India water Week: इंडिया वाटर वीक में शामिल हुए डा. संजय सिंह, बोले- तालाब और कुंड में समझना होगा अंतर
संजय सिंह ने कहा कि तालाब भूगर्भ जल को संचित करने के साथ लोगों की जरूरतों को पूरा करने का कार्य करता है जबकि कुंड से भूगर्भ जल को कोई लाभ नहीं मिलता है। तालाब के निर्माण में अधिक से अधिक मिट्टी के काम को वरीयता देनी चाहिए।
By Jagran NewsEdited By: Shivam YadavUpdated: Sun, 06 Nov 2022 12:09 AM (IST)
ग्रेटर नोएडा [लोकेश चौहान]। अमृत सरोवर के तहत तालाबों का निर्माण तो हो रहा है, पर जिस स्वरूप में इसे करने की जरूरत है, वह नहीं हो पा रहा। ज्यादातर जगह लोगों ने तालाब बनाने के नाम पर मिट्टी खोद दी है। उसके आसपास कुर्सी लगाकर बैठने की व्यवस्थाएं की है। तालाब एक जीवित इकाई है। तालाब ता और लाब से बना है। जो स्वत: वर्षाजल से लबालब हो सके। तालाब एक गांव की विविधता का केंद्र हैं। ऐसी जगह तालाब का निर्माण हो, जहां पानी स्वत: एकत्र हो जाए। तालाब के निर्माण में पक्का काम करने की आवश्यकता नहीं है। ये बातें बुंदेलखंड में करीब 150 तालाब और चार छोटी नदियों को प्राकृतिक तरीके से पुनर्जीवित करने वाले परमार्थ संस्था के संस्थापक और जल विशेषज्ञ डा. संजय सिंह ने विशेष बातचीत में कही।
जहां तालाबों को पक्का किया वहां कुंड में बदले
वह ग्रेटर नोएडा में आयोजित इंडिया वाटर वीक में शामिल हुए थे। उन्होंने कहा कि तालाब को हमेशा जितना हो सके संजीव रहने दें। उसके प्राकृतिक तौर पर निर्मित रहने दें। जब-जब और जहां-जहां तालाबों को पक्का करने का कार्य किया गया है, वहां तालाब कुंड में बदल गए हैं।
पहले गांवों के चारों तरफ तालाब होते थे
उन्होंने कहा कि तालाब भूगर्भ जल को संचित करने के साथ लोगों की जरूरतों को पूरा करने का कार्य करता है, जबकि कुंड से भूगर्भ जल को कोई लाभ नहीं मिलता है। जरूरी है कि तालाब के निर्माण में अधिक से अधिक मिट्टी के काम को वरीयता देनी चाहिए।तालाब में वर्षा जल का ठहराव हो सके, इसके लिए आसपास ऐसे पेड़ लगाए जाएं, जो गर्मी में गांव के तापमान को बढ़ने से रोकने के साथ तालाब के वाष्पोत्सर्जन को रोक सकें। पहले गांवों के चारों तरफ तालाब होते थे। गांव ऊपर और तालाब नीचे की तरफ होते थे। यह पूर्व में विज्ञान का हिस्सा रहा है। अब हम इस विज्ञान को भूलकर सिर्फ जहां जगह मिल रही है। उन्होंने कहा कि एक सर्वे के मुताबिक भारत के 63 प्रतिशत तालाब वर्षा जल से नहीं भर रहे हैं। यह सारे बड़े तालाब हैं। शहरों में तालाब गंदे पानी, अतिक्रमण से अपना अस्तित्व खो चुके हैं। जो थोड़ा-बहुत बचे हैं, वहां धनराशि खर्च कर उन्हें पक्का किया जा रहा है। कभी भी तालाब को कंक्रीट का बनाकर उसके अस्तित्व को नहीं बचा सकते हैं।
वहां प्राकृतिक तरीके से पानी आने की व्यवस्था को बेहतर करना होगा। गांव व शहर स्तर पर पानी पंचायत जैसे संगठन की भूमिका को बढ़ाने के साथ नियमावली बनाने की जरूरत है। इसके लिए स्थानीय स्तर पर कमेटी भी बनाए गए। योजनाएं और बजट से महत्वपूर्ण तालाबों के साथ लोगों का जुड़ाव और सहभागिता है।
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