पश्चिमी UP में BJP को मिल सकती कड़ी चुनौती, I.N.D.I.A की बैठक में जयंत के शामिल होने से राजनीति में आई गर्माहट
मुंबई में हुई आईएनडीआईए की बैठक में रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी के शामिल होने से पश्चिमी उप्र की राजनीति में गर्माहट आ गई है। भाजपा को अब अपनी रणनीति बदलने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। गठबंधन में जयंत के करीबी माने जाने वाले चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी को भी एक-दो सीट देकर शामिल करने की रणनीति बनाई गई है।
नोएडा, जागरण संवाददाता। आईएनडीआईए गठबंधन की मुंबई में हुई बैठक में रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी के शामिल होने से पश्चिमी उप्र की राजनीति में गर्माहट आ गई है। पूर्व की दो बैठकों में जयंत ने दूरी बनाई थी। राज्यसभा में दिल्ली सेवा बिल पर वोटिंग के दौरान भी वह गैर हाजिर रहे। इससे भाजपा के रणनीतिकार यह मानकर चल रहे थे कि देर-सबेर लोकसभा चुनाव के लिए रालोद के साथ गठबंधन हो जाएगा।
पश्चिमी यूपी में बहुल हैं जाट और गुर्जर
भाजपा को अब अपनी रणनीति बदलने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। गठबंधन में जयंत के करीबी माने जाने वाले चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी को भी एक-दो सीट देकर शामिल करने की रणनीति बनाई गई है। वहीं भाजपा को लोकसभा चुनाव में पश्चिमी उप्र में कड़ी चुनौती मिल सकती है। पश्चिमी उप्र को जाट और गुर्जर बहुल माना जाता है। प्रदेश की आबादी में 1.8 प्रतिशत जाट और 1.78 प्रतिशत गुर्जर हैं।
इनका प्रमुख केंद्र पश्चिमी उप्र है। यहां इनकी तादात 16 से 17 प्रतिशत के करीब है। कई सीटों पर यह निर्णायक भूमिका में हैं। इनका फैलाव सहारनपुर से लेकर अमरोहा, बिजनौर बरेली, पीलीभीत, शहाजहांपुर व आगरा तक है। जयंत जाट-गुर्जर-मुस्लिम-जाटव व त्यागी गठजोड़ की कोशिश में जुटे हैं। यदि वह गठबंधन का हिस्सा बन जाते हैं तो सपा समेत दूसरे सहयोगियों का परंपरागत वोट भी उनके खाते में आने से स्थिति और मजबूत हो जाएगी।
भाजपा के लिए 26 सीटों पर खड़ी हो सकती मुश्किल
इससे वह भाजपा के लिए पश्चिमी उप्र की 26 सीटों पर मुश्किल खड़ी कर सकते हैं। खतौली विधान सभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में यह गठजोड़ कामयाब रहा था। पश्चिमी उप्र की 26 लोकसभा सीटों में 2019 चुनाव में भाजपा ने 19 सीटों पर परचम लहराया था। सहारनपुर, बिजनौर, नगीना व अमरोहा सीट पर बसपा एवं मुरादाबाद, रामपुर और संभल सीट सपा के खाते में गई थी।
बाद में रामपुर सीट पर उपचुनाव में भाजपा ने बाजी मारी। रालोद को गत लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली थी। पश्चिमी उप्र में जाट और मुस्लिम गठजोड़ के कारण पूर्व में रालोद जीतती रही, लेकिन 2013 में मुजफ्फरनगर दंगे के बाद जाट-मुस्लिम अलग-अलग पाले में खड़े हो गए। 2017 विधान सभा चुनाव में रालोद मात्र एक सीट पर ही जीत हासिल कर सकी थी। गत विधान सभा चुनाव में सपा के साथ रालोद का गठबंधन हुआ तो आठ सीटों पर उसके प्रत्याशी जीते।
बाद उन चुनाव में खतौली सीट भी जीती। जानकार कहते हैं कि जाट और गुर्जर चुनाव में कभी एक साथ किसी एक पार्टी के पक्ष में नहीं गए। जाट रालोद को तो गुर्जर भाजपा के साथ गए। गुर्जर भाजपा से इस बात से नाराज हो गए कि जाटों को पार्टी खूब तरजीह देती है, लेकिन गुर्जरों को उनकी संख्या के हिसाब से सरकार और संगठन में जगह नहीं मिलती। यही कारण है कि खतौली विधान सभा सीट के उप चुनाव में भाजपा को अपनी परंपरागत सीट गंवानी पड़ी।
रालोद के साथ भाजपा ने की गठबंधन की कोशिश
हालांकि, भाजपा ने अब राष्ट्रीय टीम में गुर्जर नेता सुरेंद्र नागर को जगह देकर उन्हें मनाने का प्रयास किया है, लेकिन प्रदेश संगठन में एक भी गुर्जर नेता नहीं है। गुर्जर चाहते हैं कि उन्हें पार्टी के प्रदेश संगठन में उचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। दूसरी तरफ भाजपा ने जाट बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले भूपेंद्र चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष व मोहित बेनीवाल को उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी दे रखी है।
दूसरी तरफ जयंत चौधरी गुर्जरों में यही संदेश देने में लगे हैं कि भाजपा में उनके लिए कोई स्थान नहीं है, जबकि रालोद ने जाट सीट पर गुर्जर नेता मदन भैया को जितवाकर विधान सभा में भेजा। सूत्र बताते हैं कि भाजपा ने लोकसभा चुनाव में रालोद के साथ गठबंधन का प्रयास किया। जयंत चौधरी ने गुर्जरों को साथ लेकर चलने की बात कही थी।
बताते हैं कि तय हुआ था कि उत्तर प्रदेश सरकार में रालोद कोटे से एक गुर्जर और एक जाट मंत्री बनेगा, जबकि जयंत केंद्र में मंत्री बनेंगे, लेकिन यह रणनीति परवान नहीं चढ़ सकी। जयंत ने शुक्रवार को आइएनडीआइए की मुंबई बैठक में पहुंचकर भाजपा के रणनीतिकारों की चिंता बढ़ा दी है।