेष चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता होती है। इसके प्रमुख कारणों में सीएलडीएन 1 जीन है। सीएलडीएन 1 जीन विशेष रूप से त्वचा और यकृत की कार्यप्रणाली में महत्वपूर्ण होता है।

इस जीन में म्यूटेशन (उत्परिवर्तन) नवजात इचिथोसिस-स्क्लेरोसिंग कोलेंजाइटिस जैसी स्थितियों से संबंधित हो सकता है, जो त्वचा की परत और यकृत की बाइल नलिकाओं में समस्याएं उत्पन्न करता है। सीएलडीएन 1 जीन की म्यूटेशन से त्वचा और यकृत दोनों में समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, जिनमें त्वचा की सूखापन, मोटापन, और यकृत की सूजन शामिल हैं।

चाइल्ड पीजीआइ में होता है दुर्लभ बीमारियों का इलाज

चाइल्ड पीजीआइ में अभी डाउन सिंड्रोम, मायोपैथी, डिस्ट्रोफी, एसएमए हीमोफीलिया, थैलेसीमिया, मस्क्यूलर डिस्ट्रोफी, सीकल सेल एनीमिया, फिनाइलकिटोन्यूरि, सिस्टिक फायब्रोसिस, न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट, सेरेब्रल पाल्सी, कंकाल डिसप्लेसिया, बौद्धिक और सीखने की अक्षमता, आटिज्म स्पेक्ट्रम विकार, विकास विकार, जन्मजात विकृतियां, वयस्क शुरुआत आनुवंशिक विकार, न्यूरोमस्कुलर विकार, न्यूरोजेनेटिक विकार (मोनोजेनिक मिर्गी और न्यूरोमेटाबोलिक, फीटल आटोप्सी, प्रसव पूर्व निदान के लिए एमनियोसेंटेसिस/कोरियोनिक विलस सैंपलिंग, प्रसव पूर्व और पेरी-कान्सेप्शनल काउंसलिंग (रेकर्रेंट सहज गर्भपात/ खराब प्रसूति इतिहास) के निदान और प्रबंधन विभिन्न आनुवंशिक विकार की पहचान कर इलाज किया जाता है।

मार्च 2024 से अबतक ओपीडी में 734 बच्चों को परामर्श दिया जा चुका है। 35 बच्चों को भर्ती कर इलाज किया गया है। चाइल्ड पीजीआइ की मेडिकल जेनेटिक्स विभाग में इलाज के लिए दिल्ली,एनसीआर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पूर्वांचल के जिलों के अलावा बिहार, एमपी, छत्तीसगढ़, ओडिसा, झारखंड, बंगाल, हरियाणा, राजस्थान से मरीज पहुंच रहे हैं। डॉ. रानी मनीषा और डॉ. वरुण वेंकटराघवन की टीम द्वारा मरीजों को परामर्श के साथ इलाज किया जाता है।


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