जानिये- दादरी के पहले विधायक के बारे में, जिन्होंने नेहरू-इंदिरा और राजीव तीनों संग किया काम
गुर्जर नेता रामचंद्र विकल ने लोगों को राजनीति का ककहरा सिखाया था। वर्तमान परिदृश्य की राजनीति में जब नेता पार्टी में पद पाने के लिए एक दूसरे की कब्र खोदने में जुट जाते हैं। तो वहीं दादरी के पहले विधायक रामचंद्र विकल ने मुख्यमंत्री बनने का प्रस्ताव ठुकरा दिया था।
By Jp YadavEdited By: Updated: Tue, 18 Jan 2022 12:44 PM (IST)
नोएडा [अंकुर त्रिपाठी]। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के मद्देनजर में चुनावी रंग अब तेजी से चढ़ने लगा है । सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपने-अपने पत्ते खोल दिये है। फिर से एक बार राजनीतिक पार्टियों ने गुर्जर प्रत्याशियों पर भरोसा जताया है । दादरी विधानसभा के इतिहास में अगर एक बार को छोड़ दे तो हर बार इस विधानसभा में गुर्जर ही विधायक बना है। दादरी की राजनीति बताती है कि गौतमबुद्घ नगर (दादरी क्षेत्र) राजनीति का गढ़ रहा है। यहां गुर्जर नेता रामचंद्र विकल ने लोगों को राजनीति का ककहरा सिखाया था। वर्तमान परिदृश्य की राजनीति में जब नेता पार्टी में पद पाने के लिए एक दूसरे की कब्र खोदने में जुट जाते हैं। तो वहीं दादरी के पहले विधायक रामचंद्र विकल ने मुख्यमंत्री बनने का प्रस्ताव ठुकरा दिया था।
उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री रहे रामचंद्र विकल का जन्म गौतमबुद्घ नगर की दादरी तहसील क्षेत्र के बसंतपुर नया गांव में 8 नवंबर 1916 को हुआ था। स्वतंत्रता सेनानी रहे विकल ने आजादी के बाद पहला चुनाव 1952 में कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार के रूप में दादरी विधान सभा से लड़ा था और पहली बार विधायक बने थे।दूसरा चुनाव उन्होंने सिकंदराबाद विधान सभा से 1957 में लड़ा। यहां से भी वह विजयी हुए थे। इसके बाद 1962 में फिर दादरी और 1967 में सिकंदराबाद से विधान सभा से चुनाव जीते थे। इसी बीच उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। वह किसान मजदूर पार्टी के विधानसभा के नेता चुने गए। इलाके के लोग बताते है कि मुख्यमंत्री पद के लिए उनको चुना गया था, मगर चौधरी चरण सिंह को कुछ लोगों ने सीएम पद के लिए आगे किया तो उन्होंने बिना किसी बात के विधानसभा के नेता पद से इस्तीफा देकर चौधरी चरण सिंह को स्वयं ही मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा कर दी। हालांकि चौधरी चरण सिंह ने उन्हें डिप्टी सीएम बनाया था।1971 में फिर चुनाव हुआ तो प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर वह कांग्रेस में शामिल हो गए।
1971 में बागपत से लोकसभा चुनाव लड़ा और इसमें प्रचार करने के लिए स्वयं इंदिरा गांधी बागपत पहुंची थीं। लोकदल के रघुवीर शास्त्री को हराकर वह सांसद बने। रामचंद्र विकल लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा तीनों सदनों के सदस्य रहे। वह ऐसे नेता थे, जिन्होंने पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और 1985 में राजीव गांधी के साथ काम किया। उनके प्रचार के लिए इंदिरा गांधी कई बार दादरी क्षेत्र में आई थीं। रामचंद्र विकल के बेटे पूर्व विधान परिषद सदस्य जगवीर सिंह बताते है कि पिता ने हमेशा सिद्धांतों की राजनीति की। इंदिरा गांधी उन्हें बहुत मानती थी। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के भी वे पंसदीदा नेता रहे।
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